गोबरधन पूजा और ऋषि खेती
चारे के पेड़ों से अनाज और पशुपालन
हमारे देश की संस्कृति ऋषि मुनियो की संस्कृति है जिसमे गोबरधन का खेती किसानी में विशेष महत्व है इसलिए हम यह त्यौहार मनाते हैं। खेती किसानी का पशुपालन के साथ चोली और दामन का साथ है। किसान पशुपालन के सहारे टिकाऊ खेती कर रहे थे, किन्तु इसे आधुनिक वैज्ञानिक खेती की "हरित क्रांति " ने मात्र कुछ सालो में मिटा कर रख दिया है। इसलिए खेती किसानी अब लाभ का धंदा नहीं रही है। अनेक किसान खेती छोड़ रहे हैं अनेक किसान आत्म हत्या जैसे जघन्य अपराध को करने लगे हैं।हाई प्रोटीन दलहन(नत्रजन ) जाती के चारे के पेड़ों के साथ गेंहूँ की ऋषि खेती |
उन दिनों जब बिजली ,पेट्रोलियम पदार्थ नहीं थे मशीने भी नहीं थी इसलिए किसान पशु पालते थे जिस से दूध ,गोबर ,ऊर्जा,चमड़ा और मांस आदि मिल जाया करता था। किसान जुताई के प्रति जागरूक रहते थे जुताई से कमजोर होते खेतों में जुताई को बंद कर उसमे पशु चराते थे जिस से खेत पुन : ताकतवर हो जाते थे और असंख्य हरे भरे पेड़ मिल जाते थे जिस से लकड़ियों का इंतजाम हो जाया करता था। किन्तु अब हमारी खेती पूरी तरह आयातित तेल की गुलाम हो गयी है पशुपालन की संस्कृति ख़त्म हो गयी है लोग शहरों में रहने लगे हैं। गोबरधन की पूजा बड़ी बड़ी गेरकुदरती गोशालों से लाये जा रहे गोबर से की जाती है। जिनका दूध भी दूषित है।
ऋषि खेती एक बिना जुताई की कुदरती खेती है इसमें पशु पालन कुदरती तरीके से किया जाता है पशुओं को कुदरती आहार खिलाया जाता है जिस से दूध और गोबर सब कुदरती रहता है इस से एक और जहाँ खेतों को कुदरती खाद मिल जाती है वही कुदरती दूध मिलता है। ऋषि खेती में हम हाई प्रोटीन चारे के दलहनी जाती के पेड़ लगाते हैं। जिनसे साल भर कुदरती हरा चारा मिलता रहता है। जुताई नहीं करने के कारण ऋषि खेत लगातार ताकतवर होते जाते हैं। जिस से भरपूर बंपर फसलें मिलती हैं। बरसात का पानी पूरा जमीन के द्वारा सोख लिए जाता है सूखे की कोई समस्या कभी नहीं रहती है। कुदरती खान पान से कैंसर की बीमारी भी ठीक हो जाती है। हमारे ऋषि खेत अब कुदरती अस्पताल में तब्दील हो गए हैं जिसमे यहां पैदा होने वाला अनाज ,सब्जियां दूध आदि दवाइयाँ हैं।
इसलिए हमारा अनुरोध है की गोबरधन के महत्व को समझे और ऋषि खेती के माध्यम से कुदरत की ओर वापस आएं और प्रदूषणकारी रासायनिक आहार और दवाइयों के प्रदूषण से बचें।
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