सब्जियों की ऋषि -खेती
जुताई नहीं ,रासायनिक जहर नहीं ,गोबर नहीं
घास आदि खरपतवारें जमीन के लिए वरदान हैं इन्हें नहीं मारें।
हमारे इन खेतों को देखिये अनेक प्रकार जंगली , अर्ध जंगली वनस्पतियां ,पेड़ झाड़ियां यहां ऐसी लगी जैसे कुदरती वनों में देखने मिलती हैं। यह वन नहीं है यह हमारा कुदरती खेत है। कुदरती खेती से पूर्व हम जुताई आधुनिक वैज्ञानिक खेती का अभ्यास करते थे जिसके कारण हमारे खेती मरुस्थल में तब्दील हो गए थे। इस कारण हमे खेती में बहुत घाटा हो रहा था। हम कर्ज में फंस गए थे। जैसे जुताई कुदरती खेती का पता चला जुताई ,गोबर की खाद और जहरीले रसायनों उपयोग बंद दिया। ऐसा करने से से खेत एक साल में हरियाली से ढँक गए थे।
क्ले (जैविक खाद ) से बीज गोलियां को बनाना |
हम इस हरियाली के बीच बीज गोलिया बना कर या सीधे बीजों को फेंक कर हरियाली को काट कर वहीं बिछा देते थे। बिछावन इस प्रकार बिछाई जाती है की नीचे तक रौशनी रहे जिसके सहारे नन्हे पौधे बिछावन से बाहर निकल जाते हैं। धीरे इस हरियाली के मध्य से न जाने कितने पेड़ निकल आये और हमारे खेत घने ऊंचे पेड़ों से ढँक गए। जिनसे हमे हर प्रकार का फायदा मिलने लगा है।
यह खेती सब्जियों और दालों के लिए वरदान हैं हम बीजों को क्ले (जैविक खाद ) में मिला कर बीज गोलियां तैयार कर लेते हैं। जिन्हें खरपतवारों के बीच यहना वहां बिखरा देते हैं जरूरत पड़ने पर खरपतवारों को काट कर बीज गोलियों के ऊपर फेल देते हैं। इस प्रकार आसानी से बिना कुछ किये बुआई का काम बिना मशीन , जहरीले रसायनों और गोबर के हो जाता है।
बीज गोलियों को सूखे या गीले घास आदि से ढांकना |
आजकल जैविक खेती का बहुत हल्ला है अनेक किसान जुताई कर रसायनों के बदले जैविक खाद बना कर डालते हैं अनेक प्रकार की जैविक खाद अब बाजार में मिलने लगी हैं किन्तु उन्हें मालूम नहीं है की जुताई करना
खेती में सबसे बड़ा घातक अजैविक काम है इसके चलते खेत और फसलें कभी जैविक नहीं बन सकते हैं।
बिना जुताई की कुदरती सब्जियां |
खेतों में जैविक खाद बना कर डालना या खरीद कर डालना गैर जरूरी काम है जुताई नहीं करने से खेत का कीमती खाद का बहना रुक जाता है खरपतवारों को वापस जहां का तहाँ डाल भर देने से खाद की आपूर्ति हो जाती है और बरसात का जल खेतों में समा जाता हैं जिसके कारण सिंचाई भी गैर जरूरी हो जाती है भूमिगत जल स्तर में बहुत इजाफा होता है।
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