Sunday, January 20, 2013

भारतीय संस्कृति का श्रोत है ऋषि खेती



          

 

                

  भारतीय संस्कृति का श्रोत है ऋषि खेती 

धरती माँ की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है ! 
 
 
 आज भी हमारे देश में ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है जिसमे कांस घास की पूजा होती है और ऋषि अनाजों को फलाहार के रूप में सेवन किया जाता है। कांस घास को देवता माना जाता है खेतों जब कांस फूलने लगता है किसान उस में हल चलाना बंद कर देते हैं उनका मानना है की हल चलाने  से धरती माँ घायल ही जाती हैं उनका लहू बहने ने लगता है।  

 टाईटस नेचरल फार्म पिछले 27 सालों से अपने खेतों में ऋषि -खेती  के माध्यम से घायल धरती मां की सेवा में सलग्न है। ऋषि खेती नाम गाँधी खेती के लिए स्व .विनोबाजी के द्वारा दिया गया था।  भारतीय अहिंसात्मक स्वंत्रता संग्राम के उपरांत जब गांधीजी नहीं रहे थे। विनोबाजी ने सत्य और अहिंसा के अनुसार जिस प्रकार देश को आज़ादी मिली थी विकास को आगे ले जाने के लिए ऋषि खेती को हथियार बनाया था। उन्होंने मशीनो और रसायनों से होने वाली खेती और पशु बल से होने वाली खेती के बदले हाथों से होने वाली खेती के प्रयोग कर उसे देश के स्थाई विकास के लिए सर्वोत्तम उपाय बताया था। उनका सर्वोदय भूदान आन्दोलन ऋषि खेती पर आधारित था। इसका मुख्य उदेश्य यह था की हर इन्सान अपना खाना स्वं पैदा करते हुए किसानो का और धरती मां का शोषण बंद करे। ये जानकारी हमें जग प्रसिद्ध गाँधीवादी क्वेकर ,देशिकोत्तम से सम्मानित स्व .मार्जरी बहन के द्वारा रचित किताब " मूव्ड बाई लव " से मिली है।


मार्जरी बहन जब  23 साल की थी वे इंग्लॅण्ड में ऑक्स्फ़र्ड यूनिवर्सिटी में क्वेकर स्टडी कर रही थीं उसी समय भारत में गांधीजी का अहिंसात्मक स्वंत्रता आन्दोलन चल रहा था वे इस से प्रभावित होकर आन्दोलन को सहयोग देने के लिए भारत आ गयीं थी। जिस प्रकार भारत में गाँधीवाद सत्य और अहिंसा पर आधारित है उसी प्रकार इंग्लेंड में क्वेकर विचार धारा भी सत्य और अहिंसा पर आधारित है। जाती,धर्म ,भाषा ,रंग और छेत्रिय भेदभाव से ये कोसों दूर है। मार्जरी बहन अपने प्रारंभिक काल में शांति निकेतन में गुरुदेव  रवीन्द्रनाथ  ठाकुर के साथ रही। वे उन दिनों काफी बीमार थे ,चल फिर नहीं सकते थे किन्तु वे गांधीजी के आन्दोलन को सहयोग कर रहे थे, उन्होंने मार्जरी बहन के माध्यम से अपने नाटको का अंग्रेजी अनुवाद इंग्लॅण्ड पहुचाया जिसे वहां के क्वेकर लोगों ने बहुत तेजी से प्रचारित किया जिस से अंग्रेजी हुकूमत पर भारत को आजाद करने का दवाब बना और गांधीजी के आन्दोलन को बहुत सहायता हासिल हुई। गुरिदेवजी  के  नहीं रहने के बाद मार्जरी बहन गांधीजी के साथ काम करने लगीं थीं गांधीजी ने उन्हें सत्य और अहिंसा पर आधारित शिक्षा का काम सोंपा था वे गाँधी आश्रम में नयी तालीम के नाम से इस योजना को चलाती रहीं। गाँधी जी के नहीं रहने के उपरांत उन्होंने गांधीजी के सब से अच्छे चेले आचार्य विनोबाजी के साथ काम किया वे भूदान आन्दोलन से भी जुड़ीं रहीं।

उन दिनों भारत में मशीनो से की जाने वाली गहरी जुताई और रसायनों पर आधारित "हरित क्रांति" का जोर चल रहा था। जो गांधीवाद और क्वेकर विचार धारा के विपरीत था। उन दिनों होशंगाबाद स्थित क्वेकर संस्था में क्वेकर पीस सर्विस इंग्लॅण्ड की आर्थिक सहायता से हरित क्रांति का ग्राम विकास माडल बनाया गया था जो गहरी जुताई और जहरीले रसायनों के उपयोगों के कारण ध्वस्त हो चुका  था। 

