स्वाद ,खुशबू और जायके से पहचाने कुदरती आहार।
खेतों में की जाने वाली जुताई और जहरीले रसायनों का सबसे बड़ा दोष है।
भारत में अधिकतर गेंहूं और चावल को मुख्य आहार के रूप में इस्तमाल किया जाता है। ये ही वो मुख्य अनाज है जिन्हे हमारे कृषि वैज्ञानिकों ने हरित क्रांति के माध्यम से प्रोत्साहित किया है। इन अनाजों की खेती करने के लिए सरकार किसानों को पूरी सहायता उपलब्ध कराती है। इन फसलों की खेती में काम आने वाले बीज , रसायन ,मशीनों और सिंचाई के लिए पूरी सहायता सरकार से मिलती है। जो कम्पनियाँ इन उत्पादों का धन्दा करती हैं वे भी सरकार से अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त कर रही हैं। इन उत्पादों की बिक्री भी सरकार के माध्यम से सम्पन्न होती है। इसलिए यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं है है की इन मोटे अनाजों की खेती पूरी कि पूरी सरकारी है।
जहरीले खाने से कैसे बचें ?
किन्तु अब इस सरकारी खेती पर ग्रहण लगने लगे हैं। खेत मरुस्थल में तब्दील हो रहे हैं उनमे उर्वरकों ,जुताई , रसायनों और सिंचाई की लागत बढ़ती जा रही है। खेतों के मरुस्थलीकरण के कारण फसलों में खरपतवारों और बीमारियां भी तेजी से बढ़ रही हैं इसलिए कीट नाशकों और खरपतवार नाशक जहरों का अतिरिक्त खर्च बढ़ते क्रम में आ रहा है। जिसका फायदा इन कीट नाशक को बनाने वाली कम्पनियां उठा रही हैं।
इन रासायनिक जहरो से एक और जहाँ हमारी रोटी में जहर घुल रहा है वहीं किसान के लिए इनकी लागत एक मुसीबत बनते जा रही है। यदि किसान जहर नहीं डालते हैं तो उनकी फसलों के बर्बाद होने का खतरा रहता है। इस लिए ना चाहते हुए भी किसान इन जहरों को खरीदकर डाल रहा है।
जिसके कारण फसले के साथ साथ हवा ,पानी और मिट्टी भी जहरीली होती जा रहे है। जिसके कारण अब फसलों का उत्पादन बहुत तेजी से गिरने लगा है। लागत अधिक होने और आमदनी के कम हो जाने के कारण खेती किसानी घाटे का सौदा बन गयी है। घाटे के कारण अब बड़े किसान भी आत्म हत्या करने और खेती किसानी छोड़ने लगे हैं।
जहरीली मिट्टी में जहरीली फसल पनपती है।
गेंहूं और चावल आजकल सबसे अधिक जहरीले अनाजों में गिने जाते है। जब किसान अपने खेत में गेंहूं की सरकारी खेती करता है वह अनेक प्रकार रासायनिक तत्वों को डालता है जिन्हे NPK कहा जाता है। ये तत्व अधिकतर पेट्रोलियम पदार्थों से बनते हैं। असल में जब किसान गेंहूं और चावल बोते हैं वे अपने खेतों के सभी नरवाई आदि को जला देते हैं फिर खेत को ट्रेक्टेरों की सहायता से गहराई तक खोदते और जोतते हैं। जिसके कारण बरसात का पानी जमीन में नहीं सोखा जाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खेतों की जैविक खाद को भी बहा कर ले जाता है। इसलिए खेत मरू होते हैं मरू खेतों में NPK , अनेक किस्म के सूख्स्म तत्व और टॉनिक ,कीटनाशक और खरपतवार नाशक आदि खेत में डालते हैं। ये सभी गैर -कुदरती रासयनिक तत्व खेत की मिटटी जो जीवित है को पसंद नहीं आते हैं। इसलिए यह मिट्टी इन तत्वों को उड़ा देती है जिस के कारण कुदरती तत्व भी उड़ जाते हैं और मिट्टी बेजान और जहरीली हो जाती है। इसमें पैदा होने फसलें भी जहरीली होने लगती हैं।
जहरीले आहार से हमारे शरीर को क्या नुक्सान है ?
अधिकतर लोग समझते हैं की केवल जहरीले रसायनों के कारण ही फसलें जहरीली होती है यदि जहरीले रसायन नहीं डाले जायेंगे तो फसलें जहरीली नहीं होंगी यह भ्रान्ति है। इसमें जमीन की जुताई का सबसे बड़ा दोष है एक बार की जुताई से खेत की अधि ताकत नस्ट हो जाती है हर बार जुताई करने से यह ताकत लगातार घटती जाती है। जिसके कारण खेतों में फसलों को पैदा करने की ताकत नस्ट हो जाती है। फसले कमजोर और बीमार पैदा होती है जिसमे जहरीले रसायन आग में घी डालने का काम करते हैं।
जहरीली फसलों में पोषक तत्वों की भारी कमी रहती है इसको खाने से शरीर को जिन तत्वों की जरूरत रहती है वे नहीं मिलते हैं इस कारण जितना भी हम कहते है है वह शरीर को नहीं लगता है। इसके कारण कुपोषण की बी मरी हो जाती है। कुपोषित शरीर में अन्य बीमारियां भी अपना घर बना लेती है। यह तो हम सब जानते हैं।
किन्तु सवाल यह है की हम अब इस समस्या से कैसे से कैसे बचें।
रासायनिक गेंहूं और चावल का त्याग करें छोटे अनाज जैसे ज्वार ,मक्का ,बाजरा ,राजगीर कोदों ,कुटकी समां आदि का सेवन करें। सब्जियों में कठहल ,मुनगा आदि का सेवन किया जा सकता है। सफडफरम की मुगी के बदले देशी मुर्गी और उनके अण्डों का सेवन करें। दूध के लिए पैकेट के दूध का सेवन न करे हो सके तो बकरी के दूध का सेवन करें।
उपभोक्ताओं को चाहिए अपने आसपास के किसानो को जुताई आधारित रासायनिक खेती को छोड़ने और कुदरती खेती करने के लिए प्रेरित करें ,कुदरती आगनबाड़ी और ऑर्गनिक रूफ गार्डनिंग करे और प्रसार प्रचार करें। जागरूकता कमी सबसे बड़ी बाधक है सब मिलकर प्रयास करने की जरूरत है।
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