वैकल्पिक खेती की विधियां
जब से रासायनिक खेती की विधियों पर प्रश्न चिन्ह लगे हैं तब से अनेक वैकल्पिक विधियों की चर्चा होने लगी है। किसान खेती में चल रहे घाटे और प्रदूषण के कारण वैकल्पिक खेती की विधियों की और देखने लगे है। किन्तु समस्या यह है की अभी तक सरकारों और कृषि वैज्ञानिकों की और से ऐसी किसी भी विधि पर मोहर नहीं लगी है जो रासायनिक खेती का विकल्प बन सके।
इसी विषय को समझने के लिए हम पिछले तीस सालो से बिना जुताई की कुदरती का अभ्यास कर रहे हैं। जिसके आधार पर आज हम यह बताने में सक्षम है की किसान किस वैकल्पिक खेती को अपनाए जिस से उन्हें घाटा ना हो ,और खेत की कुदरती ताकत तथा जलधारण शक्ति में लगातार इजाफा होते जाये।
सबसे पहले हम इस बात को पूरी तरह साफ़ कर देना चाहते हैं की आज रासायनिक खेती में हो रहे घाटे और प्रदूषण के पीछे मूलत : क्या कारण है।
जुताई
रासायनिक खेती का चलन आज़ादी के बाद से ही शुरू हो गया था इस खेती को हरित क्रांति का नाम दिया गया है। खेती गहरी जुताई, भारी सिंचाई , कृषि रासायनिकों और संकर नस्ल के बीजों पर आधारित है। जिसमे जुताई सबसे नुक्सान दयाक काम है। एक बार ट्रैकटर से गहरी जुताई करने से खेत की आधी ताकत नस्ट हो जाती है। यह नुक्सान भूमि-छरण के माध्यम से होता है। होता यह है की गहरी जुताई बाद खेतों में बरसात होने के कारण जुटी हुई मिटटी कीचड में तब्दील हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन के अंदर सोखने में बाधा उत्पन्न करती है जिस के कारण पनि जमीन के भीतर ना जाकर तेजी से बहता है वह अपने साथ जुती बारीक मिटटी को भी भा कर ले जाता है। वैज्ञानिकों पता लगाया है की इस प्रकार एक एकड़ से करीब 10 -15 टन मिट्टी बहकर चली जाती है।
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