ट्रैकटर से की जाने वाली गहरी जुताई से की जाने वाली गेंहूं और चावल की खेती के कारण सूखा पड़ रहा है।
"हरित क्रांति " का आधार गैर -कुदरती गेंहूं और चावल की खेती है। यह खेती हरे-भरे पेड़ों को काट कर उनमे गहरी जुताई कर की जाती है। इस खेती में पेड़ दुश्मन की तरह देखे जाते हैं। हर किसान अपने खेतों से अधिक से अधिक उत्पादन लेने की चाह में एक भी पेड़ अपने खेतों में क्या मेड़ों पर भी नहीं रहने देता है।
इसी प्रकार अधिकतर किसान ठण्ड में गेंहूं की खेती करते हैं पहले यह खेती बिना सिंचाई होती थी किन्तु अब यह सिंचाई के बिना नहीं होती है। इसमें बहुत अधिक मात्रा में पानी बर्बाद होता है।
बिना जुताई सुबबूल के पेड़ों के साथ गेंहूं की खेती। |
यदि हमे सूखे से निजात पाना है तो हमे दलहनी पेड़ों के साथ बिना जुताई की गेंहूं और चावल की खेती करना ही पड़ेगा। पेड़ बरसात के पानी को बादल बना कर बरसात करवाने में बहुत सहायक रहते हैं। ये बरसात के पानी को जमीन के भीतर ले जाने में भी सहयोगी है। यही कारण है भरी गर्मी में पहाड़ों से झरने चलते हैं जबकि मैदानी इलाके में पानी पानी का शोर मचा रहता है।
2 comments:
Make sense......
इससे तो पैदावार कम होगी?
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