Monday, August 22, 2016

किसान का गोल्ड है :ऋषि खेती

किसान का गोल्ड है :ऋषि खेती 


ब से भारत में "हरित क्रांति " के नाम से गहरी जुताई ,जहरीले रसायनों ,भारी  सिंचाई ,और मशीनों से खेती की जा रही है तब से एक ओर  जमीन बंजर हो रही हैं और किसान गरीब होते जा रहे हैं।

ऋषि खेती बिना जुताई ,बिना खाद और दवाइयों से की जाने वाली खेती है इसमें भारी  सिंचाई और मशीनों की भी जरूरत नहीं है। इस खेती का आविष्कार जापान के जग प्रसिद्ध सूक्ष्म जीवाणु के जानकार और कुदरती खेती के किसान ने किया है। पूरे विश्व में कुदरती खेती ( नेचुरल फार्मिंग ) के नाम से  है।

भारत में हमे इस खेती को करते करीब तीस साल हो गए हैं। इन तीस सालों  में हमने कभी भी जुताई नहीं की है ना  ही कोई जहरीला रसायन डाला है ना ही हमने जैविक खाद का कोई उपयोग किया है। असल में ऋषि खेती कुदरती रूप से पैदा होने वाली वनस्पतियों के साथ और उनके तरीके से की जाती है। जैसे कुदरती वनों और चरोखरों में देखने को  मिलता है।
कुदरती वनों में बीज जमीन पर पड़े रहते हैं जो अपने आप सुरक्षित  और जमीन की ऊपरी सतह अनुकूल मौसम आने पर ऊग आते हैं इसी प्रकार हम सीधे बीजों को फेंक कर या क्ले (  खेतों और जंगलों से बह  कर निकलने वाली चिकनी मिटटी जिस से मिटटी  बर्तन बनाये जाते है। ) में कोटिंग कर सीड बाल बना कर बिखराते देते हैं।  यह प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार जंगली बीज गिर जाते हैं।  सीड बाल से बीजों  की सुरक्षा हो जाती है जो मौसम आने पर ऊग आते हैं।

हम खरपतवारों को मारते नहीं है यह जमीन के सुधार में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। इनके साथ अनेक कुदरती जैव-विविधताएं रहती है जो जमीन में जल का  प्रबन्ध करती हैं ,फसलों की रक्षा करती हैं और पोषक तत्व प्रदान करने का काम करती है।
बीन जुताई की सोयाबीन की फसल 
इस कुदरती प्रबंध के कारण खेत बहुत ताकतवर हो जाते हैं उनमे ताकतवर फसलें पनपती है  जिनमे कोई रोग नहीं लगता है। इस कारण किसान को लागत  और श्रम का बहुत लाभ मिलता है और बम्पर फसलें  उतरती हैं।

इसी लिए हम कहते है ऋषि खेती किसान का गोल्ड मैडल है।