ऋषि खेती से संबधित प्रथापन जी के सवाल और राजू टाइटस के द्वारा जवाब
१-नेचरल फार्मिंग के निम्न सिद्धांत हैं
२-नेचरल फार्मिंग से पहले
कांस घास |
नेचरल फार्मिंग से पहले हम गहरी जुताई से रसायनो और मशीनों से खेती करते थे इसलिए वो मरुस्थल में तब्दील हो गए थे ,कुए सूख गए थे पेड़ नहीं था घास हर जगह हो गई थी जिस के कारण खेती करने न मुमकिन हो गया था।
नेचरल फार्मिंग से पहले खेत ऐसे दीखते थे। |
घास खेतों की जुताई में बाधक रहती है इसकी जड़ें 30 फ़ीट नीचे तक चली जाती है। यह जुताई करने के कारण हो रहे भूमि छरण को रोकने का कुदरती उपाय है।
पेड़ो से ढके हमारे खेत |
पहले हमारे खेत सामन्यत: जुताई वाले खेतों की तरह पेड़ों के बिना नजर आते थे। अब हमारे खेत पूरीतरह पेड़ों से ढक गए हैं।
३-पडोसी खेतों से तुलना
एक और जहां हमारे खेत पेड़ों से ढके हैं वहीँ हमारे पड़ोसियों के खेत जैसा चित्र में दिख रहा है हरयाली विहीन मरुस्थलों में तब्दील हो गए है। हमारे कुओं में पानी लगातार बढ़ रहा है वहीँ हमारे पड़ोसियों के कुए सूख रहे हैं।
हमारे खेत रोग निरोग शक्ति वाली फसलों ,फलों ,दूध का उत्पादन कर रहे हैं वहीं पड़ोसियों के खेत जहरीले उतपाद पैदा कर रहे हैं जिनसे अनेक बीमारियां हो रही हैं।
४-मसनेबु फुकुओकाजी के अनुभवों से मिली सीख
क्ले से बनी सीड बाल |
३० साल पहले हम जब वैज्ञानिक खेती कर रहे थे जुताई खाद दवाइयों और मशीनों के कारण हमारे खेत मरुस्थल बन गए थे। हमें लगातार आर्थिक ,पर्यावरणीय ,सामाजिक और आध्यात्मिक नुक़्सानो रहा था। हम खेती जिसे शांति का मार्ग समझ रहे थे यह अशांति का कारण बन गई थी। हमे से छोड़ने के बदले कोई मार्ग नहीं बचा था तब हमे फुकुओकाजी के अनुभवों की किताब "The one straw revolution " पढ़ने को मिली जिसने हमारे सोच को बदल दिया। फुकुओकाजी पहले हिंसात्मक वैज्ञानिक खेती के डाक्टर थे जो बदल कर अहिंसात्मक कुदरती खेती के प्रणेता बन गए थे। उन्होंने पाया की दुनिया में सबसे बड़ी हिंसा हमारे पर्यावरण की हो रही है जिसमे गैर कुदरती खेती का सबसे बड़ा हाथ है। इसलिए उन्होंने कुदरती खेती का विकास किया जिसमे उनको करीब 30 साल लगे जिसे वे करीब 70 -80 साल तक करते रहे। उन्होंने इस दौरान अनेक किताबे लिखी और अनेक माधयमो से दुनिया को समझाने की कोशिश की इसी दौरान वो हमारे खेतों को देखने भी पधारे थे उन्होंने हमे दुनिया में उनके द्वारा देखे कार्यों में प्रथम स्थान दिया था।
सीड बनाते हम लोग |
दूसरी बार मेरी उनसे मुलाकात गाँधी आश्रम में हुई थी। उस समय वो केवल "सीड बाल "बनाकर बता रहे थे और कह रहे थे सब भूल जाओ पूरी दुनिया गैर कुदरती खेती के कारण मरुस्थल में तब्दील हो रही है हमे इसे बचाने के लिए अब युद्धस्तर पर काम करना पड़ेगा। पनप रहे मरुस्थलों को बचाने के लिए हम क्ले सीड बाल बनाये और उसे बिखरायें उन्होंने बताया कि तंजानिया के एक बहुत बड़े गैरकुदरती खेती के कारण बने मरुस्थल को वहां की जन जाती ने सीड बाल से हरियाली में बदल दिया है यदि हम सीड बाल के विज्ञान और उसके दर्शन को समझ लेते हैं तो हम आज भी दुनिया में अमन शांति कायम कर सकते हैं।
