भारतीय संस्कृति कुदरती संस्कृति है !
ऋषि खेती अपनी संस्कृति की और लोटने का जरिया है.
जल वायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से मिलेगी सीख
सीमेंट कंक्रीट ,पेट्रोलियम ,बिजली पर आधारित विकास नहीं वरन विनाश है।आने वाले कुम्भ 2016 उज्जैन से लिए गया चित्र |
ये खेती ,कुदरती वनो आधारित है। वनो में जिस प्रकार जैव-विविधतायें पनपती हैं उसी प्रकार यह खेती होती है। इसमें नहीं के बराबर मशीनो से काम होता है। इसका मूल मन्त्र यह है की हर कोई अपनी पसंद से अपना खाना पैदा करे। यह नहीं कि सब गेंहूँ और चावल पैदा करें और केवल वही खाएं। इसके कारण कुदरत का और किसानो का बहुत शोषण होता है।
गैर कुदरती खेती के कारण हमारे खेत रेगिस्तान में तब्दील हो रहे हैं और हम लोग बीमार हो रहे है किसान आत्म हत्या कर रहे हैं. हम भारत वासी बात अपनी संस्कृति की करते हैं किन्तु अपनाते विदेशी संस्कृति है।
ऋषि मुनियों ने जो हमे ज्ञान दिया है उस से हम आज तक बचे हैं। किन्तु अब जलवायु परिवर्तन और बढ़ती
गर्मी ने हमे अपनी संस्कृति की और लोटने पर बाध्य कर दिया है।
दुनिया में किसी के पास इस से बचने का कोई रास्ता नहीं है किन्तु हमारे पास अभी भी अपनी संस्कृति है जिस से हम बच सकते हैं। गीताजी में लिखा है "अकर्म " (Do Nothing ) कुदरत के साथ जीने का तरीका है।
1 comment:
ज्ञान वर्धन के लिए आभार
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