Tuesday, January 15, 2008

लाल गेंहूं और हरित क्रांति.

लाल गेहूं और हरित क्रान्ति

महोदय,

कल तक हमारे नेता, येाजनाकार, तथा हरित क्रान्ति के वैज्ञानिक यह कहते थकते नहीं थे कि हमने खेती मे इतनी तरक्की करली है कि पहले हमे खाने के लिये अनाज बाहर से बुलाना पड़ता था पर अब हम अनाज बाहर देषों को निर्यात करने लगे है।

अब क्या हुआ कि फिर हमे बाहर से अनाज वह भी धटिया स्तर का बुलाना पड़ रहा है। इस विषय पर सरकार का जवाब कुछ भी हो किन्तु यह तो स्पष्ट हो गया है कि हरित क्रान्ति मे कहीं ना कहीं कुछ खोट तो जरुर है। हमारा उत्पादन अब बढ़ने की अपेक्षा धटने लगा है।

पिछले कुछ बरसों से किसानो के द्वारा की जा रही आत्म हत्याअेंा के पीछे भी यही कारण उभर के सामने आये हैं कि आधुनिक वैज्ञानिक ख्ेाती अब धाटे का सौदा साबित हो रही है इसलिये किसान फसलों के लिये जो कर्ज लेते हैं वह पटा नहीे पाने के कारण आत्म हत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। पिछले कुछ बरसों मे करीब एक लाख से उपर किसान आत्म हत्या कर चुके हैं।

हाल ही मे माननीय मुख्यमन्त्री महोदय ने विदेषों से आयातित गेहूं की गुणवत्ता पर जो सवाल उठाया है वह काबिले तारीफ है। ऐसा क्या है उस गेहूं मे जिसे हम खराब कह रहे हैं। केवल लाल होने से गेहूं खराब नहीं होता है। गेहूं की गुणवत्ता उसके स्वाद पर निर्भर रहती है। जो गेहूं कुदरति तरीके से उगाया जाता है वह स्वादिष्ट हेाता है, तथा जो गेहूं कमजोर जमीन मे रासायनिक उर्वरकों, कीटनाषकों, खरपतवार नाषकों जैसी अनेक दवायों के बल पर उगाया जाता है वह अपना असली स्वाद खो देता है। स्वाद का सम्बन्ध सीदे उसकी गुणवत्ता से रहता है।

हमारा गेहूं देखने मे भला सफेद हो किन्तु यदि स्वादिष्ट नहीे है तो वह भी उतना ही खराब है। लाली लिये हमारे जलालिया गेहूं के स्वाद का कोई जवाब नहीं था। यह आयातित गेहूं धटिया इसलिये है क्योकि यह प्रदूषित है। इसकी जांच कर

इस पर उचित कार्यवाही होना चाहिये। इसी प्रकार देषी गेहूं की भी क्वालिटी की

गारन्टी जनता को दी जाना चाहिये। भोपाल गैस काण्ड का मुआवज़ा लेते हम थक नहीं रहे हैं और वही विष खेतों में खुले आम उण्डेल रहे हैं।

शालिनी एवं राजू टाईटस

कुदरति खेती के किसान

खोजनपुर, होषंगाबाद.म.प्र.

BURNING WHEAT STRAW नरवाई की आग मे झुलसता तवा का क्षेत्र

             नरवाई की आग मे झुलसता तवा का क्षेत्र
                    BURNING WHEAT STRAW

गेहूं और सोयबीन की फसल के बाद तवा कमाण्ड के क्षेत्र मे जहां देखो वहां आग ही आग नज़र आयेगी। यह आग खेती  के बाद बची नरवाई को जलाने के कारण फैलती है इस आग से एक ओर जहां अनेक किसानों की फसले तथा झोपडि़यां तबाह हो जाती हैं वहीं ना चाहते हुए अनेक किसानों के पशुओं  का चारा आदी सब नष्ट हो जाता है।यह आग मीलों तक अनियत्रित हवा के बहाव से बढ़ती जाती है। इस आग के कारण अब खेतों मे वृक्षों को पालना नामुमकिन हो  गया है। कोई किसान सब्जी या फलों की खेती  भी इस आग के कारण नहीं कर पाता है। खेतों मे केवल सोयाबीन और गेहूं ही नहीं रहता है। अनेक किस्म की जैवविविधतायें इसमे पनपती हैं। जैसे सांप , चूहे ,छिपकलियां ,मेढक ,खरगोश  ,लोमडि़यां आदि सब धीरे2 लुप्त प्राय: हो रहे हैं। सबसे अधिक मुसीबत जलाउ ईधंन की आ गई है। गांव मे खाने को अनाज तो है किन्तु पकाने की गंभीर समस्या है।

