बिना -जुताई की जैविक खेती
मिटटी ,पानी और फसलों की बंपर हार्वेस्ट
जैविक खेती करने वाले किसानो के सामने खरपतवारों नियंत्रण का मुख्य मसला रहता है। इसलिए वो अपने खेतों को बार बार जोतते रहते हैं और जहां किसानों पर काम और खर्च का भार बढ़ जाता है वहीं उनके खेतों में जैविक खाद और पानी की कमी हो जाती है। जिस से खेत खराब हो जाते हैं और उत्पादन घट जाता है।
सामने से रोलर हरयाली को सुला रहा है पीछे से बिना - जुताई की बोने की मशीन बुआई कर रही है। |
जबकि बिना जुताई जैविक खेती को अपनाने से अनेक फायदे रहते हैं। इसमें किसान अपने ट्रेकटर के आगे खरपतवारों को सुलाने वाला रोलर लगा लेते हैं जो आगे से खरपतवारों को जमीन पर सुला देता है और पीछे से एक बिना जुताई की सीड ड्रिल चलती है जो बीजों को बो देती है। इस प्रकार एक बार में काम हो जाता है। इस प्रकार जहां खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है वहीं जुताई नहीं करने से भूमि और छरण बिलकुल रुक जाता है जिस से जमीन की उर्वरकता और जल ग्रहण छमता में बहुत सुधार आ जाता है।
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जबकि जुताई करने से मिट्टी धूला बन जातीहै जिस से जमीन में रहने वाली केंचुए सहित तमाम जैव विविधताएं और उनके घर जो जमीन को उर्वरकता प्रदान करते हैं नस्ट हो जाते हैं। बिना जुताई की जैविक खेती से एक बार में बोनी का काम हो जाने से खेत कम दबते हैं जबकि बार २ ट्रेकटर के चलने से जमीन बहुत दब जाती है उसकी छिद्रियता नस्ट हो जाती है।
हरे और जिन्दा भूमि ढकाव से नमि संरक्षित रहती है सिंचाई की जरूरत नहीं रहती है। इस ढकाव के कारण खरपतवारों का भी नियंत्रण हो जाता है। फसलों में लगने वाली बीमारियों के दुश्मन इस ढकाव में छुप जाते हैं जिस से बीमारियां नहीं होती हैं।
वैज्ञानिकों के सर्वेक्षणों के द्वारा यह पाया गया है की इस प्रकार फसलों का सबसे अधिक उत्पादन मिलता है तथा यह सबसे अच्छा खरपतवारों के नियंत्रण का तरीका है।
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