गौ आधारित खेती
हम गौ आधारित खेती का बहुत सम्मान करते हैं हमारा देश गौ आधारित खेती के कारण हजारों साल बचा रहा है। पहले किसान जुताई की हानि के प्रति सतर्क रहते थे जुताई से कमजोर होते खेतों में जुताई बंद कर उन्हें पड़ती कर उसमे पशु चराते थे जिस से खेत ठीक हो जाया करते थे। साल के आखिर में सभी कृषी अवशेषों को वापस खेतों में डाल दिया करते थे। खाद और दवाइयों का कोई इस्तमाल नहीं था।
जीरो बजट खेती भी गाय आधारित खेती है किन्तु जुताई है जो गलत है जुताई करने से खेत की जैविक खाद बरसात के पानी के कारण बह जाती है उसकी कुदरती यूरिया भी गैस बन कर उड़ जाती है इसलिए हमारी सलाह है की गौ आधारित खेती में भी जुताई नहीं होना चाहिए और गायों के लिए सुबबूल जैसे चारे के पेड़ होना जरूरी है।
जब हम बिना जुताई करे दलहन फसलों के साथ अनाज की खेती करते हैं उसमे अपने आप कुदरती यूरिया का संचार हो जाता है क्योंकि दलहन जाती का पौधा या पेड़ अपनी छाया के छेत्र में कुदरती यूरिया देने का काम करता है। हमने पाया है की बिना जुताई की खेती में खेत में कुदरती यूरिया की मांग नहीं रहती है और यदि उसमे कृत्रिम यूरिया दिया जाये तो उलटी हो जाती है यानि सब बाहर निकल जाता है। जिस से खेत और अधिक कमजोर हो जाते हैं।
धन्यवाद
राजू टाइटस
917973 8049
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