सोयाबीन की ऋषि खेती
मशीन नहीं ,रासायनिक जहर नहीं ,गोबर ,गोमूत्र नहीं !
किसानों की आमदनी को दस गुना बढ़ाने और लागत/श्रम को शून्य करने की योजना।
एक समय था जब म प्र को सोयाबीन की खेती के लिए सराहा जाता था। यहां पहले काले सोयाबीन की बहुत अच्छी खेती होती थी एक एकड़ से 20 क्विंटल तक पैदावार मिल जाती थी। सोयाबीन की फसल तेल और दाल दोनों में उपयोग आने वाली फसल है इसका खलचूरा बहुत पोस्टिक माना जाता है। चूंकि यह दलहन जाती का पौधा है यह अपनी छाया के छेत्र नत्रजन फिक्स करने का काम करता है।
सोयाबीन का पौधा |
बाद में धीरे उत्पादन घटने लगा अनेक प्रकार की किस्में, रासायनिक दवाएं और खादों का इस्तमाल किया पर उत्पादन नहीं बढ़ा बल्कि वह गिरता ही गया , अब इसकी फसल लुप्त प्राय हो गयी है। शुरू शुरू में इसके उत्पादन के बल पर न केवल किसानो के जीवन स्तर में भारी परिवर्तन आ गया था वरन किसानो की आमदनी बढ़ने के कारण गाँव और नगर बाज़ारों में रौनक आ गयी थी। अनेक सोयाबीन के कारखाने खुल गए थे जो सोयाबीन का तेल निकालने के बाद खलचूरे का निर्यात कर दिया करते थे।
किन्तु सोयाबीन के प्रति एकड़ उत्पादन घटने के कारण किसानो ने अब इसे बौना बंद कर दिया है। कृषि वैज्ञानिकों के पास इस समस्या का कोई जवाब नहीं है। सवाल सोयाबीन के केवल उत्पादन घटने का नहीं है साड़ी फसलें वो चाहे खरीफ की हों या रबी की प्रति एकड़ उत्पादन तेजी से गिर रहा है यही कारण है की किसान खेती करने छोड़ने लगे हैं। घाटे के कारण अनेक किसान आत्म -हत्या भी करने लगे हैं।
असल में यह समस्या जमीन की जुताई के कारण आ रहा है। पहले जुताई बैलों से की जाती थी इसमें इतना अधिक नुक्सान नहीं होता था जितना अब ट्रेकटर की जुताई के कारण होने लगा है।
गेंहूं की नरवाई में बिना जुताई करे सोयाबीन की फसल |
बहुत कम लोग यह जानते हैं की जमीन की जुताई हानिकारक है। जुताई करने से बरसात का पानी जमीन के द्वारा सोखा नहीं जाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खेत की उपजाऊ मिटटी को भी बहा कर ले जाता है।
एक बार की जुताई से इस प्रकार आधी ताकत नस्ट हो जाती है।
अमेरिका अब बिना जुताई की सोयाबीन की खेती बहुत पनप रही है। एक एकड़ से आसानी से २० क्विंटल से अधिक पैदावार मिल रही है। जिसमे तेल और प्रोटीन की मात्रा भारत की सोयाबीन से बहुत अधिक है इस कारण भारत के खल चूरे की मांग भी घट गयी है।
यदि हमे अपने प्रदेश को फिर से सोयाबीन की फसल का वही पुराना उत्पादन चाहिए तो हमे बिना जुताई ,खाद ,रासायनिक जहरों के सोयाबीन की खेती ऋषि खेती करने की जरूरत है। जो बहुत आसान है इसमें जहां प्रति एकड़ उत्पादन की गारंटी है वहीं प्रति एकड़ खर्च भी ८० % कम हो जाता है।
सोयाबीन बौने के लिए जरूरी है पिछली फसल की नरवाई जिसे आम किसान जला देते हैं या खेत में जुताई कर मिला देते हैं। यह नहीं करना चाहए। पिछली फसल की नरवाई का ढकाव रहने से खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है ,फसल में बीमारी के कीड़े नहीं लगते हैं उनके दुश्मन नरवाई में छुपे रहते हैं , यह धकावन पानी कम रहने पर नमि को संरक्षित करता है ,इसके अंदर असंख्य जीव ,जन्तु कंचे आदि निवास करते हैं जो पोषक तत्वों की आपूर्ति कर देते हैं। इसमें जब हम बीज डालते हैं वे भी चिड़ियों और चूहों से सुरक्षित हो जाते हैं।
बीज गोलियों को बनाने के लिए छोटे टुकड़ों को काटने के मुर्गा जाली का उपयोग। |
टुकड़ों को हाथों से गोल कर लिया जाता है। |
सीड बाल बनने के लिए हम एक भाग बीज में करीब सात भाग बारीक ,छनि क्ले मिटटी को मिलकर आटे की तरह गूंथ लेते है फिर मुर्गा जाली की फ्रेम बनाकर उसमे से छोटे छोटे टुकड़े काट लेते हैं। उन्हें तगाड़ी में गोल गोल घुमा कर गोल कर लेते हैं। ध्यान यह रखने की जरूरत है की गोली करीब छोटे कंचे से बड़ी ना हो और एक गोली में एक बीज ही रहे।
सोयाबीन की फसल गेंहूं की खेती के लिए खेतों को नींदा रहित नत्रजन से भरपूर खेत बना देती है जिसमे केवल गेंहूं के बीजों को फेंककर आसानी से गेंहूं की फसल लेली जाती है। किन्तु जुताई करने से खेत की नत्रजन गैस बन कर उड़ जाती है खेत खरपतवारों से भर जाते हैं।
1 comment:
आपने इस पोस्ट में सोयाबीन की खेती पर बहुत अच्छी जानकारी दी हैं.
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