Monday, August 27, 2018

धान गेंहूं की असिंचित जंगली खेती

धान गेंहूं की असिंचित जंगली खेत

जुताई ,खाद ,सिंचाई नहीं  


बरसाती हरा भूमि ढकाव 
ब हम जुताई नहीं करते हैं हमारे खेत अपने आप असंख्य भूमि ढकाव की फसलों से ढँक जाते हैं जिन्हे हम खरपतवार समझ कर जुताई कर मार देते हैं। जबकि भूमि ढकाव की फसलें  जहां  बरसात के पानी को सहजने का काम करती हैं वरन ठण्ड की फसलों के लिए पर्याप्त नमि को भी  बचा कर रखती हैं।
गेंहू के बीज 

अल्फ़ा अल्फ़ा के बीज 
 भूमि ढकाव में हम बरसात के अंत में जब ये फसलें पूरी तरह बढ़ जाती हैं  उसमे 2 से 4  किलो प्रति एकड़ की दर  से अल्फ़ा अल्फ़ा जो रिजका या लूसर्न के नाम से भी जाना जाता है  बाजार में पशु चारे के लिए बोया जाता है के बीजों को छिड़क देते हैं। उसके बाद गेंहू के बीजों को भी छिड़क देते हैं। जो बरसाती नमि को पाकर उग आते हैं।

धान की बीज गोलियां 
धीरे धीर बरसाती भूमि ढकाव की फसल सूख कर नीचे बैठ जाती है और इसकी जगह अल्फ़ाअल्फ़ा और गेंहू ले लेता है। जिस से बरसाती नमि का संरक्षण हो जाता है। इसके बाद इसी समय  हम धान के बीजों की क्ले मिट्टी (कपा ,कीचड़ ) से बीज गोलियां बना कर जब गेंहू बढ़ जाता है उसके बीच बिखेर देते हैं। गेंहू के पकने के बाद गेंहु को आधा ऊपर से काट लिया जाता है है के बाद उसके भूसे को भी खेत में बिखरा दिया जाता है। अल्फ़ा अल्फ़ा भी पकने के बाद अपने बीज खेतों में बिखेर हैं।

धान ऊपर नीचे अल्फ़ा अल्फ़ा और अन्य हरा कवर (फोटो फुकुओका फ़ार्म )
जब बरसात आती है तो धान ,हरी भूमि ढकाव की घास  अल्फ़ा अल्फ़ा उग आते हैं धान सबसे तेज ऊपर चलती है किसी भी प्रकार का आपस में टकराव नहीं होता है जब धान बड़ी हो जाती है बरसात खतम हो जाती है यह चक्र दोबारा चल जाता है जिसमे हमे धान भी मिलने लगती है।


Tuesday, August 21, 2018

ग्राउंड कवर क्रॉप (भूमि ढकाव की फसल )



पवार के कवर में गेंहू की जंगली खेती 


ने पेड़ों का  जंगल एक ग्राउंड कवर है .यह धरती का पोषण करता है जिस से उस में  रहने वाली तमाम जेव्-विविधताएँ मानव सहित का पोषण होता है .किन्तु पिछले अनेक सालों से हमने इन कुदरती भूमि ढकाव के साधनों को नस्ट कर उन्हें अनाज के खेतों में बदल दिया है जिस से सभी जैव -विविधताओं के लिए कुदरती आहार ,जल और हवा का संकट खड़ा हो गया है .
जहाँ घने जंगल हुआ करते थे वहां अब मरुस्थल बन गये है .बरसात नही हो रही है ,खाने को आहार नही है ,पशुओं के लिए चारा नही है .तमाम वैज्ञानिक उपाय यहाँ फैल हैं .इसलिए अब जंगलों की और लोटने का सिल सिला चालू हो रहा है .
जंगली खेती जो विश्व में नेचरल फार्मिंग के नाम से जानी जाती है जिसकी खोज जापान के जग प्रसिद्ध क्रषि वैज्ञानिक स्व. मस्नोबू फुकुकाजी ने की है की जाने लगी है .
इस खेती में जुताई ,खाद और जहरों का उपयोग नही किया जाता है. जंगलों की तरह पेड़ों ,झाड़ियों .और भूमि ढकाव की वनस्पतियों को बचाया जाता है .जिस से हरियाली बनी रहती है बरसात होती रहती है और भूमि के अंदर तालाब बन जाते हैं . गहरी जड़ वाले पेड़ पौधे बरसात के जल को  जमीन में ले जाते हैं और जब बरसात नही होती है तो नीचे  से पानी खींच कर ऊपर कुदरती सिंचाई  का काम करते हैं

जब हम जुताई वाली जमीन को जंगली खेती में बदलने का काम करते हैं तब हमारे खेत असंख्य घास ,क्लोवर ,अल्फ़ाअल्फ़ा ,पवार,ढेंचा ,सुबबूल  जैसी कुदरती वन्सपतियों से धक जाते हैं .जिन्हें  हम खरपतवार कहते हैं ये वनस्पतियाँ भी घने जंगलों की तरह बरसात को लाने ,जल प्रबंधन  करने का काम करते हैं

.हम इन वनस्पतियों को बचाते हुए आपने काम  की फसलें इनके सहारे उगा कर अपनी रोटी पैदा कर लेते हैं अनेक आदिवासी अंचलों में आदिवासी लोग इसी प्रकार हजारों सालों से अपनी आजीविका  चला रहे हैं. वे एक और जंगलों को बचाते हैं और अपनी रोटी भी पैदा करते हैं .

