ग्राउंड कवर क्रॉप
खरपतवारों के बारे में भ्रांतियां
हजारो सालो से जब से मानव ने जुताई आधारित खेती को करना सीखा है तब से किसानों और खरपतवारो के मध्य दुश्मनी चल रही है।
अधिकतर किसान और कृषि वैज्ञानिक यह मानते हैं की खरपतवारें हमारी फसलों का खाना खा लेती हैं इसलिए पैदावार प्रभावित होती है इसलिए वो चुन चुन कर उन्हें निकालते रहते हैं।
जबकि कुदरती सत्य यह है की खरपतवारें (ग्राउंड कवर क्रॉप ) जमीन का सुरक्षा कवच है। इसलिए हम धरती माता की पूजा करते हैं इसके पीछे सत्य यह है की धरती माता हमारे शरीर के माफिक जीवित है वह हमारे शरीर की तरह खाती पीती है और साँस लेती है।
जापान के मस्नोबू फुकुओका जी द्वारा लिखी उनके अनुभवो पर आधारित किताब |
खरपतवारें धरती माता को हरियाली से ढांक लेती हैं जिस से धरती की समस्त जैव -विविधताएं सुरक्षित होकर तेजी से पनपती है जो धरती को पोषकता प्रदान करते हुए उसे उर्वरक और पानीदार बना देती है। इस ढकावन के कारण धरती धूप ,ठण्ड , बरसात और तेज हवाओं से सुरक्षित हो जाती है।
किन्तु जब किसान खरपतवारों को दुश्मन समझ कर जमीन को खूब जोतता और बखरता है तो भूमि कणो का आपसी सम्बन्ध टूट जाता है वे बिखर जाते हैं जो हवा और पानी से बह और उड़ जाते हैं। इस से जमीन की आधी ताकत एक बार की जुताई से नस्ट हो जाती है और खेत मरुस्थल में तब्दील हो जाते है।
मरुस्थली खेत में बिना सिंचाई ,उर्वरक खाद के फसलों का उत्पादन नहीं होता है और और जो होता है वह प्रदूषित रहता है।
जुताई के कारण बारीक मिटटी बरसात के पानी के साथ मिल कर कीचड में तब्दील हो जाती है जिसके कारण बरसात का पानी जमीन में सोखा नहीं जाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ मिट्टी (जैविक खाद ) को भी बहा कर ले जाता है।
मरुस्थली जमीन में गैर-कुदरती ,बे स्वाद ,रोग पैदा करने वाली फसलें पैदा होती हैं। आज जितने भी हम वृक्ष विहीन रेगिस्तान देख रहे है वो सभी जमीन की जुताई आधारित खरपतवारों को मारकर की जाने वाली खेती के कारण है।
यही कारण है की आज कल बिना जुताई की खेती का चलन शुरू हो गया है। जिसमे बिना जुताई की कुदरती खेती का पहला स्थान है।