फुकुओका जी के अनुभव
कुदरती खेती के चार सिद्धांत
जुताई ,खाद ,निदाई और रसायनो का उपयोग बिलकुल नहीं करना है।
पहला सिद्धांत है, खेतों में कोई जुताई नहीं करना यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी पलटना है। सदियों से किसानों ने यह सोच रखा है कि फसलें उगाने के लिए हल अनिवार्य है लेकिन प्राकृतिक कृषि का बुनियादी सिद्धांत खेत को जोतना या बखरना नहीं है। धरती अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधें की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।
जुताई नहीं |
उर्वरकों का उपयोग न किया जाए।
उर्वरक नहीं |
जैविक खाद नहीं |
चैथा सिद्धांत रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है।
जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर फसलें उगना शुरू हुईं , तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़-छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है। नुकसानदेह कीड़े तथा बीमारियों तो मौजूद हमेशा ही
रहती हैं, लेकिन प्रकृति में वे इतनी ज्यादा कभी नहीं हो जाती कि उनके
निदा मार दवाई नहीं |
निंदाई नहीं |
लिए विषाक्त रसायनों का उपयोग किया जाए। बीमारियों तथा कीटों के बारे में समझदारी वाला तरीका यही है कि स्वस्थ पर्यावरण में हष्ट-पुष्ट फसले उगाई जाएं।
2 comments:
Rajuji,
Safed methi that you have referred to it white clover of Fukuoka san?
Regards
Yes it is white clover.Thanks for coment.
raju
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