Wednesday, May 27, 2015

खेती में यूरिया का प्रयोग मूर्खता पूर्ण कार्य है।

यूरिया के कारण  बढ़ रहा है कुपोषण !

खेती में यूरिया का प्रयोग मूर्खता पूर्ण कार्य है। 

मारे देश में दिन प्रति दिन कुपोषण बढ़ता जा रहा है जो अब तक अनुमानि ५०% से भी अधिक बढ़ गया है।  जब हमारे शरीर को उसकी जरूरत के मुताबिक खाना नहीं मिलता है तो शरीर कमजोर होने लगता है जिसे हम कुपोषण कहते हैं। कुपोषण अनेक बाहरी बीमारियों को आमंत्रित करता है। बच्चो  में जब कुपोषण रहता है तो बच्चों का दिमाग और शरीर दोनों कमजोर हो जाता है। उसी प्रकार जब महिलाओं में कुपोषण रहता है उनमे खून की कमी आ जाती है जिस से उन पर  और उनके बच्चों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। बच्चे अपंग  पैदा होने लगते हैं ,उनकी बहुत कम आयु में मृत्यु हो जाती है।
खेतों में यूरिया छिड़कते  किसान 

कुपोषण का मूल कारण खान पान में कुदरती गुणों की कमी है।  एक बहुत पुरानी कहावत है की जैसा खायें अन्न वैसा होय मन, यानि यदि अन्न कुदरती है तो मन यानि शरीर भी कुदरती रहता है।  कुदरती यानी स्वस्थ किन्तु जब हमे कुदरती खाना नहीं मिलता है  तो हमारा शरीर  कुपोषण का शिकार हो जाता है। 

जैसा की हम जानते है की पहले हमारा खाना कुदरती वनो से आता था इसलिए वह कुदरती रहता था जो अब खेतों में उगाया जाने लगा है।अधिकतर खेतों में खाना उगाने के लिए कुदरती वनो को मिटा दिया जाता है खेतों को खूब खोदा और जोता जाता है जिस से खेतों की कुदरती खाद बह जाती है जिसकी आपूर्ति  गैर कुदरती पेट्रोल से बनी खाद डाली जाती है जिस से हम यूरिया कहते हैं। 

यूरिया एक जहरीला रसायन है यदि इसे सीधा खा लिया जाता है खाने वाला मर जाता है किन्तु जब इसे खेतों में डाला जाता है तो यह खाद का काम करता है। किन्तु इस कृत्रिम जहरीली खाद को खेत पसंद नहीं करते हैं इस कारण वे बीमार हो जाते है।  इसलिए बीमार खेतों में बीमार फसलें पैदा होने लगती है जिस से कुपोषण जैसी महामारी फेल रही है। यह  इस प्रकार है जैसे बीमार को  ग्लूकोज़  चढ़ा दिया जाता है। जो एक कृत्रिम तुरंत ऊर्जा तो दे देता है किन्तु इस से शरीर को कोई पोषण नहीं मिलता है। 

कैसे रोकें कुदरती यूरिया का छरण ?

यदि हम अपने आस पास के कुदरती बिना जुताई वाले छेत्रों को देखें तो हम पाएंगे की वहां सभी कुदरती वनस्पतियां स्वस्थ बिना यूरिया की कमी के पनप रही हैं।  किन्तु जुताई वाले खेतों में भारी  यूरिया की कमी नजर आती है।


  यूरिया की कमी के  कारण फसलें  पीली पड़  जाती हैं। असल में जब हम खेतों की जुताई करते हैं तो बरसात का पानी बखरी बारीक मिट्टी के कारण जमीन में नहीं जाता है वह बहता है अपने साथ कुदरती  खाद को भी बहा  कर ले जाता है।  इसलिए खेतों में यूरिया की कमी हो जाती है।  इस कारण जुताई वाले खेतों की फसल पीली और बिना जुताई वाले छेत्रों की वनस्पतियां  हरी दिखाई देती है। यूरिया के छरण को रोकने के लिए जुताई को रोक भर देने से खेत कुदरती यूरिया से भर जाते हैं। कुदरत में जितनी भी दलहन जाती की वनस्पतियां हैं वे सभी जमीन में कुदरती यूरिया बनाने का काम करती है। जुताई  नहीं करने से ये अपने आप पनप जाती हैं और खेतों की यूरिया की मांग को खतम कर देती हैं। 


  भारतीय पम्परागत बिना जुताई की खेती में दलहन जाती की फसलों को बोने  से खेतों को कुदरती यूरिया प्रदान किया जाता रहा है जो बिलकुल हानिकारक नहीं है। किन्तु मात्र "हरित क्रांति " के कुछ वर्षों ने  रासायनिक यूरिया का चलन शुरू किया है तबसे खेत निरंतर कुपोषित होते  जा रहे हैं। 

हम  सालों से अपने खेतों में बिना जुताई की कुदरती खेती  कर रहे हैं हम दलहन जाती के पेड़ों के साथ अनाज की खेती  करते हैं हमने पाया  है की एक दलहन जाती का पेड़ अपनी छाया के छेत्र में लगातार यूरिया प्रदान करने का काम करता है। 

इसलिए हम दावे के साथ कह  सकते हैं फसलोत्पादन के लिए पेट्रोल से बनी  यूरिया खाद का उपयोग  मूर्खता भरा काम है। 


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