Thursday, May 28, 2015

वैज्ञानिक खेती फेल है !

वैज्ञानिक खेती फेल है !

GM और यूरिया की बढ़ती मांग से पता चलता है की अब कृषि वैज्ञानिको के  पास कोई समाधान नहीं बचा है। 


र रोज किसानो की आत्म हत्या और खेती में हो रहे घाटे से परेशान किसानो की समस्या को सुलझाने में हमारी सरकारें पूरी तरह बेकार सिद्ध हो रही हैं।  इसलिए वे अब ओधोगिक विकास का सहारा लेने की कोशिश कर रही हैं। जबकि हम सब यह जानते हैं की भूखे  पेट भजन नहीं हो सकता है।

खेती किसानी केवल रोटी नहीं है उस से हमारा पूरा पर्यावरण जुड़ा है ,कुदरती हवा और बरसात का इस से सीधा सम्बन्ध है।  किन्तु हमने जंगलों को काट ,खेत बनाकर उन्हें रेगिस्तान में तब्दील कर लिया है इसलिए मौसम परिवर्तन की बड़ी समस्या खड़ी हो गयी है। भूकम्प,सूखा ,बाढ़ आदि मुसीबत बन गए है , इन समस्याओं से निपटने का अब वैज्ञानिको को कोई रास्ता नहीं दिख रहा है।

वैज्ञानिक खेती का चलन अमेरिका से शुरू हुआ है। इस कारण खुद अमेरिका बड़े रेगिस्तान में तब्दील हो गया है। वहां अब बिना जुताई की खेती जड़ जमा रही है जिसमे जैविक और अजैविक खेती तेजी से चलन में आने लगी हैं।

हमने इस समस्या को करीब तीन दशक पहले ही भांप लिया था तब से हमने कुदरती खेती का अभ्यास  शुरू कर दिया था।  इस से पहले हम वैज्ञानिक खेती अमल में ला रहे थे। ट्रेक्टरों से जुताई करते थे ,खाद के लिए रसायनो का उपयोग करते थे जिस से हमारे खेत भी रेगिस्तान में तब्दील हो गए थे।
फुकूओकाजी अपने फार्म में 

भला हो जापान के कृषि वैज्ञानिक और कुदरती किसान स्व श्री मस्नोबू फुकूओकाजी  जी का जिन्होंने अपने अनुभवों की किताब "एक तिनका क्रांति " से दुनिया को बहुत पहले ही बता दिया था की जो भी वैज्ञानिक खेती के जंजाल में फसेंगा  वह मिट जायेगा।

आज हमारे खेत हरियाली से भर गए हैं जिसमे भरपूर पानी है और भरपूर फसलें पैदा हो रही हैं। मौसम परिवर्तन का हमारी  खेती पर कोई असर नहीं हो रहा है। हमे किसी भी सरकारी कर्जे ,अनुदान और मुआवजे की जरूरत नहीं रहती है।

No comments: