गर्मियों में की जाने वाली गहरी जुताई के कारण सूखा पड़ रहा है।
खेतों और नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए करें बिना जुताई की खेती।
अनेक कृषि वैज्ञानिक किसानो को गर्मियों में गहरी जुताई करने की सलाह देते हैं। उनका कहना है गर्मियों में गहरी जुताई करने से नीचे की मिटटी ऊपर आ जाती है इस मिटटी में बीमारी के कीड़े छुपे रहते हैं मिटटी के पलट जाने से ये कीड़े गर्मी की तेज धूप से मर जाते है। किन्तु जब गेंहूं को हार्वेस्टर से काटा जाता है बहुत बड़ी नरवाई खेत में रह जाती है जिसके कारण गहरी जुताई करने का यंत्र काम नहीं कर पाता है। इसलिए वे नरवाई में आग लगा देते हैं। किसान कहते हैं की आग की गर्मी भी कीड़ों को मारने में सहायक रहती है।जुताई करने से सूखा पड़ रहा है। |
हम पिछले तीस सालों से अपने पारिवारिक खेतों में बिना जुताई करे ऋषि खेती कर रहे हैं। इससे पूर्व हम भी कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार गहरी जुताई करते थे। जिसके बहुत बुरे परिणाम हमने भुक्ते हैं हमारे उथले कुए पूरे सूख जाते थे और पूरे खेत कान्स घास से भर गए थे। जिसके कारण खेती करना नामुमकिन हो गया था। कान्स घास मिटाने के लिए वैज्ञानिक हमे गहरी जुताई कर खेत में आग लगाने की सलाह देते थे वह भी हमने किया किन्तु इस से कान्स घास कम न होकर और अधिक बढ़ गयी थी। कुओं में गेंहूं की सिंचाई के लिए पानी नहीं रहता था। वो बरसात में ही सूख जाया करते थे।
ऋषि खेती की अभ्यास पुस्तक |
असल में गहरी जुताई करने से बरसात के पानी के साथ मिलकर मिटटी कीचड़ में तब्दील हो जाती है। जैसा की धान की कीचड़ बनाने से होता है इसके कारण बरसात का पानी खेतों के द्वारा सोखा नहीं जाता है। वह तेजी से बहता है अपने साथ खेत की बखरी मिटटी को भी बहा कर ले जाता है। एक और जहां पानी का नुक्सान होता है खेती की कीमती मिटटी भी बह कर चली जाती है जो असली जैविक खाद रहती है।
गहरी जुताई के करने से हमारे खेत मरुस्थल में तब्दील हो गए थे फसलोत्पादन बिलकुल घट गया था हर साल घाटा होने लगा था हम बहुत बुरी तरह कर्जों में फंस गए थे। उसी समय हमे स्व मस्नोबु फुकुोकजी की लिखित किताब "एक तिनके से आई क्रांति " कुदरती खेती पर लिखी उनके अनुभवों पर आधारित किताब पढ़ने को मिली उस समय वे करीब २५ सालो से बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे थे। हमने तुरंत जुताई बंद कर दी।
पहले साल ही हमने देखा की बरसात का पानी हमारे खेतों से बह कर बाहर नहीं जा रहा है वह जहां का तहाँ खेतों में समाने लगा पहले ही साल हमारे उथले कुए लबालब हो गए। उनमे भरी गर्मी में भी पानी रहने लगा।
खेत की मिटटी (जैविक खाद ) के नहीं बहने से हमे खाद की कभी कोई जरूरत नहीं रही। खेतों के ताकतवर हो जाने से उसमे फसले भी ताकतवर होने लगी जिनमे कोई बीमारी नहीं लगती है।
ऋषि खेती कर हम अपने वातावरण को पानीदार हरभरा बना सकते हैं। |
अधिकतर कृषि वैज्ञानिक खरपतवारों को मारने के लिए गहरी जुताई करने की सलाह भी देते हैं किन्तु हमने यह देखा हैकि जितना जोतते हैं उतनी कठिन खरपतवरें पैदा होती है। जुताई नहीं करने से कान्स जैसी कठिन खरपतवार जिसकी बहुत गहराई तक जड़ें रहती हैं भी राम राम करते चली जाती हैं।
जुताई करने से फसलों पर छाया का बहुत असर होता है थोड़ी भी छाया आ जाये तो फसलें पैदा नहीं होती है जबकि बिना जुताई की खेती में फसलों पर बहुत कम छाया का असर होता है। यही कारण है की किसान अपने खेतों में पेड़ नहीं रखते है।
बिना जुताई का हर खेत वर्षा वनों की तरह काम करता है। इस से भूमिगत झरने चलते हैं जो नदी नालों को जल उपलब्ध करते हैं। बिना जुताई की खेती न केवल खेतों को पुनर्जीवित करने का तरीका है वरन यह सूखती नदियों के लिए भी जीवन दान है।