Wednesday, September 30, 2015

NATURAL SOIL TESTING

NATURAL SOIL TESTING
ऋषि खेती मृदा परिक्षण 

म अपने खेतों में मिट्टी की जांच वहां उपस्थित केंचुओं की संख्या से करते हैं। केंचुए जमीन के अंदर रहते है वे जमीन को बहुत गहराई तक छिद्रित बना देते हैं। उन्हें हम सीधे गिन  नहीं सकते हैं किन्तु हम उनके घरों को गिन  सकते हैं। प्रति मीटर छेत्र में केंचुओं के घरों को गिन  कर हम अपनी मिट्टी का परिक्षण कर लेते हैं। जितने अधिक केंचुए के घर रहते है उतने अधिक केंचुए वहां रहते है।  इस से जमीन में जैविकता पता चल जाती है। इस जैविकता के अनुसार ही हम फसलों का चुनाव करते हैं।
No of clodes shows house of earthworms per square meter
is proof of rich soil.
वैज्ञानिक मृदा परिक्षण में खेतों में उपस्थित जैविकता ,का पता नहीं चलता है। वैज्ञानिक यह बताने में असमर्थ रहते हैं की प्रति मीटर हमारे खेतों में कितने केंचुए आदि है जो हमारे खेतों को उर्वरक और पानी   दार बनाते है।
यह विधि बहुत आसान है इसे एक साधारण किसान आसानी  से परख सकता है। केंचुए के घर बरसात के पानी को जमीन की गहराई तक ले जाने में बहुत सहयोग करते हैं। वे कुदरती टिलर हैं।
मशीनी जुताई करने से ये केंचुओं घर टूट जाते हैं इसलिए खेतों में बरसात का पानी नहीं समाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खेत की उपजाऊ मिट्टी को भी बहा  कर ले जाता है।
हम पिछले ३० सालो से बिना जुताई की ऋषि खेती कर रहे हैं हमारे खेत में एक भी मीटर जगह नहीं है जहाँ केंचुओं के घर  नहीं हों किन्तु जब हम जुताई करते थे एक भी मीटर ऐसी जगह नहीं थी जहाँ केंचुए रहते हों।
जमीन जुताई बहुत हिंसात्मक रहती है यही कारण है की किसान आत्महत्या कर रहे हैं।



Tuesday, September 22, 2015

Berseem

Berseem (Trifolium alexandrinum)
Local name: Egyptian clover
Berseem is one of the most important fodder crops and has been rightly described as the king of fodders. It  is  highly  esteemed fodder  which  has a special place in animal husbandry programmes throughout the country. Though a migrant from Egypt, it has established in this region for the last 60 years and may well be considered as a native of India. It has many desirable qualities. Ten to fifteen kg of fodder alone with straw constitutes a maintenance ration. It can support growth and milk production on ad lib feeding, balanced by straws.
It does not tolerate acidic soils but grows in other kinds of soils except usar lands. The crop is sown from middle of September to end of October in plains and from middle of August to first week of September in hills. This crop requires a thorough preparation of land. Berseem is now available in another form called Giant berseem. The advantage of giant berseem is that lesser irrigation is required. While the seed rate of ordinary diploid berseem is 20-25 kg that of giant berseem is 30-35 kg per hectare.
The crop is ready in 55-60 days after sowing for the first cutting. Subsequent cuttings are taken at 30 days interval during winter and spring. In all 5-6 cuttings can be obtained up to middle of May. The total yield obtained may vary between 500-600 quintals/ hectare. For taking the seeds, plots are left uncut after February and in that case 4-5 quintals seeds per hectare may be obtained. Tetraploid berseem has been considered as high yielding variety.
Ordinary diploid and tetraploid or giant berseem are the varieties of the berseem. Amongst the various strains of giant berseem, strain 526 has shown the better result.
Nutritive value
Berseem is highly  palatable fodder and it  contains 17% crude protein and 25.9% crude fibre. The total digestible nutrients content is 60-65%. Berseem contains saponins, if fed in high quantity to ruminants leads to bloat.
Varieties
Mescawi, Varda, JB-1, 2 and 3, UPB 103, Pusa giant, Khadarvi, Chindwara

