Sunday, November 22, 2015

Letter to Shri Anil Madhav Dave M.P. Lok sabha

 सिहस्थ मेला अप्रैल 2016 "कुम्भ " उज्जैन 

सन्दर्भ :-  ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन दो दिवसीय सम्मेलन 21 -22 नवंबर भोपाल 

ऋषि खेती योजना  

प्रति ,
माननीय अनिल माधव दवे सांसद 

आदरणीय महोदय ,
सब से पहले हम आपको इस अति महत्वपूर्ण सम्मलेन के सफल आयोजन के लिए बधाई देते हैं और  फिर इस आयोजन में  ऋषि खेती को प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करने मौका देकर आपने  ऋषि खेती जो गौरव प्रदान किया है उसके लिए हम आपके बहुत आभारी है।
इस सम्मलेन से हमे पूरा विश्वाश हो गया है कि हमारा प्रदेश कुम्भ के माध्य्म से न केवल भारत को वरन पूरे विश्व को इस संकट से उबरने में नेतृत्व प्रदान करने  में सक्षम है क्योंकि उसके पास इस संकट को खड़ा करने वाली गैर कुदरती खेती को बंद कर ग्लोबल वार्मिंग और जल वायु परिवर्तन को थामने वाली विश्व में प्रथम योजना "ऋषि खेती " है। यह असली जैविक खेती है। यह बात इस सम्मेलन से उभर कर सामने आई है। 

जैसा की हम सभी जानते हैं की "कुम्भ " हमारे पर्यावरण को संरक्षण प्रदान करने वाला पर्व  है।  इसमें करोड़ों विश्वाशी इस आशय से सम्मलित होते हैं कि उन्हें एक ऐसी जीवन दायनी  डुबकी लगाने का अबसर मिलेगा जिस से उनके अंदर की तमाम गंदगी समाप्त  हो जाये । इसलिए हम प्रदेश वासियों का यह परम  कर्तव्य है कि उम उनके इस इस विश्वाश पर खरे उतरे इसलिए हमे अपनी पवित्र नदियों की रक्षा करे करने का संकल्प लेना होगा।

हमारी पवित्र नदियां तब  पवित्र होंगी  जब हम उनको जीवन देने वाली सहायक नदियों नालों को पवित्र रखेंगे। यह तब ही सम्भव है जब हम इन नदी नालो को जल प्रदान करने वाले कैचमेंट एरिया को पवित्र रखेंगे।
यह एरिया अधिकांश हमारे खेतों का है जिन्हे पवित्र होना बहुत जरूरी है क्योंकि ये खेत केवल अन्न पैदा करने का नहीं करते है ये बरसात के जल को सोख कर नदियों का पेट भरते हैं। किन्तु दुर्भाग्य से ये ऐसा नही कर पा रहे हैं उसका मूल कारण जमीन की जुताई है।

जुताई एक अजैविक हिंसात्मक प्रक्रिया इस से खेतों की जल को सोखने की शक्ति नस्ट हो जाती है बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है वह अपने साथ खेत की जैविक  खाद को भी बहा कर  ले जाता है। इसलिए खेत भूखे और नदियां प्यासी रह जाती है। इसी कारण खेत और किसान मर रहे हैं।

इसलिए हमे सर्व प्रथम खेत और किसानो  को बचाने की जरूरत है जिसे हम बिना लागत के बचा सकते हैं। इसके लिए हमे फसलोत्पादन के लिए जमीन की जा रही जमीन की जुताई को बंद करने की जरूरत है। जुताई को बंद करने से अपने आप खेतों में कुदरती खाद जमा होने लगती है खेत बरसात के जल को सोखने लगते हैं। जिसके कारण प्रदूषण कारी कृत्रिम खादों की जरूरत नहीं रहती है खेत ताकतवर हो जाते हैं वे कुदरती जल ,हवा और फसलों को पैदा करें वाले बन जाते  हैं, खेती लाभप्रद हो जाती है किसानो का घाटा  रुक जाता है इस से उनका पलायन रुक जाता है। नदियों को साल भर कुदरती जल मिलता है।

इन दिनों बिना जुताई करने की वैज्ञानिक तकनीकें उपलब्ध हैं जिसमे जीरो टिलेज कृषि सब से अधिक प्रचलन में है। जिसके बहुत अच्छे परिणाम आ रहे है। इसमें कृषि लागत ८०% कम हो जाती है सिंचाई  की मांग भी ५०% कम  जाती है। किन्तु इसकी जानकारी किसानो को नहीं कृषि वैज्ञानिको को भी नहीं है।  असली जैविक खेती बिना जुताई पर आधारित है।  बिना जुताई हर कृषि को हम "ऋषि खेती " मानते है।