नरवाई की आग 


कहने को तो यह आधुनिक वैज्ञानिक खेती "हरित क्रांति " है। जिसमे हरियाली बुरी तरह नष्ट हो गई है। हमारे सामने सबसे बड़ा प्रश्न  यह है कि आखिर किसान क्यों अपने खेतों मे नरवाई को जलाते हैं जबकि सब यह जानते हैं कि नरवाई खेतों मे सड़ जाये तो खाद बन जाती है।

असल मे इसके पीछे "हरित क्रांति " के वैज्ञानिकों का हाथ है उनका मानना यह है कि एक फसल के बाद दूसरी फसल लगाने के पहले खेतो की अच्छी सफाई कर उसे गहराई तक जोत देना चाहिये जिससे पिछली फसल से उत्पन्न खरपतवारों एवं बीमारी के कीड़ो का पूरी तरह सफाया हो जाये। यह एक भ्रान्ति है। इसी भ्रान्ति के रहते किसान खेतों मे आग लगाते हैं।इससे उन्हे खेतों की जुताई करने मे  आसानी हो जाती है। नरवाई जुताई के यन्त्रों मे फंसती नहीं है।

जबकि खेती  करने के लिये जुताई बिलकुल जरुरी नहीं है और करने के कारण ही खरपतवारों और कीड़ो की समस्या होती है।भूमि-छरण ,जल का बह जाना ,जैव-विविधताओं का नस्ट होना खेतों को बंजर बनाता है।

 गेंहूं की नरवाई में मुंग की खेती Growing Mung in straw.


हम पिछले 20 सालों  से अधिक समय से बिना जुताई की खेती कर रहे हैं तथा इसके प्रचार प्रसार मे लगे हैं।दुनिया भर मे अब अनेक किसान बिना जुताई की खेती करने लगे हैं इनमे चालीस प्रतिशत किसान केवल अमेरिका में हैं। ये किसान खेती के अवशेषों को जलाते नहीं हैं वरन बचाते हैं इसके मल्च के नीचे अनेक केंचुए आदि पनप जाते हैं जो खेतों को गहराई तक पोला बना देते हैं। वे इस भूमि-ढकाव में बिना-जुताई सीड ड्रिल से बुआई करते हैं।उनका कहना है ऐसा करने से उन्हे 75 % डीज़ल की तथा 50 % सिंचाई खर्च मे लाभ मिलता है। खरपतवारों और बीमारी के कीड़ों की समस्या खत्म हो जाती है।उत्पादन और गुणवत्ता मे निरन्तर सुधार होता जाता है।इस खेती से अनेक पर्यावर्णीय ,सामाजिक एवं आर्थिक लाभ जुड़े होने के कारण बिना जुताई की खेती करने वाले किसानों को अतिरिक्त अनुदान भी दिया जाता है जिसे आम के आम और गुठली के दाम कहें तो कोई अतिश्योक्ती  नहीं है। 


शालिनी एवं राजू टाईटस


BURNING WHEAT STRAW IN MID INDIA
There is tendency of farmers in mid India they burn Wheat straw after harvesting. Many houses, cattle,trees, crops,fodder are also burn due to this fire. Many helpful insects ,small animals are also dye.Soil is full of microbes is also dye.
We are doing natural farming with the help of this straw we scatter seeds directly and cover with straw getting good crop. Many farmers who adopted No-Till farming are also protecting straws and drilling seeds with the help of Zero tillage seed drill. Ground cover of straw helps in many ways it gives organic fertilizer, give protection to many helpful insects,microbes etc,hold moisture, stops runoff etc.











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*Raju Titus.Natural farm.Hoshangabad. M.P. 461001.*
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