सूखे के स्थाई समाधान हेतु करे बिना -जुताई खेती
बूँद बूँद पानी से अधिक से अधिक फसलों का उत्पादन : बिना जुताई की कुदरती खेती
बिना-जुताई कपास की फसल (फोटो Farms Reach के सौजन्य से ) |
इसी सदर्भ में माननीय प्रधान मंत्री जी ने भी सूखे के स्थाई प्रबंधन और बिना सिंचाई की खेती पर बल दिया है। समस्या यह है कि यदि बरसात नहीं होती है तो सिँचाई के लिए पानी कहाँ से आएगा। इसी लिए माननीय प्रधानमंत्रीजी बार बार बूँद बूँद पानी से अधिक अधिक फसलों के उत्पादन की बात करते हैं।
असिंचित बिना -जुताई धान की खेती |
यह समस्या गैर -कुदरती खेती के कारण उत्पन्न हुई है। इसलिए इस समस्या का समाधान केवल कुदरती खेती से ही संभव है। गैर -कुदरती खेती का मतलब है वो सब कृषि कार्य जो कुदरती नहीं को अमल में लाना जैसे ट्रेक्टेरों से की जाने वाली जुताई , मानव निर्मित रासायनिक और गोबर /गोमूत्र से बनी खाद ,दवाई आदि।
फसलोत्पादन के लिए जब खेतों की बार बार जुताई की जाती है तो खेत सूख जाते हैं। हरियाली और उसके साथ जुडी जैव-विविधताएं नस्ट हो जाती हैं। खेत बंजर हो जाते हैं। किन्तु जब बिना जुताई कर खेती की जाती है परिस्थिति में बदलाव आने लगता है। खेतों की नमी में इजाफा हो जाता है।
जुताई नहीं करने से एक और जहाँ बरसात का पानी सब जमीन में सोख लिया जाता है जिसके कारण खेतों की जैविक खाद का बहना रुक जाता है। इस कारण खेत उर्वरक और पानीदार हो जाते है। ताकतवर खेतों में ताकतवर फसलें पैदा होती है उनमे बीमारियां नहीं लगती है।
असिंचित बिना जुताई गेंहूं की कुदरती खेती |
हम अपने पारिवारिक खेतों में पिछले तीस सालो बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे हैं। जिसमे हम कोई भी रासायनिक या गोबर /गोमूत्र की खाद नहीं डालते हैं। किन्तु सभी कृषि अवशेषों जैसे पुआल ,नरवाई ,गोबर ,गोंजन ,पत्तियां ,तिनके। आदि को जहाँ का तहां खेतों में वापस डाल देते हैं।
1 comment:
Oh my God, please translate........
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