ऋषि खेती शब्द बिनोबा भावे जी का दिया है। जब गांधीजी नहीं रहे थे और देश के टिकाऊ विकास का प्रश्न आया था तब विनोबाजी तीन कृषि विधियों का तुलनात्मक अध्यन कर ऋषि खेती को सबसे उत्तम पाया था।  उन्होंने बेलों से जुताई कर की जाने वाली खेती को ऋषब खेती  नाम दिया था तथा रासयनिक खेती को उन्होंने इंजिन खेती नाम दिया था।  ऋषि खेती वे उस खेती को कहते थे जो किसी भी बाहरी  बल के बिना आसानी से  की जा सके।  इसका उदेश्य सब अपना खाना स्व. अपने हाथों से उगाये हर हाथ को काम मिले। उन्होंने ऋषि खेती को "गांधी खेती " कहकर गाँवो के विकास की प्रथम कड़ी के रूप में स्थापित किया था। किन्तु सरकारों ने आयातित तेल पर आधारित खेती इंजिन खेती को ही बढ़ावा दिया जिसका  खामयाजा आज हम भुगत रहे है.

सन १९८४ -८५ में हम "हरित क्रांति " से हार गए थे हमारे पास भी आत्महत्या जैसा कोई कदम उठाने के सिवाय  कोई उपाय नहीं बचा था किन्तु उसी समय जापान के विश्व विख्यात ऋषि खेती के जानकार फुकूओकाजी के अनुभवों  की किताब "The One Straw Revolution " पढ़ने को मिली जिस से हमें पता चला की समस्या की जड़ में जमीन की जुताई है तब से लेकर आज तक हमने मुड़  कर नहीं देखा है।  अब हम नहीं हमारे ऋषि खेत बोलते हैं  हजारों लोग देश विदेश से इसे देखने आते हैं।

आज हमारा ऋषि खेत फार्म पूरी दुनिया में एक माडल बन कर खेत और किसानो को बचाने का काम कर रहा है।जिसका स्थान पहले नंबर पर है।
हमारी प्राचीन खेती किसानी हजारो साल टिकाऊ रही किन्तु "हरित क्रांति " ने इसे बर्बाद कर दिया है। इस लिए हम जैविक खेती ला रहे हैं।  किन्तु जुताई आधारित  जैविक खादों  और जैविक दवाइयों पर आधारित "जैविक खेती "  ऐसा है जैसे "आसमान से गिरे खजूर में लटके " पशु पालन खेती की रीढ़ है।
 जुताई करने और नरवाई को जलाने से पशु चारा  नस्ट हो जाता है। जुताई नहीं करने से फसलों पर छाया का असर नहीं होता है इसलिए चारे के पेड़ लगाये जाते हैं जिनसे ईंधन भी मिल जाता है।

महोदय  पर्यवरण की समस्या से निजात पाने के लिए बिना जुताई की खेती सर्वोत्तम उपाय है इसे हम ऋषि खेती कह सकते है।  यह शब्द सर्व मान्य है सबको अच्छा लगता है। हमारी संस्कृति और  परम्परा और ऋषि मुनियो की विरासत से जुडी है ।  ऋषि खेती से एक और जहाँ जलवायु संकट से लड़ सकते वहीँ यह आतंकवाद को भी खतम करने की ताकत रखती है क्योंकि  अन्न वैसा होय मन !

इसलिए कुम्भ की सफलता तब ही सम्भव है जब हम ऋषि खेती करें।

धन्यवाद
राजू टाइटस  rajuktitus @ gmail.com


5 comments:

Inder preet singh said...

राजू सर मैंने पहले भी आपसे ये सवाल किया था कि ऋषि खेती करने पर जब फसलों को कीड़े लगते हैं और फसल को चाट जाते हैं उसका इस मॉडल की खेती में क्या निदान है
मेरा दूसरा सवाल है कि मॉडल में पैदावार कितनी गिरती है
तीसरा सवाल यह है कि खेती वैज्ञानिक दावा करते हैं की इससे प्रोडक्शन कम हो जायेगी और हमारे देश को फिर से food sequirty से जूझना पड़ेगा

Inder preet singh said...

प्लीज इसका उत्तर जरूर दें

Inder preet singh said...

प्लीज इसका उत्तर जरूर दें

Inder preet singh said...

राजू सर मैंने पहले भी आपसे ये सवाल किया था कि ऋषि खेती करने पर जब फसलों को कीड़े लगते हैं और फसल को चाट जाते हैं उसका इस मॉडल की खेती में क्या निदान है
मेरा दूसरा सवाल है कि मॉडल में पैदावार कितनी गिरती है
तीसरा सवाल यह है कि खेती वैज्ञानिक दावा करते हैं की इससे प्रोडक्शन कम हो जायेगी और हमारे देश को फिर से food sequirty से जूझना पड़ेगा

Unknown said...

ऋषि करने में कीड़े नहीं लगते हैं यदि लगते हैं तो अपने आप उनके दुश्मन आकर उन्हें नियंत्रित कर लेते हैं।
इसमें पेद्वार नहीं गिरती है।
वैज्ञानिक खेती में उत्पादन बहुत गिर रहा है खेती अलाभकारी हो गयी है अनेक किसान खेती छोड़ रहे हैं उदाहरण के लिए सोयाबीन को देखिये उसका उत्पादन अब २किलो प्रति एकड़ तक आ गया है।