किसानो की आत्महत्याओं की खबरें

किसानो की आत्महत्याओं की खबरें 


ज हर कोई किसानो के द्वारा की जा रही आत्महत्याओं की अनदेखी कर रहा है किन्तु कल निश्चित हर किसी को इस पर ध्यान देना लाजमी हो जाएगा ।  क्योंकि आत्महत्याओं के पीछे धरती माँ की बीमारी है वह खेती करने की गैर कुदरती तकनीक  के कारण बीमार होकर बेहोश हो गयी है। जो जहर आज किसान गटक कर मर रहे हैं वह जहर हमारी रोटी में भी तेजी से घुल रहा है। पंजाब जिसे देश का सबसे उन्नत प्रदेश माना जा रहा है वहां हर घर में कैंसर का खतरा मंडरा रहा है।  इसका मूल कारण रासायनिक जहर हैं जो खेतों में डाले जा रहे हैं।
मध्य भारत भी इस से अछूता नहीं सोयाबीन ,उड़द ,मूंग धान आदि फसलें नस्ट हो गयी हैं।  अनेक किसानो केआत्महत्याएं करने मामले अब यहां  भी सुनायी देने लगे हैं। आमआदमी इसलिए इसलिए आँख और कान बंद कर रहा है क्योंकि वह सोचता है की में किसान नहीं हूँ। किन्तु जब यह जहर हमारे खून में पाया जाने लगेगा और डाक्टर कहेगा की आप को कैंसर है  तब बहुत देर हो चुकी होगी। इसलिए हमे उन प्रयासों में सहयोग करने की जरूरत है जिनसे खेत और किसान की मौत रुके।

हम विगत ३० सालो  से आत्मनिर्भर कुदरती खेती कर रहे हैं हमारी धरती माँ भी जुताई और रासायनिक जहरों के कारण मरणावस्था में पहुँच चुकी थीं किन्तु कुदरती खेती के ज्ञान ने हमारे खेतों और हमको  को बचा लिया है हम चाहते हैं आमआदमी जो रोटी खाता  है वह इस हकीकत को समझे इस से मुंह न मोड़े। 

Monday, September 21, 2015

कुदरती खेती

कुदरती खेती

खेती करने का यह तरीका आधुनिक वैज्ञानिक  कृषि की तकनीकों के सर्वथा विपरीत है। यह वैज्ञानिक जानकारी तथा परम्परागत कृषि विधियों दोनों को बेकार सिद्ध कर देता है। खेती के इस तरीके, जिसमें कोई मशीनों , जैविक  खादों तथा रसायनों का उपयोग नहीं होता  के द्वारा भी औसत जापानी खेतों के बराबर या कई बार उससे भी ज्यादा पैदावार हासिल करना संभव है। इसका प्रमाण यहां आपकी आंखों के सामने है।
फुकुओका

धान की खड़ी फसल में क्लोवर और गेंहूँ की इंटरक्रॉपिंग (फुकुओका फार्म )

धान की खड़ी  फसल में क्लोवर और गेंहूँ की इंटरक्रॉपिंग (फुकुओका फार्म )





Thursday, September 17, 2015

ऋषि पंचमी का महत्व

ऋषि पंचमी का महत्व 

ज ऋषि पंचमी है।  इस पर्व में महिलाएं बिना जुताई के अनाज का सेवन करती है इसमें कांस घास (खरपतवार ) की पूजा होती है और आधा झड़ा (खरपतवार ) की दान्तोन  बनाई जाती है जिस से अनेक बार दांत  साफ़ किए जाते है। इन सब बांतों का खेती किसानी आधारित जीवन संस्कृति में बहुत महत्व है।  यह पर्व हमे बताता हैं की जब हम जमीन की जुताई करते है उस से धरती से जुडी असंख्य जैव विविधताओं की हिंसा होती है। कांस घास खेतों का मरू होने का प्रतीक है। वह बताती है की जुताई करने के कारण बरसात का जल जमीन में नहीं जाता है वह बह जाता है।  कांस की जड़ २५-३० फ़ीट नीचे से पानी ऊपर लाने  का काम करती है। 

खेती  करने के लिए जमीन की जुताई खरपतवारों को मारने  के लिए की जाती है इस से असंख्य जीव जंतुओं और सूक्ष्म जीवाणुओं की हत्या हो जाती  है यह परमाणु बम से होने वाली हिंसा से भी बड़ी हिंसा है। बिना जुताई का अनाज कुदरती अनाज होता है। हमारे इलाके में कुदरती धान बहुत होती थी उसे कोई बोता नहीं था यह आज भी कहीं कहीं मिल जाती है। इसके  भात को कच्चे दूध के साथ सेवन किया जाता है। यदि इसे नियमित रूप से सेवन  किया जाये तो कैंसर जैसे असाध्य रोग भी ठीक हो जाते है।


