कुदरती इलाज भी कुदरती खेती की तरह है !
सवा एकड़ में बनाए अपना कुदरती आशियाना महानगरीय माचिस की डिब्बी की तरह घर रहने लायक नहीं है।
हमे खुद अपने कुदरती आहार ,हवा और पानी को पैदा करने की जरूरत है।
जब हम अपने खेतों से पेड़ों काट कर जमीन को खूब जोत कर उसमे अनेक आर्गेनिक और इनओर्गनिक जहर डाल कर फसलें बोते हैं तो खेत कमजोर हो जाते हैं उसमे कमजोर फसलें पनपती है जिसमे अनेक बीमारियां लग जाती हैं। जिसके लिए अनेक कीड़ों का दोष माना जाता है। इसलिए कीड़ामार जहरों का उपयोग किया जाता है जिसके कारण बीमारी और बढ़ जाती है। कैंसर जैसी बीमारी इसका उदाहरण है।
इसके साथ साथ हमारा पर्यावरण भी खराब हो जाता है हम कुदरती हवा ,पानी और भोजन से महरूम हो जाते हैं। इसलिए आजकल बीमारियों और डाकटरी का बोल बाला है। जहरीली दवाओं के नुक्सान को देखते अनेक लोग गैर -रासायनिक दवाओं की बात करने लगे हैं।
किन्तु जबसे हमने कुदरती खेती को अमल में लाया है हमने अपनी फसलों में किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं देखी है इसलिए दवा की जरूरत ही महसूस नहीं होती है। किन्तु ऐसा नहीं है की बीमारियां बिलकुल आती ही नहीं है यदि वो आती हैं तो अपने आप कुदरती ठीक हो जाती है।
इसी आधार पर हम अपने परिवार में बीमारियों के आने पर डाक़्टर और अस्प्ताल जाने के लिए मना करते हैं। हमने देखा जब हम किसी भी प्रकार की दवाई का उपयोग नहीं करते हैं ,बीमारी अपने आप हमारी फसलों की तरह ठीक हो जाती हैं।
इसलिए यदि हम चाहते हैं की हम और हमारे परिवार के सदस्य सदैव स्वस्थ रहे तो उन्हें अपने पर्यावरण को कुदरती रूप से स्वस्थ रखते हुए आजकल के नीम हकीमो और जहरीली दवाओं के पक्षधर डाक़्टर और अस्प्तालों से दूर रहने की जरूरत है।
फुकुओका जी कुदरती खेती और जीवन शैली के प्रणेता |
एक व्यक्ति के लिए एक चौथाई एकड़ और एक ५ सदस्यीय परिवार के लिए सवा एकड़ जमीन पर्याप्त है जिसमे परिवार के एक सदस्य को एक घंटा प्रतिदिन से अधिक काम की जरूरत नहीं है बाकी समय हम अपने समाज और देश को दे सकते हैं।
1 comment:
ज्ञानवर्धक जानकारी के लिये शुक्रिया ।
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