जलवायु का प्रबंधन
ऋषि खेती से रोकें ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन
विगत दिनों मुझे भोपाल में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के राष्ट्रीय सम्मलेन में बोलने का अवसर मिला। जैसा की मित्र जानते हैं की हम पिछले तीस सालो से ऋषि खेती कर रहे है। यह बिना जुताई की खेती के नाम से भी जानी जाती है। यह सम्मलेन म. प्र. सरकार की और स्व. सेवी संस्थाओं की सहायता से आयोजित किया गया था।
ऋषि खेती विषय पर बोलते हुए हमने बताया की ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज का मूल कारण धरती पर हरियाली की कमी का होना है। यह कमी मूलत: खेती में चल रही जमीन की जुताई के कारण है। जमीन की जुताई इस धरती पर सब से बड़ी हिंसात्मक प्रक्रिया है। इस से हरयाली नस्ट होती है रेगिस्तान पनपते हैं।
किन्तु जब हम जुताई बंद कर खेती करने लगते हैं तो इसके विपरीत परिणाम आते हैं हमने बोलते वक्त सेटेलाइट से ली गयी हमारे फार्म की तस्वीर को भी दिखाया की किस प्रकार ऋषि खेती करने के कारण हमारे खेत पूरे बड़े बड़े पेड़ों की हरियाली से ढंक गए हैं।
जुताई करने से खेत की जैविक खाद (कार्बन ) गैस में तब्दील हो जाती है जो आसमान में एक कम्बल की तरह आवरण बना लेती है जिस से सूर्य की गर्मी धरती पर प्रवेश तो कर लेती है किन्तु वापस नहीं जाती है जिस से गर्मी बढ़ती जाती है। दूसरा एक ओर नुक्सान है वह है भूमि छरण होता यह है जुताई के कारण बखरी हुई मिट्टी कीचड में तब्दील हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन में नहीं जाने देती है वह तेजी से बहता है अपने साथ जैविक खाद को भी बहा कर ले जाता है।
किन्तु जब बिना जुताई की खेती की जाती है तो जैविक खाद का बहना और गैस बन कर उड़ना रुक जाता है जिस से हरियाली तेजी से पनपने लगती है।
यह हरियाली एक ओर बरसात को आकर्शित करती है वहीं वर्षा के जल को हार्वेस्ट भी करती है। गर्मी को रोकती है ग्रीन हॉउस गैस को सोख कर उसे जैविक खाद में तब्दील कर देती है जिस से जलवायु का प्रबंधन हो जाता है।
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