Thursday, January 22, 2015

NATURAL FARMING

NATURAL FARMING
बिना की  जुताई की कुदरती खेती
ऋषि खेती

हम पिछले २८ सालो से बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे हैं. जिसका अविष्कार  जापान के जग प्रसिद्ध  कृषि वैज्ञानिक स्व मसानोबू फुकुकाजी ने किया है जो Natural Farming के नाम से जानी जाती है  जिसे हम ऋषि खेती कहते हैं . इस खेती में जमीन की जुताई ,रसायनों का उपयोग नहीं होता है . गोबर आदि से बनाई खादों का भी इसमें कोई उपयोग नहीं है .
कुदरती खेती करने से पूर्व हमने करीब १५ साल  आधुनिक वैज्ञानिक खेती की जिस से हमारे खेत मरू हो गए थे हमारे पास खेती को छोड़ने के आलावा कोई उपाय नहीं बचा था किन्तु उसी समय हमे फुकुओकाजी के अनुभवों  पर उनकी लिखी किताब "The One Straw Revolution"  पढने को मिली . हमने तुरंत इस खेती को करने का निर्णय कर लिया . हमे पता चल गया था की फसलों के उत्पादन में की जाने वाली जमीन की जुताई बहुत हानि कारक है .
 https://www.youtube.com/watch?x-yt-ts=1421782837&feature=player_embedded&v=CT1YfZqorGw&x-yt-cl=84359240

अधिकतर लोग यह सोचते हैं की जुताई से अधिक हानी कारक यूरिया और कीटनाशक आदि  हैं यह भ्रान्ति है असल में जमीन की जुताई करने के कारण खेत कमजोर हो जाते हैं उसमे रसायन डालने से आंशिक लाभ नजर आता है किन्तु कमजोर खेत में कमजोर फसल के कारण कीड़े लग जाते हैं इसलिए किसान फसलों को बचाने  के लिए कीटनाशकों का उपयोग करते हैं . यदि जुताई नहीं की जाये तो अपने आप खेत अनेक खरपतवारों से ढक जाते हैं . जिसके  भीतर असंख्य जीवजन्तु केंचुए आदि काम करने लग जाते हैं . जिस से खेत पुन : ताकतवर हो जाते हैं . उसमे  किसी भी प्रकार की मानव निर्मित खाद दवाई की जरुरत नहीं रहती है .
खरपतवार जमीन को बचाने के लिए उसे  ताकतवर बनाने  के लिए आती हैं वो लाभ प्रद हैं . इस से खेत उर्वरक  और पानीदार हो जाते हैं .

https://www.youtube.com/watch?x-yt-ts=1421782837&x-yt-cl=84359240&feature=player_embedded&v=-aoKA2OtuGA

हम फसलों को बोने के लिए बीजों को सेह्दे खेतो में बिखरते है और जब हम ये देखते हैं बीजों को कहीं चिड़ियों ,चूहों ,कीड़ों आदि से नुक्सान हो रहा है तो हम बीजों को क्ले (जिस से मिट्टी के बर्तन बनते हैं )

में बंद बीज गोलियां बनाकर उन्हें फेंक देते हैं .इसमें पानी की बहुत कम मांग रहती है यह खेती असिंचित भी हो जाती है .
फसलों को काटने और गहायी के उपरान्त हम सभी कृषि अवशेषों जेसे पुआल ,नरवाई आदि को जहाँ से लेते हैं वहीं वापस खेतों में डाल देते हैं जिस से अगली फसल के लिए उत्तम जैविक खाद मिल जाती है . गोबर आदि से खाद बनाकर डालने की कोई जरुरत नहीं रहती है . जिस से एक और जहाँ खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है वहीं नमी संरक्षित रहती है ,केंचुए आदि काम करते रहते हैं .

हमने एक आल इन बगीचा बनाया है जिसमे हम फलों के  पेड़ों ,जंगली पेड़ों ,और अर्ध जंगली पेड़ों के  साथ सब्जियां,अनाज  आदि को लगाते हैं . इसमें हमारी देशी किस्म की मुर्गियां चरति रहती है.

 
हमने अपने फार्म अधिकतर सुबबूल के पेड़ों को लगाया है यह दलहनी के पेड़ हमें अनेक लाभ पहुंचाते हैं  इनसे हमे पशु पालन में बहुत लाभ मिलता है असल में ये उर्जा के पेड़ हैं साथ अनेक लाभ देते हैं देखिये
 

मेरा नाम राजू टाइटस है इसमें  पत्नी शालिनी और बच्चों का पूरा सहयोग प्राप्त है . मेरा बेटा जो मास्टर ऑफ़ सोशल वर्क है पूरे समय इस खेती से जुड़े हैं उनकी पत्नी अर्पणा और बेटा सेविओ भी जिसकी उम्र अभी ९ साल की है पूरी लगन से इस खेती को सीख रहे हैं . हमे ख़ुशी है की आज जब हमारे देश में किसान आत्म हत्या कर रहे हैं उनके बच्चे गाँव छोड़ कर पलायन कर रहे हैं हमारा पूरा परिवार  अपने फार्म पर रहते हुए कुदरती खान ,पान  और हवा का आनंद लेते अपना गुजर बसर कर रहे हैं .
ऋषि खेती केवल एक फसलो को पैदा करने भर की बात नहीं है यह एक जीवन पद्धति है जिसमे हम अपने परिवार  ,समाज और देश के आलावा अपने पर्यावरण के लिए भी उपयोगी रहते  हैं

राजू टाइटस
ऋषि खेती फार्म होशंगाबाद .म.प्र.















 

1 comment:

parmbir said...

Hope others will follow soon