बिना-जुताई कुदरती खेती
गेंहूं और धान का फसल चक्र
बिना जुताई ,खाद ,रसायन और निंदाई की गेंहूं और धान की खेती सच पूछिए तो किसानो की जिंदगी में एक नया सबेरा लाने वाली है। गेंहू और चावल अब हमारे खाने में जरूरी हो गया है जो जुताई और रसायनो के कारण अब खाने लायक नहीं रहा है तथा इनके उत्पाद में अब किसानो को भारी घाटा होने लगा है इस से वे एक ओर जहाँ कर्जे में फंसते जा रहे हैं वहीं उनके खेत मरुस्थल में तब्दील हो रहे हैं। इस कारण आने वाले समय में भारी खाद्य संकट दिखयी दे रहा है।
हम विगत तीस साल से भी अधिक समय से बिना जुताई की कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं जिसे जापान के विश्व विख्यात वैज्ञानिक श्री मस्नोबू फुकुओकाजी ने खोजा है। जिसे हम ऋषि खेती के नाम से बुलाते है। इस विधि से एक और किसान अपना खोया सम्मान वापस पाते हैं वहीं खाने की उत्पादकता और गुणवत्ता में जबरदस्त सुधार आता है। आज का खाना जहां कैंसर जनित है वहीं ये कैंसर को ठीक करने वाला बन जाता है। लागत और श्रम की कमी के कारण किसान लाभ में आ जाता है उसके खेत खदोड़े और पानीदार बन जाते हैं जिनमे उत्पादन बढ़ते क्रम में मिलता है।
फुकुओका जी गेंहू की खड़ी फसल में धान की सीड बाल फेंक रहे हैं।
इस खेती को करने के लिए गेंहूं की खड़ी फसल में समयपूर्व ही धान के बीजों की क्ले (कपे वाली मिट्टी ) से बनी बीज गोलियों को खेत में बिखरा दिया जाता है जो अपने मौसम में अपने आप उग जाती हैं। इसमें खेतों में जुताई करना ,कीचड मचाना , रोपे बनाना लगाने की कोई जरूरत नहीं रहती है वरन यह हानिकर रहता है। इसमें खेतों में पानी को भरने के लिए मेड बनाने की जरूरत नहीं रहती है वरन पानी की अच्छे से निकासी का प्रबंध किया जाता है जैसा गेंहूं में होता है।
धान की फसल को काटने से पूर्व करीब दो सप्ताह पहले गेंहूं की फसल के बीज सीधे खेतो में बिखरा दिए जाते हैं। उसके बाद जब गेंहूं उग आता है धान की फसल को काट लिया जाता है और धान की गहाई के उपरांत बचे पुआल को वापस उगते हुए गेंहूं पर आड़ा तिरछा फेंक दिया जाता है।
उगते गेंहू के ऊपर पुआल |
उगते धान के ऊपर नरवाई |
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ज्ञानवर्धक जानकारी
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