बिना जुताई की बारानी जैविक खेती
क्रिमपर रोलर और जीरो टिलेज सीड ड्रिल का उपयोग
बिना जुताई की खेती ने पिछले दो दशकों में बहुत प्रसिद्धि पायी है। इस से समय ,पैसे ,मिट्टी और पानी की बहुत बचत होती है। किन्तु जहरीले रसायनों उपयोग के कारण यह खेती जैविक खेती की श्रेणी में नहीं आती है।
इसलिए यह सवाल लाज़मी है कैसे हम बिना जुताई की खेती को जहरीले रसायनों से मुक्त जैविक बनाए ? जवाब बिना जुताई की जैविक खेती है। यह शतप्रतिशत जैविक सिद्धांतो पर आधारित है इसमें यांत्रिक रोलर का उपयोग होता है जो हरे खरपतवारों को जीवित जमीन पर सुला देता है।
हरा भूमि ढकाव जमीन को ठंडा रखता है जिस से भूमिगत जल कर वास्प बन फसलों को नमी प्रदान करता रहता है। बाद में यह सड़कर उत्तम जैविक खाद में तब्दील हो जाता है। इस ढकाव के अंदर असंख्य उर्वरता प्रदान करने वाले कीड़े मकोड़े,सूक्ष्म जीवाणु रहने लगते हैं जो फसलों के लिए आवष्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति कर देते है।
वैसे तो बिना जुताई की कुदरती खेती जापान के जग प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक मसनोबु फुकुोकजी की देन है। किन्तु मशीनों से की जाने वाली आर्गेनिक नो टिल फार्मिंग का श्रेय अमेरिका की रोडल्स संस्था को जाता है। जैविक खेती में " भूमि ढकाव की फसलों " का महत्व है। परम्परागत जुताई वाली जैविक खेती में किसान अनेक दलहन फसलों को ऊगा कर उनको "हरी खाद " रूप में जुताई कर मिटटी में मिला देते हैं। जुताई करने से मिटटी की असंख्य जैव-विवधताओं की हत्या हो जाती है इसलिए यह विधि जैविक नहीं रहती है।
किन्तु बिना जुताई करे हरे भूमि ढकाव को जमीन पर जीवित सुला देने से खेती पूरी तरह जैविक बन जाती है। हरे जीवित भूमि ढकाव के मैच मल्च से जमीन ठंडी बनी रहती है जिसके कारण जमीन से निकलने वाली वास्प फसलों में नमि बनाए रखती है जिसके कारण सिंचाई गैर जरूरी हो जाती है। इसके आलावा यह ढकाव खरपतवार और कीट नियंत्रण में अहम भूमिका निभाता है। क्रिम्पर रोलर आगे रहता है पीछे बिना जुताई बोने की मशीन रहती है इसलिए एक बार ट्रेकटर को घुमाने से सब काम पूरा जाता है चकों से मिटटी के दबने की समस्या भी नहीं रहती है।