आज गांधीजी होते तो वो चरखे की तरह सीड बाल बनाने पर जोर देते किन्तु अफ़सोस की बात अब गांधीजी का देश स्वम गैर कुदरती खेती के कारण मरस्थल में तब्दील हो रहा है हमे इसमें ब्रेक लगाने की जरूरत है।
5 -विज़िटर्स ,कार्यशालों और सेमिनार के बारे में
हम पिछले 30 सालो से जब से हमने नेचरल फार्मिंग को समझा है और इसे भारत में गैरकुदरती खेती के कारण पनप रहे मरुस्थलों बचाने के लिए प्राय कर रहे हैं। इस दौरान हमने अनेको लोगों को इसके बारे में बतया है। अनेक लोग हमारे फार्म पर आते हैं जो देशी और विदेशी सभी रहते हैं। अनेक लोग समूहों में आते हैं उन्हें हम कार्यशाला के माध्यम से समझने का काम करते हैं। जो लोग अकेले आते हैं उन्हें हम समझाने के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं। हम इस कार्य को सामजिक और आधात्मिक समझ कर करते हैं जिसका कोई भी शुल्क नहीं लेते हैं।
ऑस्ट्रेलिया से आये फ्रेंड्स |
हमे अनेक लोग भिन्न भिन्न प्रांतों में भी बुलाते है वहां भी कार्य शाला के माध्यम से नैचरलफ़ार्मिंग करना सिखाने का काम करते हैं। चूंकि हमारा फार्म भारत में पहले फार्म है हमे लोग रिसोर्स के रूप आमंत्रित करते हैं हमारे रहने खाने के खर्च भी वो लोग वहां करते हैं। अनेक ऐसे फार्म है जहां हमने किसानो को खेती करना सिखाया है। जिसके अच्छे परिणाम भी देखने को मिले हैं।
अमेरिका से नौकरी छोड़ कर सीड बाल बनाना सीख रहे हैं देवजी |
फिर भी हम यह कह सकते हैं की अभी यह ऊँट के मुंह में जीरे के सामान है।
अब जबकि हमारे देश में बल्कि हमारे प्रदेश में असंख्य किसान खेती के कर्जों के कारण परेशान होकर आत्म हत्या करने लगे हैं ऐसी हालत में हमारी सरकारों ने और हमारे न्यायालयों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे में नेचरल फार्मिंग की पूछ परख बहुत बढ़ गई है।
"सीड बाल " बनाना अब क्रांति का रूप ले रही है अनेक स्वम सेवी संस्थाएं इसके महत्व को समझ कर आगे आने लगी हैं।
6 -सरकार और NGO हमारे फार्म पर कार्यशालाएं आयोजित कर रहे हैं।
चूंकि हमे अपनी बात समझाने के लिए मॉडल की जरूरत रहती है इसलिए अधिकतर सरकारी और NGO के लोगों को हम अपने यहां आमंत्रित करते हैं आकर नेचरल फार्मिंग की जानकारी लेते है। इसी तारतम्य में वन विभाग और आदिवासी विभाग की कुछ कार्यशालाएं यहां आयोजित हुई हैं। ग्रामीण विकास से जुडी अनेक कार्य कार्यशालाएं यहां आयोजित हुई हैं।
वन विभाग के साथ |
हिमाचल प्रदेश में सीड बॉल बनाते लोग |
भारत के करीब हर प्रदेश में हम सेमीनार हेतु बुलाये गए है और बुलाये जा रहे है अनेक लोगों से इसे अपनाया है और अपनाये जा रहे हैं।
यमुना नगर में स्कूल के बच्चों के साथ बात चीत |
आज कल हमे नेचरल फार्मिंग को नेचर क्योर से जोड़ कर बात करने लगे हैं। हमारा मानना है कि हमारा पर्यावरण सीधे हमारे स्वास्थ से जुड़ा है और पर्यावरण हमारी खेती से जुड़ा है। हवा पानी और हमारा भोजन ठीक रहेगा तो स्वस्थ रहेंगे। हम स्वस्थ रहेंगे तो हमारा परिवार भी स्वस्थ रहेगा ,समाज और देश स्वस्थ रहेगा।
फ़्रांस से नेचरल फार्मिंग सीखने पधारे मित्र |
इसलिए हमारा मानना है की असली "शांति की कुंजी हमारे खेतों के पास है "
7 -विज़िटर्स के द्वारा उठाये गए सवाल
1 -क्या कारण है नेचरल फार्मिंग के विस्तार नहीं होने का ?
