ऋषि खेती
संजीव त्रिपाठी जी का उदाहरण
जब हम अपने खेतों को अपने हाल पर छोड़ देते हैं तो वे अपने आप "ऋषि खेतों " में तब्दील हो जाते हैं। ऐसा ही संजीव भाई के खेतों में हुआ है। इन खेतों में परंपरागत खेती होती थी किन्तु जुताई के कारण खेत मरने लगे थे। इसलिए यहां खेती बंद हो गयी थी।
भारतीय परंपरागत खेती किसानी में जुताई के कारण मर रहे खेतों में किसान जुताई बंद कर उन्हें कुदरत के भरोसे छोड़ देते थे। ऐसा करने से खेत पुन : जीवित हो जाते थे उनमे फिर से फसलों का अच्छा उत्पादन होने लगता था।
जुताई करने से बरसात का पानी जमीन के द्वारा सोखा नहीं जाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खाद को भी बहा कर जाता है। इस कारण सूखे और गीले खेतों की समस्या निर्मित हो जाती है। संजीव भाई के खेतों में कांस घास है जो इस इस बात की पुस्टी करती है। कांस घास की जड़ बहुत गहराई तक जाती हैं (25 -30 फ़ीट ) तक। हमारे पूर्वज बताते हैं कांस खेतों में फूलने लगे इसका मतलब है पानी बहुत नीचे चला गया है।

हमारे प्रदेश में ऋषि पंचमी के पर्व में कांस घास की पूजा होती है। जिसमे फलहार रूप में बिना जुताई के कुदरती अनाजों के सेवन की सलाह दी जाती है। इसका आशय यह है जुताई हानिकारक है। जताई नहीं करने से खेतों की जलधारण शक्ति वापस आ जाती है और कांस गायब होने लगती है। ऐसा कुछ संजीवजी के खेतों को देख कर लग रहा है। कांस घास जा रही है और अच्छी वनस्पतियां आ रही हैं।
फुकूओकाजी अनेक बार अपनी कुदरती खेती को "कुछ मत करो " खेती कहते हैं। उनका मतलब यह है जब हम कुदरत के भरोसे खेती को छोड़ देते हैं तो अपने आप खेती हो जाती है।
कुदरती खेती करने से पहले हमारे खेत भी कांस घास से भर गए थे जुताई बंद करने से वो अपने आप ताकतवर और पानीदार हो गए है।
कांस घास में खेती करना बहुत आसान है बीजों को सीधे या बीज गोलियां बना कर कांस घास के ढकाव में बिखरा दिया जाता है। उसे काट काटकर आड़ा तिरछा फेला दिया जाता है। फसलें उगकर कटे घास के ढकाव के ऊपर आ कर सामान्य उत्पादन देती हैं। जैसा की नीचे चित्र में दिखाया गया है।
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गेंहूँ की नरवाई के ढकाव से निकलते मूंग के नन्हे पौधे |
यह ढकाव खरपतवार नियंत्रण करता है ,फसलों के रोग को दूर करता है नमी को संरक्षित करता है और जैविक खाद बनता है। इस ढकाव के नीचे केंचुए सहित असंख्य लाभकारी जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े रहते हैं जो फसलों के सभी पोषक तत्वों की आपूर्ति कर देते है। जब खेत अच्छे हो जाते हैं कांस गायब हो जाती है। हमारे खेतों में जहाँ कांस सिवाय कुछ नजर नहीं आता था वहां अब कांस का एक तिनका भी नजर नहीं आता है। जब हम ऋषि खेती के तीसरे साल में थे जापान के ऋषि खेती के प्रणेता फुकूओकाजी हमारे खेतों में पधारे थे हमारी खेती को उन्होंने नम्बर वन का खिताब दया था। उनका कहना था मै अभी अमेरिका से आ रहा हूँ। जमीन की जुताई के कारण अमेरिका तीन चौथाई से अधिक मरुस्थल में तब्दील हो गया है। उसकी निशानी कांस घास है। उन्हें नहीं मालूम है कांस घास में खेती कैसे करें पर आपने वह कर दिखाया है इसलिए हम आपको नंबर वन दे रहे हैं।
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