Friday, April 1, 2016

आयुर्वेद दुकान नहीं है !


आयुर्वेद दुकान  नहीं है !

आयुर्वेद कुदरत के साथ जीवन जीने की कला है उसे दुकान न बनाये। 

मारे ऋषि जन जंगलों में रहते थे और आज भी रह रहे हैं। वो आजकल के बाबाओं की तरह शहरों में ना रहते थे ना हवाई जहाजों घूमते थे।
उनके ज्ञान से हम आज तक सुरक्षित हैं। परम्परागत देशी खेती किसानी में अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिसमे जंगलों से अनेक प्रकार फल ,सब्जियां ,अनाज बिना उगाये सालो  साल मिलते रहते थे। जिसमे मूल बात इन वनस्पतियों को बचाने के आलावा कुछ नहीं रहता था। फल सब्जियों को खाकर उनके बीज जहाँ वापस जमीन पर फेंक देते थे। मल  विसर्जन भी अन्य जानवरों की तरह होता था जिस से बीजों का विसर्जन भी हो जाता था। इस प्रक्रिया में कुदरत का बिलकुल नुक्सान नहीं होता था। हरियाली पूरी तरह सुरक्षित रहने से कुदरत जिन्दा रहती थी। इसीलिए हम लोग आज तक धरती माता ,नदी ,पर्वत ,पेड़ पौधों को पवित्र मानकर पूजते हैं।
भारतीय देशी खेती किसानी जिसमे खेतों ,जंगलों और पशु पालन ,चरागाहों के समन्वय से अनाज ,फल सब्जियों की खेती की जाती थी। जिसमे ऐसे कोई भी काम नहीं किए जाते थे जिस से कुदरत माता को नुक्सान होता हो। यही कारण है हमारी देशी खेती किसानी हजारों साल टिकाऊ रही और आज भी है।  हमारे ऋषि जन इस में पूरा सहयोग करते थे।

किन्तु इस कुदरती खेती किसानी को वव्यापारिक  रासायनिक खेती के आलावा व्यापारिक  नीम हकीमो ने बहुत नुक्सान पहुँचाया है। उनके कारण खेती आज रसायनो , मशीनो और अनेक टोने टोटकों का शिकार हो गयी है।
जिसके कारण एक और हमारा हरा भरा पर्यावरण रेगिस्तान में तब्दील हो गया है और   खेती किसानी घाटे  का सौदा बन गयी है।

रासायनिक यूरिया में नीम मिलाया जाने लगा है। मेलाथियोन के साथ गोबर और गोमूत्र का उपयोग होने लगा है। इस कारण अब किसान ऋषिजनो के ज्ञान को भूल गए हैं। ऋषि खेती के बदले 'जैविक खेती 'की बात की जाने लगी है।  हर किस्म की डाक्टरी चल बैठी है जिसमे रासयनिक दवाओं की तर्ज पर आयुर्वेदिक दवाओं का भी बोल बाला  हो गया है।

असल में बहुत कम लोग इस बात में विश्वाश करते हैं की जो  कुदरत बनाती है वह इंसान  नहीं बना सकता है।
ऋषिजन जंगलों में रहते थे वे न तो खेत जोतते थे ना बीज  बोते थे  ना वे किसी भी प्रकार के कीट या खरपतवारों को मारने  का काम करते थे न ही वे सिचाई करते थे।  फिर भी उन्हें साल भर खाने के लिए कुदरती आहार ,साँस लेने के लिए कुदरती हवा पीने के लिए कुदरती बरसात नियमानुसार उपलब्ध रहती थी।

हम पिछले तीस साल से अपने पारिवारिक खेतों में ऋषि खेती का अभ्यास कर रहे हैं जिसमे जमीन की जुताई ,किसी भी रासायनिक या आयुर्वेदिक दवा की जरूरत नहीं रहती है। खेती कुदरती खेती कहलाती है। कुदरत हमे सब कुछ देती है हमे कुछ भी बाजार से लाने की जरूरत नहीं रहती है।

कुदरत का नियम है की बीज जमीन पर गिरता है अपने मौसम में उग कर पेड़ बन जाता है जो फिर असंख्य फल बढ़ते क्रम में देता है। किन्तु यह जब गुस्सा हो जाता है जब हम उसके जीवन चक्र में रासायनिक या आयुर्वेदिक डाक्टरी की दखलंदाजी करने लगते हैं।

अब समय आ गया है की हम असत्य वैज्ञानिक और असत्य धार्मिक ज्ञान से हट कर कुदरत के सत्य और अहिंसातमक ज्ञान  को समझें और अपने जीवन में अमल में लाएं।  इसके लिए कुदरत से अच्छा कोई गुरु नहीं है। जो हमारे बिलकुल करीब है। जिसे देखने के लिए हमे केवल आँखे खोलने की जरूरत है।



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