कचरे यानि भूमि ढकाव की फसलों के साथ कुदरती खेती
सामान्य खेत के कचरे |
कचरों को सामन्य भाषा में खरपतवार या नींदा कहा जाता है। ज्न्हे बरसों से किसान मारता आ रहा है। आदिवासी किसान इन्हे जला कर बिना जुताई की खेती करते हैं परम्परगत खेती किसानी में इन्हे जुताई कर मारा जाता रहा है जबसे रासायनिक खेती का आगमन हुआ है तब से अनेक खरपतवार नाशक जहर आ गए जिन्हे डालने से नींदे जल जाते हैं।
फसलोत्पादन के लिए वर्षों से यह माना जाता रहा है की कचरे मूल फसलों का खाना खा लेते हैं इसलिए फसलों का उत्पादन कम हो जाता है। इसलिए किसान बार बार खेतों की जुताई करता है ,कचरों को चुन चुन कर निकलता रहता है तथा अनेक किस्म के जहर डालता रहता है।
बीजों को बोने से पहलेपशु मूत्र +क्ले कीचड से उपचारित करते हैं। |
इस कारण खेत बीमार हो जाते हैं जिन में बीमार फसले पैदा होती है किसान को घाटा हो जाता है । जापान के मस्नोबू फुकुओका जी ने अस्सी साल और हम पिछले तीस सालो से बिना जुताई ,बिना निंदाई गुड़ाई करे कुदरती खेती कर रहे हैं। हमने ये पाया है की ये कचरे कुदरती खेती में विशेष सहयोग प्रदान करते हैं।
फेके गए बीज उग रहे हैं। |
इन कचरो के नीचे असंख्य जीव जंतु कीड़े मकोड़े रहते हैं जो खेत को खटोडा और पानीदार बना देते हैं और खेत को बहुत अच्छा बखर देते है । इस काम को कोई मशीन या रसायन नहीं कर सकता है।
इसलिए हम बरसात आने के बाद कचरों को आने देते है जब वो बड़े हो जाते हैं उनके साथ फसलों के बीज भी उपचारित कर फेंक देते है। ये उग कर कचरों से ऊपर निकल आते है कचरे उन्हें आने देते हैं उन पर कोई रोग आता है तो उसे भगा देते है ,नमि को संरक्षित रखते हैं खाद बनाते है।
कचरे में चल रही सब्जी की बेला |
4 comments:
बहुत खूब.
संभवतः इन्हें कचरा कहना भी उचित न होगा- इन्हें पौधों का सहयोगी ही कहना अच्छा होगा!
नींदे,खरपतवार को किसान कचरा कहते हैं।
लाभदायक व् ज्ञानवर्धक जानकारी
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https://www.merikheti.com/prakritik-kheti-ya-natural-farming-me-jal-jungle-jameen-sang-insaan-ki-sehat-se-jude-hain-raaj/
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