 संस्था भारी आर्थिक, सामाजिक,और पर्यावरणीय संकट में फंस गयी थी। इसे इस संकट से उबारने के लिए गाँधीवादी क्वेकर श्री परताप भाई ने बीड़ा उठाया था। परताप भाई इस से पूर्व मशीनो और रसायनों से होने वाली खेती और भारतीय परंपरागत खेती किसानी का ठीक से अध्यन कर चुके थे। उन्होंने अमेरिका की प्रोफेसर की नोकरी को त्याग कर कई माह होशंगाबाद के गाँव में रहकर तवा नदी के  बांध से सिंचित होने वाले छेत्र की रासायनिक खेती और उस से होने वाले नुकसान का अच्छे से अध्यन किया और  रसायनों और मशीनो के बिना खेती का एक माडल बना कर किसानो को जाग्रत करने का  निर्णय लिया। इस के लिए उन्हें रसूलिया होशंगाबाद की क्वेकर संस्था ने आमंत्रित कर काम करने की पूरी आज़ादी दी। परताप्जी ने  इस कार्य हेतु मार्जरी बहन को  अपने साथ जोड़ लिया। काम बहुत कठिन था पर दोनों ने मिलकर 70-80 के दशक में इस संस्था की जमीन पर ऋषि खेती योजना लागु कर दी। इस योजना में मशीनो की जुताई और रसायनों का त्याग सब से प्रमुख था। गोशाला में संकर नस्लों की गायो के बदले देशी गायों को पाला जाने लगा। गोबर गेस से उर्जा और गोबर की खाद से खेती की जाने लगी। जुताई के बगेर सीधे दलहनी बीजों को फेककर उगाया जाने लगा जिस से खेतों को भरपूर नाइट्रोजन , गायों को चारा और बीजो से पैसा प्राप्त मिल  जाता था।  ऋषि खेती योजना एक ओर  गाँधी और क्वेकर सिधान्तो के अनुरूप थी वहीँ ये पूरी तरह आत्म निर्भर थी। ऋषि खेती योजना के इस माडल ने हरित क्रांति के माडल को स्थाई विकास के लिए बिलकुल बेकार सिद्ध कर दिया। 

एक और सरकार मशीनो और रसायनों के उपयोग के लिए किसानो को प्रोत्साहित कर रही थी वहीँ ये संस्था गोसंवर्धन ,गोबर की खाद ,बेलों से होने वाली हलकी जुताई ,नत्रजन देने वाली बरसीम फसल के मध्यम से खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी। इस के लिए उन दिनों की सरकार ने संस्था पर विधान सभा में सवाल उठा कर काफी विरोध किया। आज ये ही सरकार मशीनो और रसायनों से होने वाले
नुकसान की भरपाई हेतु  गोसंवर्धन कर जैविक खेती को प्रोत्साहित करने की बात करने लगी है। ये गाँधीवादी -क्वेकर पर्यामित्र ऋषि खेती की बड़ी जीत है।

  
किन्तु हमें अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है की रसूलिया  से  मार्जरी बहन और परताप भाई के जाने के बाद गाँधीवादी और क्वेकर मूल्यों पर आधारित ऋषि खेती का अहिसात्मक आत्म निर्भर ग्राम विकास का माडल आयातित तेल और जहरीले रसायनों पर आधारित हिंसात्मक माडल के आगे हार गया। ऋषि खेती के बंद हो जाने से वहां आनेवाले तमाम देशी विदेशी महमान बंद हो गए, जमीने बंजर हो गयीं है। विनाशकारी गहरी जुताई और जहरीले रसायनों के बिना अब वहां कुछ भी पैदा नहीं होता है। जहाँ कुदरती आहार खरीदने वालों की भीड़ लगी रहती थी अब वहां कोई आता नहीं है आर्थिक घाटा इतना हो गया है की उस की आपूर्ति के लिए जमीने बिकने लगी हैं। असल में लोग गाँधी और क्वेकर मूल्यों को आज पुराना और बेकार वाद मानते हैं। वे आधुनिकता चमक में गुम जाते है।