अब मान लीजिए पहले साल से हमारे खेतों में पवार का
ने एक ग्राउंड कवर बना कर रखा है तो हम आसानी से इसके ढकाव  में गेंहू की फसल ले सकते हैं.

यह कवर जमीन की गहरे तक जुताई कर देता है ,सभी अन्य वनस्पतियों जिन्हें हम खरपतवार कहते है का नियंत्रण कर देता है इसके नीचे असंख्य जमीन को पोषक तत्व  प्रदान करने वाले जीवजन्तु ,सूख्श्म जीवाणु रहते हैं यह नमी को संरक्षित रखता है .इसके अवशेष जैविक खाद देते हैं .

इसके ढकाव में बरसात के बाद गेंहू के बीजों को सीधा नंगा ही छिडक देने से गेंहू की फसल पक  जाती है एक एकड़ में 40 किलो बीज की जरूरत है .गेंहू के बीजों को पवार की फसल पकने के करीब 25 दिन पहले डालना चाहिए जब गेंहू को उगने के लिए पर्याप्त नमी रहती है .

इसके बाद पवार की जब फलियाँ पकने लगती है उन्हें काट लिया जाता है  उसके बीज अलग कर लिए जाते हैं जो अनेक काम में आते हैं .कुछ बीजों को कवर क्रोप के लिए खेत में ही छोड़ दिया जाता है .

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Wednesday, August 8, 2018

जंगली खेती धान -गेंहू -मूंग चक्र

जंगली खेती 

धान -गेंहू -मूंग चक्र

जुताई नहीं ,खाद नहीं ,जहर नहीं , जल भराव नहीं ,रोपा नहीं  

विश्व प्रसिद्ध जापान के कृषि वैज्ञानिक मसानोबू फुकुओका की विधि का टाइटस नेचरल फार्म होशंगाबाद में भारतीयकरण। 31 साल का अनुभव। 

धुनिक वैज्ञानिक खेती में आज कल यह चक्र बहुत प्रचलित है किन्तु इसमें जुताई ,खाद ,जहरों ,रोपाई ,निंदाई ने किसानो की कमर तोड़ दी है। इस से खेत मरुस्थल और आहार जहरीला हो रहा है। इसे आसानी से जंगली खेती में बदला जा सकता है जिसमे जुताई ,खाद ,जहर ,रोपाई ,निंदाई की जरूरत नहीं है सिंचाई भी धीरे धीरे बंद हो जाती है।

धान को हार्वेस्टर से काटने के बाद सीधे गेंहूं के बीज बिखरा दिए जाते हैं साथ में 2 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से रिजका (अल्फ़ा अल्फ़ा ) के बीज भी बिखरा दिए जाते हैं। ऊपर से धान का पुआल आड़ा  तिरछा फैला दिया जाता है। सिंचाई कर दी जाती है।
धान के पुआल में से गेंहू निकल रहा है। 
गेंहू की फसल में धान की बीज गोलियां
डाली जा रही हैं। 


गेंहू की नरवाई में से निकलती मुंग की फसल 
गेंहू उग कर ऊपर आ जाता है रिजका भी उग जाता है रिजका एक तो नत्रजन देने का काम करता है साथ में यह घासों को रोक देता है नमि को भी संरक्षित करता है। उत्पादन भी सामान्य मिलता है।
 जब गेंहू में बालें निकल आती हैं उसमे धान के बीजों की बीज गोलियां बना कर डाल  दिया जाता है जो वहां सुप्त अवस्था में सुरक्षित पड़ी रहती हैं। इसी समय यहां मुंग के बीजों को भी सीधा बिखरा दिया जाता है। गेंहू को हार्वेस्टर से काटने के बाद नरवाई को पेठा चला कर वहीं सुला दिया जाता है। इसके बाद सिंचाई कर दी जाती है। जिस से मुंग उग  आती है रिजका वहां घासों को रोकने के लिए हाजिर रहता है।
रिजका के साथ धान की फसल 

धान की खड़ी फसल में गेंहू बोया जा रहा है 

जब मुंग की हार्वेस्टिंग हो जाती है उस समय धान भी उग आती है साथ में रिजका वहां घास रोकने और  धान के लिए नत्रजन देने के लिए हाजिर रहता है। मुंग के टाटरे  को भी उगती धान के ऊपर  फेंक दिया जाता है। जब धान में बाली  निकल आती हैं तब उसमे गेंहू और रिजका के बीज भी पुन : डाल  दिए जाते हैं। यह चक्र साल दर साल चलता रहता है। इसमें बीच बीच में पेड़/सब्जियां  भी लगा  सकते हैं।