जमीन की जुताई करने से जमीन का कार्बन (जैविक खाद ) गैस बन कर उड़ जाता है जो ऊपर कम्बल की तरह आवरण बन कर धरती को गर्म कर देता है.जिसके कारण जलवायु परिवर्तन की गंभीर  समस्या उत्पन्न हो रही  है।  गैर कुदरती खान पान के कारण ही अनेक प्रकार की बीमारियां जन्म ले रही है।

हम विगत ३० साल से बिना जुताई की कुदरती खेती (ऋषि खेती )कर रहे हैं हमारे खेत कांस घास से भरे थे जुताई बंद कर देने से वह खतम हो गयी है अमेरिका में भी तीन चौथाई जमीन कान्स  में घास में दब गयी है यह पनपते मरुस्थल की निशानी है। हमारे देश में पनपते मरुस्थल ,जलवायु परवर्तन, किसानो की आत्महत्या का केवल एक कारण  है वह है जमीन की जुताई जो हमे आज का पर्व बताता है। 

संजीव त्रिपाठी जी का उदाहरण


ऋषि खेती 

संजीव त्रिपाठी जी का उदाहरण 

जब हम अपने खेतों को अपने हाल पर छोड़ देते हैं तो वे अपने आप "ऋषि खेतों "  में तब्दील हो जाते   हैं। ऐसा ही संजीव भाई के खेतों में हुआ है।  इन खेतों में परंपरागत खेती होती थी किन्तु जुताई के कारण खेत मरने लगे थे।  इसलिए यहां खेती बंद हो गयी थी।


Displaying IMG_20150913_083352.jpgभारतीय परंपरागत खेती  किसानी में जुताई के कारण मर रहे खेतों में किसान जुताई  बंद कर उन्हें कुदरत के भरोसे  छोड़  देते थे। ऐसा करने से खेत पुन : जीवित हो जाते थे उनमे फिर से फसलों का अच्छा उत्पादन होने लगता था।

जुताई करने से बरसात का पानी जमीन के द्वारा सोखा नहीं जाता  है वह तेजी से बहता है अपने साथ खाद को भी बहा कर  जाता है। इस कारण सूखे और गीले खेतों की समस्या निर्मित हो जाती है। संजीव भाई  के खेतों में कांस घास है जो इस  इस बात की पुस्टी करती   है।  कांस घास की जड़ बहुत गहराई तक जाती हैं (25 -30 फ़ीट ) तक।  हमारे पूर्वज बताते हैं  कांस खेतों में  फूलने लगे इसका मतलब है पानी बहुत नीचे चला गया है।

Displaying IMG_20150913_110549.jpgहमारे प्रदेश में ऋषि पंचमी के पर्व में कांस घास की पूजा  होती है। जिसमे फलहार रूप में बिना जुताई के कुदरती अनाजों के सेवन की सलाह दी जाती है।  इसका आशय यह है जुताई हानिकारक है। जताई नहीं करने से खेतों की जलधारण शक्ति वापस आ जाती है और कांस गायब होने लगती है।  ऐसा कुछ संजीवजी के खेतों को देख कर लग रहा है। कांस घास जा रही है और अच्छी वनस्पतियां आ रही हैं।

फुकूओकाजी अनेक बार अपनी कुदरती खेती को "कुछ मत करो " खेती कहते हैं।  उनका मतलब यह है जब हम कुदरत के भरोसे खेती को छोड़ देते हैं तो अपने आप खेती हो जाती है।

कुदरती खेती करने से पहले हमारे खेत भी कांस घास से भर गए थे जुताई बंद करने से वो अपने आप ताकतवर और पानीदार हो गए है।

