Tuesday, March 27, 2018

हरित क्रांति बनाम जंगली खेती

हरित क्रांति बनाम जंगली खेती 

मारे देश में आज़ादी  के बाद जब देश आज़ाद  गया था तब देश के सामने स्थाई विकास का बड़ा मसला था। उन दिनों अधिकतर लोग गांव में रहते थे जो खेती किसानी पर आश्रित थे। इसलिए सरकार ने खेती किसानी को विकास का प्रमुख मुद्दा बना कर उस पर काम करना शुरू किया था।

हमेशा से हमारे देश में  विकास ,विकसित देशों की नकल से होता रहा है इसी आधार पर खेती की तकनीक भी विदेशों से भारत में लाई गई तकनीक जो ट्रैक्टर से होने वाली गहरी जुताई , बड़े बांधों से की जाने वाली भारी  सिंचाई ,यूरिया और हाइब्रिड बीजों पर आधारित है। जिसे हरित क्रांति नाम दिया गया।


हम भी सत्तर के दशक में इस सरकारी खेती के जाल में फंस गए थे। हमने कुआ खुदवाया ,लम्बी  बिजली की लाइन लाकर मोटर पम्प लगाकर हरित क्रांति का अभ्यास शुरू किया।

उन दिनों भी हमे गांव के किसानो से विरोध का समना करना पड़ता था। क्यों की किसान आसानी से बेलों से खेत बखर कर अनाज की खेती कर संतुस्ट थे। वे अपने खेतों अनाज , दालें ,तिलहन ,चारा सब आसानी से पैदा कर लेते थे। बरसात आधारित खेती होती थी। हमने भी अपने खेतों में हरित क्रांति के पूर्व परम्परगत देशी खेती का करीब ५ साल अभ्यास किया था। कोई कमी नहीं थी।


जब हमने हरित क्रांति का अभ्यास शुरू किया पहले साल फसलों को देखने गांव के लोग इकट्ठे हो गए थे। हमारे गांव में हमने इस खेती की शुरुवाद  की थी। पहले किसान इसका विरोध करते थे बाद में धीरे धीरे सभी सरकारी मदद से इसके चंगुल  में फंसते चले गए।

हरितक्रांति में हमने यह पाया  की इसमें खर्च अधिक  और लाभ कम था। इस से हमारी लागत में यदि हम अपनी महनत ,खेत की लागत को जोड़ दें और पर्यावरणीय हानि को घटा देते हैं तो हमे  पहले साल से घाटा  दिखाई देता है। पहले साल उत्पादन अधिक दिखाई देता है किन्तु कुल मिलकार घाटा ही रहता है।

हमने १५ साल बड़ी लगन और महनत के साथ हरित क्रांति की खेती में ताकत लगाई किन्तु हार गए। हमारे खेत कांस से भर गए थे। लागत बढ़ती जा रही थी हमारी हालत एक जुआरी  और शराबी के माफिक हो गयी थी। हमारे सामने खेती छोड़ने के आलावा कोई उपाय नहीं बचा था। ऐसे में में हमे The one straw revolution  पढ़ने को मिली।


यह किताब जापान के जाने माने कृषि वैज्ञानिक श्री मासानोबू फुकुओकाजी के अनुभवों पर आधारित है। यह कुदरती खेती (जंगली खेती ) पर आधारित है।  इसने हमे अपनी गलतियां जो हमने हरित क्रांति में की  थी का अहसास दिला दिया हमने तुरंत हरित क्रांति को छोड़ दिया। इस किताब से हमे पता चला की जुताई करने से बरसात का पानी खेत में नहीं जाता है  वह बह  जाता है अपने साथ खेत की मिटटी (जैविक खाद ) को भी  बहा  कर ले जाता है। इससे एक बार की जुताई से खेत की आधा ताकत बह जाती है। इसलिए उत्पादन घटता जाता है  लागत बढ़ती जाती है और घाटा बढ़ता जाता है।

हरित क्रांति से हमारे उथले कुए सूख गए थे खेत रेगिस्तान बन गए थे। हमे बहुतआर्थिक हानि  हुई थी हमारी कीमती जमीन (शहरी प्लाट ) बिक चुकी थी। किन्तु जैसे ही हमने  जंगली खेती का अभ्यास शुरू किया हमे सुकून मिल गया.

जुताई ,खाद ,सिंचाई ,कीट और खरपतवार नाशकों का खर्च खत्म हो गया केवल बीज फेंकने और फसल काटने का ही खर्च बच गया था। जब हम जंगली खेती के तीसरे साल में थे जापान से फुकुओका जी हमारे खेतों पर आये थे। उन्हें भारत के भूतपूर्व प्र्धान मंत्री स्व राजीव गांधीजी ने देशिकोत्तम से सम्मानित किया था। उन्होंने हमे दुनिया भर में जंगली खेती के चल रहे कामों में न. वन दिया था।


जंगली खेती करने से सबसे बड़ा फायदा पानी का होता है हमारे सूखे गए देशी कुए पानी से भर गए दूसरा फायदा खेत हरियाली से भर जाते हैं जिसेसे  चारा ,हवा ,जलाऊ ईंधन मिलने लगता है तीसरा हमे जंगली रोटी मिलने लगती है जो अनेक बिमारियों को ठीक करने की ताकत रखती है।

जंगली खेती करना बहुत आसान है एक बार बरसात से पूर्व अनेक बीजों को मिलकर उन्हें क्ले (कीचड ) से बीज गोलिया बना कर खेतों में बिखेर दिया जाता है। फिर एक के बाद एक  फसल को पकने के बाद काट लिया जाता है और कृषि अवशेषों को वापस खेतों में फेंक दिया जाता है। अनेक बीजों में जंगली ,अर्ध जंगली फलों ,सब्जियों अनाजों ,दालों ,चारे के सभी बीज सम्मलित रहते हैं।

हरित क्रांति बहुत बड़ा धोखा है इस से एक और जहां सूखा बाढ़  मुसीबत बने हैं नदियां सूख रही हैं। वहीं किसानो की आत्म हत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रही है। जुताई के कारण  खेत खोखले हो गए हैं उनमे खोखली फसले पैदा हो रही हैं जिस से नवजात बच्चों की मौत ,कुपोषण ,मोटापा ,मधुमेह ,कैंसर आम होते जा रहा है।
असल में हरित क्रांति का अनाज खाद्य समस्या को कम नहीं वरन बढ़ा रहा है यह खोखला है। इसमें पोषण नहीं है। जबकि जंगली अनाज इसके विपरीत स्वास्थवर्धक ,स्वादिस्ट ,रोग निरोग शक्ति देने वाला है।

जंगली खेती का उत्पादन ,उत्पादकता और गुणवत्ता का मुकाबला कोई भी जुताई से होने वाली खेती नहीं कर सकती है। यह सरल ,सूंदर और टिकाऊ है।