मार्जरी बहन और परताप्जी जानते थे की उनके जाने के बाद रिशिखेती योजना को बचाना कठिन होगा  इस लिए आप दोनों चाहते थे की ये योजना ऐसे किसी निजी फार्म में स्थान्तरित हो जाये जिस से ये बच जाये इस लिए हमारी मां क्वेकर गाँधीवादी महिला शिक्षाविद स्व .पालिना टाइटस और हमने मिलकर इस योजना को हमारे फार्म पर लागु कर दिया जो 27 सालों से निर्विवाद सफलता की ऊंचाई को छु रहा है। वे तमाम मेहमान जो रसूलिया फार्म पर ऋषि खेती देखने जाते थे हमारे फार्म पर आने लगे इस प्रकार ऋषि खेती का प्रचार प्रसार होने लगा। रासायनिक खेती पर किसानो की आत्म हत्या,पर्यावरण विनाश,और थाली में जहर उंडेलने का दोष लग गया। खेती में जुताई और जहरीले रसायनों के उपयोग के कारण धरती मां के साथ रहने वाली तमाम जैव एवं वानस्पतिक विविधताओ की हत्या चरम सीमा पर है।
हमारे फार्म पर आने के बाद ऋषि खेती पूरी तरह बिना जुताई की कुदरती खेती बन गयी। बिना-जुताई की कुदरती खेती का अविष्कार जापान के जाने माने गाँधीवादी ,देशोक्प्त्तम और मेगासे अवार्ड प्राप्त क्रषि वैज्ञानिक तथा कुदरती खेती के किसान स्व .मस्नोबू फुकुओका जी ने किया था।पिछले अनेक सालों में इसे हमने इसे भारत के हर प्रान्त में करने योग्य बनाने में बड़ी सफलता अर्जित की है। गेंहूं,दाल ,चवाल ,सब्जी,फलों की खेती के साथ साथ चारे और ईंधन के पेड़ों की खेती,पशु पालन यहाँ अब सब ऋषि खेती तकनीक से होता है। अधिकतर लोग ये सोचते हैं की जुताई और रसायनों के बिना खेती असंभव है या अधिक उत्पादन करने में असमर्थ है। ये भ्रान्ति है। जरा कुदरती जंगलों को देखें वहां कोन जुताई करता है कोन रासयनिक उर्वरक या कीट नाशकों का उपयोग करता है  भी हर प्रकार की वनस्पति

हमारा ऋषि खेती फार्म अब दुनिया भर में नेचरल फार्मिंग की जानकारी हेतु प्रथम स्थान रखता है। ये गाँधी -क्वेकर पर्या मित्र जानकारी का रिसोर्स सेंटर बन गया है। दूर दूर से लोग यहाँ आते हैं।

हरित क्रान्ति सही मायने में पूरी तरह आयातित तेल की गुलाम रेगिस्तानी मरू खेती है। कहने को तो यह कहा जाता है की इस हरित क्रांति  ने देश की खाद्य सुरक्षा में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई है किन्तु सच्चाई इस के विपरीत है। अनेक कुदरती अनाज जैसे कोदों ,कुटकी ,मूंग,अरहर,ज्वार ,बाजरा आदि समाप्ति के कगार पर हैं। गेहूं ,सोयाबीन,और धान की खेती ही बची है जिस में सोयाबीन और चावल का उत्पादन मात्र 5% ही रह गया है।
ये सब अनाज डीज़ल ,रासायनिक उर्वरकों,और जहरीले कीट नाशकों पर आधारित हैं। जिनसे पर्यावरण प्रदूषण सीमा लाँघ चुका है। इन अनाजों की रासायनिक खेती  के कारण एक और जहाँ रोटी में जहर घुल रहा है वहीँ हरे भरे जंगल ,बाग़ बगीचे ,और स्थाई चरोखारों का सफाया हो गया है। दुधारू पशुओं का पालना दूभर हो गया है।
केंसर,महिलाओं में एनीमिया,नवजात बच्चों की मौत और अपंगता तेजी से बढ़ रहा है। मोसम परिवर्तन और गरमाती धरती ,बाढ़ सूखा आम हो गया है।

हमारे देश में आज भी भारी मशीनो  और रसायनों पर आधारित खेती बलवती है। किन्तु अब धीरे धीरे परिवर्तन आ रहा है। बंजर होती जमीने, खेती किसानी छोड़ते किसान, पर्यावरणीय प्रदुषण ,जहरीला होता भोजन, किसानो की आत्म हत्या आदि समस्याओं के कारण योजनाकार बिना जुताई की जैविक खेती की ओर मुड़ने लगे हैं।  
  
हमारे प्रदेश की सरकार अब हमें कृषि योजना को बनाते समय आमंत्रित करती है। सरकार ने जीरो टिलेज और जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु कार्य करना शुरू कर दिया है। अनेक किसान जुताई के बिना बीजों को छिटक कर खेती करने लगे हैं।

हमारा मानना है की घरती मां जो हमारी पालनहार है उसकी सेवा करने में गाँधी-क्वेकर जैसे सोच की जरुरत है। जाती ,धर्म ,संप्रदाय , राजनीतिक  आदि विघटनकारी विचार धाराओं से हम धरती मां की सेवा नहीं कर सकते हैं।
शांति की कुंजी धरती मां के पास है उसकी सेवा करें सब शुभ होगा .

शालिनी एवं राजू टाइटस
Titus Natural farm.Hoshangabad. M.P. 461001.
       rajuktitus@gmail.com. +919179738049.
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http://groups.yahoo.com/group/fukuoka_farming/
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1 comment:

Anonymous said...

Sir,

Great & informative article.

Thank you very much.
Regards,
Hetal