कांस घास में खेती करना बहुत आसान है बीजों को सीधे या बीज गोलियां बना कर कांस घास के ढकाव में बिखरा दिया जाता है। उसे काट काटकर आड़ा तिरछा फेला दिया जाता  है।  फसलें उगकर कटे घास के ढकाव के ऊपर  आ कर सामान्य  उत्पादन देती हैं।  जैसा की नीचे चित्र में दिखाया गया है।
गेंहूँ की नरवाई के ढकाव से निकलते मूंग के नन्हे पौधे 
यह ढकाव खरपतवार नियंत्रण करता है ,फसलों के रोग को दूर करता है नमी को संरक्षित करता है और जैविक खाद बनता है। इस ढकाव के नीचे केंचुए सहित असंख्य लाभकारी जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े रहते हैं जो फसलों के सभी पोषक तत्वों की  आपूर्ति कर देते है।   जब खेत अच्छे हो जाते हैं कांस गायब हो जाती है। हमारे खेतों में जहाँ कांस  सिवाय कुछ नजर नहीं आता था वहां अब कांस का एक तिनका भी नजर नहीं आता है। जब हम ऋषि खेती के  तीसरे साल में थे जापान के ऋषि खेती के प्रणेता फुकूओकाजी हमारे खेतों में पधारे थे  हमारी खेती  को उन्होंने  नम्बर वन का खिताब दया था। उनका कहना था मै अभी अमेरिका से  आ रहा हूँ। जमीन की जुताई  के कारण अमेरिका तीन चौथाई से अधिक मरुस्थल में तब्दील हो गया है। उसकी निशानी कांस घास है। उन्हें नहीं मालूम है  कांस घास में खेती कैसे करें पर आपने वह कर दिखाया है इसलिए हम आपको नंबर वन दे रहे हैं।



Saturday, September 12, 2015

Friday, September 4, 2015

तवा कमांड मरुस्थल में तब्दील हो रहा है !

 तवा कमांड मरुस्थल में तब्दील हो गया  है !

ऋषि खेती से ठीक करें। 

हरियाली है जहाँ खुशहाली है वहां 

The One Straw Revolution (एक तिनका क्रांति )
होशंगाबाद के तवा बांध के सिंचित खेत आम आदमी की नजर में बहुत विकसित नजर आते हैं,किन्तु हकीकत यह है की इन खेतों की उर्वरकता और जलधारण  छमता खत्म हो गयी है।  इनमे रासायनिक जहरों का बहुत अधिक प्रदूषण हो गया है। पोषक तत्व नस्ट हो गए हैं। 

ये खेत अब रसायनो और बाँध के पानी पर पूरी तरह आश्रित हो गए है।  एक समय था जब इन खेतों में ७ से लेकर १२ अनाजों की कुदरती खेती होती थीअब केवल गेंहू ही ऐसी फसल है जो  हो रही है जिसमे उत्पादन हर साल घट रहा है। ये वैज्ञानिक खेती का नमूना है।

ऐसा वैज्ञानिक खेती के कारण हुआ है। जिसमे पेड़ों को काटना , गहरी जुताई ,अंधाधुन्द रसायनो का उपयोग, भारी  सिंचाई, नरवाई पुआल आदि को जलाना प्रमुख है। 

जब खेतों को मशीनो से गहरा जोता  जाता है तब बरसात का पानी जमीन में नहीं सोखा जाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खेत की खाद को बहा  कर ले जाता है। इस से खेत मुरदार हो कर सूख जाते है वे मरुस्थल में तब्दील हो जाते हैं। ऐसा ही यहां हुआ है। 

हम पिछले तीस साल से बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे है जिसे हम ऋषि खेती कहते हैं।  इस खेती में जमीन की जुताई नहीं की जाती है इस कारण बरसात का पूरा पानी जमीन के द्वारा सोख लिए जाता है पानी के बह  कर बाहर नहीं जाने के कारण खेतों की खाद का बहना रुक जाता है। इस से अपने आप खेत खतोड़े  और पानीदार हो गए हैं। इस से खेतों में साल भर हरियाली रहती है जिसके कारण खेत असंख्य जैवविविधताओं से भर गए है जो खेतों में पोषक तत्वों की आपूर्ति कर देते हैं।  हमारे खेतों की मिट्टी में असंख्य नत्रजन तथा अन्य पोषक तत्वों को प्रदान करने वाले सूख्स्म जीवाणु हैं जो लगातार खेतों को खतोड़ा बना  रहे हैं। 

हम खरपतवारों को मारते  नहीं है तथा पुआल और नरवाई आदि को जहां का तहाँ पड़ा रहने देते हैं जिस से खेतों को अतिरिक्त खाद मिल जाती है। जिस से हमे फसलों में बहुत अच्छा उत्पादन मिलता है। चारे के पेड़ों की हरयाली और पशु पालन  इसमें चार चाँद लगा रहे हैं।  

ऋषि खेती करने से पहले हम भी वैज्ञानिक खेती करते थे जिस से हमारे खेत मरू हो गए थे जो अब सुधर गए हैं। हमारे देश में खेती किसानी में घट रही आमदनी का मूल कारण जमीन की जमीन की जुताई है इसे बंद कर हम खेतों की खोयी ताकत बिना लागत के  से वापस ला सकते हैं। 






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