बिना जुताई की खेती और बकरी पालन
हम पिछले करीब 50 सालो से खेती को आत्म निर्भर बनाने के उदेश्य से पशु पालन से जुड़े हैं। पहले हमने देशी किस्म की गायों के पालने का काम शुरू किया था साथ में कुछ भेंसे भी रखीं थीं। दूध को पास में लगी कॉलोनी में बेचने के लिए हम अपने कर्मचारियों को भेजते थे। हमरा उदेश्य था की लोगों के पास शुद्ध कुदरती दूध पहुँच जाये। लोग इस से बहुत खुश थे। उसका कारण यह है की शुद्ध दूध कोई बेचते नहीं है सब पानी मिलाकर दूध बेचते हैं।
ये वाकया उन दिनों का है जब हम जुताई कर देशी खेती किया करते थे। खेतों में बैलो से जुताई की जाती थी हमारा उदेश्य यह था की दूध से आमदनी होती रहेगी और गोबर की खाद से खेती होती रहेगी। कुछ समय ऐसा हुआ भी। उन दिनों हम पशुओं के लिए कुदरती चरोखर बचा कर रखते थे। जिसमे पशु चरते थे। दुधारू पशुओं को अलग से दाना दिया जाता था। जो कुदरती होता था।
बरबरी जाती की बकरी साल में दो बार बच्चे देती है तीन बच्चे तक देती है दो लीटर दूध भी देती है। |
इस दौर में हमने पशुपालन मे भी तब्दीली के साथ संकर नस्ल की गायों को पालना शुरू कर दिया था। दूध का उत्पादन भी बहुत बढ़ गया था किन्तु मुनाफा नदारत था। इसलिए हमे ऋषि खेती करने का निर्णय ले लिया और पांच साल हम पशु पालन से दूर रहे थे। किन्तु दूध ऐसी जरूरत बन गया था हमे पुन : हमे पशु पलना पड़ा।
इस समय हमने देशी किस्म की भैंसों को पालना शुरू किया साथ में हमने चारे के लिए सुबबूल को भी लगाना शुरू कर दिया था। किन्तु सुबबूल का चारा भैंसों को कम पड़ता था इसलिए हम भैंस कम करते गए।आखिर में एक भैंस रह गई थी इसी प्रकार एक गाय भी हमने पाल कर अनुभव किया जिसमे हमे निराशा हाथ लगी।
सुबबूल के पेड़ों के साथ बकरीपालन सुबबूल की पत्तियों के साथ अलग से कुछ देने की जरूरत नहीं है। |
अच्छे जंगल है तो हम हाथी भी पाल सकते हैं नहीं तो क्रमश हमे जानवरों को कम और छोटा करने की जरूरत है। हमने ऐसा ही किया एक गाय भी हम नहीं पाल पाए हमे बकरियों का पालन शुरू करना पड़ा। बकरी पालन हमे ठीक लगा। एक तो जब चाहें हम बकरियों को कम कर सकते हैं। दूसरा इनका दूध बहुत स्वादिस्ट और गुणकारी होता है। आर्थिक मुनाफे भी यह कम नहीं है। यह हमारा एटीएम है।
जब हम जुताई नहींकरते हैं तो हमारे खेत असंख्य वनस्पतियों से भर जाते हैं। बकरियां सभी वनस्पतियों को थोड़ा थोड़ खाती रहती हैं। इस से खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है। इनकी मेंगनी खेतों में समानता के साथ अपने आप बिखरती जाती हैं जिनसे अनाज सब्जियों और फलदार पेड़ों को बहुत फायदा होता है।
जबकि गाय भैंसों के गोबर से बहुत गंदगी होती है उनको बड़ी सार में पालना पड़ता हैं जिन्हे गेंहू का भूसा और धान का पुआल देना और दाना देना बहुत दुखदायी रहता है। श्रम भी अधिक लगता है।
आज जबकि जुताई के कारण खेत मरुस्थ बन रहे हैं उन्हें सुधारने के लिए बकरीपालन अच्छा उपाय है।
यह आम के आम गुठली के दाम जैसा है।
इनका बाज़ार भी बहुत आसान है कुछ सड़क पर फेंकने की जरूरत नहीं है। यह खेती कर्ज ,अनुदान और मुआवजे से मुक्त है।
No comments:
Post a Comment