Friday, June 19, 2015

कुदरती खेती के चार सिद्धांत



फुकुओका जी के अनुभव 

कुदरती खेती के चार सिद्धांत 

जुताई ,खाद ,निदाई और रसायनो  का उपयोग बिलकुल नहीं करना है। 


हला सिद्धांत है, खेतों में कोई जुताई नहीं करना यानी न तो उनमें जुताई करना, और न ही मिट्टी पलटना है।  सदियों से किसानों ने यह सोच रखा है कि फसलें उगाने के लिए हल अनिवार्य है लेकिन प्राकृतिक कृषि का बुनियादी सिद्धांत  खेत को जोतना या बखरना नहीं  है। धरती  अपनी जुताई स्वयं स्वाभाविक रूप से पौधें की जड़ों के प्रवेश तथा केंचुओं व छोटे प्राणियों, तथा सूक्ष्म जीवाणुओं के जरिए कर लेती है।
जुताई नहीं 
दूसरा सिद्धांत है  कि किसी भी तरह की तैयार खाद या रासायनिक
उर्वरकों का उपयोग न किया जाए।
उर्वरक नहीं 
जैविक खाद नहीं 

तीसरा सिद्धांत  है, निंदाई-गुड़ाई न की जाए,  ना तो हलों से ना ही किसी भी प्रकार के खरपतवार नाशक  के  द्वारा। खरपतवार मिट्टी को उर्वर बनाने तथा जैव-बिरादरी में संतुलन स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभाते  हैं। बुनियादी सिद्धांत  यही है कि खरपतवार को पूरी तरह समाप्त करने की बजाए नियंत्रित किया जाना चाहिए। मेरे खेतों में प्रभावी खरपतवार नियंत्राण के लिए में पुआल बिछाने, फसल में बीच-बीच में सफ़ेद मेथी उगाने तथा अस्थाई जैसे तरीके अपनाता हूं।
चैथा सिद्धांत  रसायनों पर बिल्कुल निर्भर न करना है।
जोतने तथा उर्वरकों के उपयोग जैसी गलत प्रथाओं के कारण जब से कमजोर फसलें  उगना शुरू हुईं , तब से ही खेतों में बीमारियां लगने तथा कीट-असंतुलन की समस्याएं खड़ी होनी शुरू हुई। छेड़-छाड़ न करने से प्रकृति-संतुलन बिल्कुल सही रहता है। नुकसानदेह कीड़े तथा बीमारियों तो मौजूद हमेशा ही
रहती हैं, लेकिन प्रकृति में वे इतनी ज्यादा कभी नहीं हो जाती कि उनके
निदा मार दवाई नहीं 
निंदाई नहीं 



लिए विषाक्त रसायनों का उपयोग किया जाए। बीमारियों तथा कीटों के बारे में समझदारी वाला तरीका यही है कि स्वस्थ पर्यावरण में हष्ट-पुष्ट फसले उगाई जाएं।
रासायनिक जहर नहीं 

2 comments:

Majumdar said...

Rajuji,

Safed methi that you have referred to it white clover of Fukuoka san?

Regards

Unknown said...

Yes it is white clover.Thanks for coment.
raju