2 -यील्ड में क्या अंतर आता है ?
3 -पड़ोसी किसान क्यों नहीं अपना रहे हैं ?
4 -जापान में क्यों इस विधि को नहीं अपनाया है ?
5 -भारत में कहीं इस से खाना कम तो नहीं पड़ जायेगा?
ये वो सामान्य प्रश्न है जो हमसे पूछे जाते हैं जिनका अधिकतर का हमारे पास कोई जवाब नहीं है। हम सिर्फ इतना जानते हैं की NF नहीं करने की वजह से आज का किसान बहुत बड़ी मुसीबत में है वो कर्जदार हो गया है। यील्ड कम होती जा रही है। खाने का प्रदूषण बढ़ते क्रम में है। अमेरिका हो या जापान सब खेती किसानी के संकट में फंसे है जिस से बहार निकलने का अब कोई और मार्ग उन्हें दिखाई रहा है। कुदरती खाने का अकाल पड़ रहा है।
हमारे अनुभव हमको बताते हैं की आज नहीं तो कल इस खेती के आलावा और कोई मार्ग नहीं है। बिना जुताई और बिना रसायनो की खेती ही भविष्य में रहेगी बाकि सब लुप्त हो जाएंगी। इसके बाद ही अमन और शांति का हमारा सपना पूरा हो सकेगा।
8 -फेमली बैक ग्राउंड ,भरोसा और सिद्धांत
हमारे परिवार के इन खेतों को हमारे माता पिता और दादाजी ने मिलकर खरीदा था। जो एक क्वेकर परिवार के सदस्य थे। जिसने अपना पूरा जीवन घायल कुदरत पीड़ित मानवता की सवा में अर्पित कर दिया था। जिसमे केवल में ही ऐसा बिगड़ा बेटा निकला जिसने ने इसे दिल से अपनाया है। दुर्भाग्य से हमारे दादाजी माता पिता और बड़े भाई इस दुनिया में नहीं है। किन्तु मेरे परिवार को छोड़ कर सभी बच्चे भाई बहनो के परिवार के बाहर हैं। मेरी पत्नी और बच्चे इस विधा से बहुत संतुस्ट हैं वो कुदरती खान पान और उस से हमारे शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को समझ गए हैं। जो इस से दूर नहीं जाना चाहते हैं। में आशा करता हूँ की एक दिन आएगा जब बाकि हमारे परिवार के सभी बच्चे इस विधा का महत्व समझ कर कर वापस आएंगे जैसे अनेक लोग जो बड़ी बड़ी नौकरी छोड़कर अपने गाँव वापस लोट रहे हैं। असल में पैसा कमाना सब चाहते है कमा भी लेते हैं पर कुदरत को कमाना असली कमाई है इसका आभास तब होता है जब हमे बीमारियां घेरने लगती हैं और महानगरों के बड़े बड़े डाक्टर हमे नहीं बचा पाते हैं। केवल कुदरत ही हमको बचा सकती है।
हम सब उस ऊपर वाले पर बहुत भरोसा करते हैं दिन रात अपने और अपने परिवार की अच्छाई के लिए दुआ मांगते रहते हैं किन्तु ऊपर वाला भी उनकी मदद करता है जो उसके दिए इस शरीर का और पर्यावरण की मदद करता है। जो इस दुनिया में आता है उसे एक दिन जाना ही होता है हम भी अब बूढ़े हो गए हैं कल रहे या नहीं रहें किन्तु कुदरत हमेशा जीवित रहती है हमे वही करना चाहिए जो कल हमारे बच्चो के काम आये । ऊपर वाले का दिया यह शरीर भले नहीं रहेगा पर हमारे बच्चों के बच्चे रहेंगे वैसे हमारे खेत उसमे लगे पेड़ हरियाली बच्चे रहेंगे हमे उनकी सेवा कर ऊपर वाले का कर्ज अदा करना है।
9-अन्य जरूरी जानकारी
ऋषि खेती की फाउंडर सदस्य |
यह लेख मेरे दामादजी श्री परम्यू प्रथापन जी को समर्पित है जो एक सच्चे गाँधीवादी क्वेकर हैं। लिखने में कोई त्रुटि हो तो छमा करेंगे। मेरी बेटी रानू से विनती है की इस लेख को पढ़ कर प्र्थापन जी सुना दें जिस से वो इसका जहां चाहें उपयोग सकें।
धन्यवाद
राजू टाइटस
10-jul-2017
Titus natural farm hoshangabad.M.P.
461001
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