ऋषि पंचमी का महत्व
आज ऋषि पंचमी है। इस पर्व में महिलाएं बिना जुताई के अनाज का सेवन करती है इसमें कांस घास (खरपतवार ) की पूजा होती है और आधा झड़ा (खरपतवार ) की दान्तोन बनाई जाती है जिस से अनेक बार दांत साफ़ किए जाते है। इन सब बांतों का खेती किसानी आधारित जीवन संस्कृति में बहुत महत्व है। यह पर्व हमे बताता हैं की जब हम जमीन की जुताई करते है उस से धरती से जुडी असंख्य जैव विविधताओं की हिंसा होती है। कांस घास खेतों का मरू होने का प्रतीक है। वह बताती है की जुताई करने के कारण बरसात का जल जमीन में नहीं जाता है वह बह जाता है। कांस की जड़ २५-३० फ़ीट नीचे से पानी ऊपर लाने का काम करती है।
खेती करने के लिए जमीन की जुताई खरपतवारों को मारने के लिए की जाती है इस से असंख्य जीव जंतुओं और सूक्ष्म जीवाणुओं की हत्या हो जाती है यह परमाणु बम से होने वाली हिंसा से भी बड़ी हिंसा है। बिना जुताई का अनाज कुदरती अनाज होता है। हमारे इलाके में कुदरती धान बहुत होती थी उसे कोई बोता नहीं था यह आज भी कहीं कहीं मिल जाती है। इसके भात को कच्चे दूध के साथ सेवन किया जाता है। यदि इसे नियमित रूप से सेवन किया जाये तो कैंसर जैसे असाध्य रोग भी ठीक हो जाते है।
जमीन की जुताई करने से जमीन का कार्बन (जैविक खाद ) गैस बन कर उड़ जाता है जो ऊपर कम्बल की तरह आवरण बन कर धरती को गर्म कर देता है.जिसके कारण जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या उत्पन्न हो रही है। गैर कुदरती खान पान के कारण ही अनेक प्रकार की बीमारियां जन्म ले रही है।
हम विगत ३० साल से बिना जुताई की कुदरती खेती (ऋषि खेती )कर रहे हैं हमारे खेत कांस घास से भरे थे जुताई बंद कर देने से वह खतम हो गयी है अमेरिका में भी तीन चौथाई जमीन कान्स में घास में दब गयी है यह पनपते मरुस्थल की निशानी है। हमारे देश में पनपते मरुस्थल ,जलवायु परवर्तन, किसानो की आत्महत्या का केवल एक कारण है वह है जमीन की जुताई जो हमे आज का पर्व बताता है।
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