सन और गेंहूं की कुदरती खेती
जुताई , गोबर और रसायनों की जरूरत नहीं
देशी खेती किसानी में अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिसमे किसान खेतों की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए सन को लगाते रहे हैं। सन एक दलहन जाती नत्रजन सप्लाई करने वाला पौधा है जो समान्यत: रस्सी बनाने के काम में आता है इस से गनी बैग्स भी बनाए जाते हैं। इसकी फसल सामान्यत: बरसात में ली जाती है।
जैविक खेती करने के लिए किसान सन की हरी फसल को जमीन में जुताई कर मिला देते है। किन्तु कुदरती खेती में सन की फसल ले ली जाती है। जब सन की फसल पक जाती है इसे ऊपर से काट लिआ जाता है और गहाई कर इसके बीज निकाल लिए जाते है।
इसके बाद बचे भाग के बीच गेंहूं के बीज छिड़क दिए जाते हैं और सन के बचे भाग को काटकर खेत में जहां का तहां गिरा दिया जाता है जिस से गेंहूं के बीजों पर ढकावन बन जाती है बीज सुरक्षित ही जाते हैं।
तदुपरांत सिंचाई कर दी जाती है। जिस से गेंहूं के बीज अंकुरित होकर ऊपर छा जाते हैं। जिस से बिना जुताई , बिना यूरिया ,बिना गोबर की खाद दिए बंपर फसल उतरती है।
जबसे हमारे देश में "हरित क्रांति " का आगमन हुआ है तब से किसान मशीनों और रसायनों का बहुत उपयोग करने लगे है। जिस के कारण खेत मरुस्थल में तब्दील हो रहे है।
खेती किसानी घाटे का सौदा बन गयी है। अनेक किसान खेती किसानी छोड़ रहे है। लागत अधिक हो जाने के कारण और पर्याप्त लाभ नहीं मिलने के कारण कर्जों के कारण किसान आत्म हत्या भी कर रहे हैं।
असल में किसानो पता नहीं है की जुताई करना कितना हानि कारक है। जुताई करने से बरसात का पानी जमीन में नहीं सोखा जाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खेतों की जैविक खाद को भी बहा कर ले जाता है।
जुताई नहीं करने और नरवाइयों (Straw) को जहां का तहां आड़ा तिरछा डाल देने से खेतों में पर्याप्त जैविक खाद जमा हो जाती है जिसके कारण रासायनिक और गोबर की खाद की बिलकुल जरूरत नहीं रहती है। इस विधि से साइल हेल्थ अच्छी हो जाती है इस कारण फसलों में बीमारियों और खरपतवारों की समस्या नहीं रहती है। इसलिए किसी भी प्रकार की जैविक या अजैविक दवाई की जरूरत नहीं रहती है।
आजकल अनेक लोग किसानों को रासायनिक खादों के बदले गोबर और गोमूत्र से बनी दवाइयां डालने की सलाह दे रहे हैं किन्तु वे जुताई को हानि कारक नहीं बताते हैं। जबकि एक बार जुताई करने से खेत की आधी जैविक खाद बह जाती है और गैस बन कर उड़ जाती है। जुताई करके अपने खेत की जैविक खाद को नस्ट कर ,रासायनिक खाद ,जैविक खाद ,बायो फ़र्टिलाइज़र , अमृत पानी /मिटटी का उपयोग एक मूर्खता पूर्ण कार्य है।
बरसात का पानी जमीन में नहीं जाने कारण भूमिगत जल की हानि अलग है।
हमने अपने खेतों में पिछले तीस सालो से जुताई नहीं की है न ही कोई भी रसायन या जैविक खाद का उपयोग किया है। हमारे खेत पूरी तरह कर्ज ,अनुदान और मुआवजे से मुक्त हैं। साइल हेल्थ हर साल बढ़ रही है भूमिगत जल में भी इजाफा हो रहा है। बरसात का पूरा पानी खेतों के द्वारा सोख लिए जाता है।
No comments:
Post a Comment