Thursday, June 28, 2018

असिंचित धान की जंगली खेती

दाल भात का जंगल 

सुबबूल पेड़ों के साथ 

धान की खेती के लिए सामान्यत: किसान पहले खेतों को समतल बना कर किनारों पर पानी को रोकने के लिए मेढ़ बनाते हैं फिर गहरी जुताई करके पानी भरा जाता है उसके बाद ट्रेक्टर या पशुओं  की मदद से कीचड मचाई जाती है। यह काम इसलिए किया जाता है जिस से बरसात का पानी या नलकूपों से दिया गया पानी जमीन में नहीं सोखा जा सके दूसरा कोई अन्य खरपतवार नहीं उगे। इसके बाद किसान पहले से तैयार किए गए रोपों को कीचड में लगते हैं।  इसके बाद हमेशा इस बात का ध्यान रखते हैं की भरा पानी निकल ना जाए। अनेको बार केकड़े ,चूहे आदि मेड में छेद कर देते हैं जिस से पानी निकल जाता है और उनकी फसल खराब हो जाती इसलिए वो पूरी बरसात पानी को भरते रहते हैं। इसमें बार रासायनिक खादों ,कीट नाशकों ,और खरपतवार नाशकों का उपयोग किया जाता है।


कुल मिला कर यह खेती बहुत महनत और खर्च वाली होती है जिस से एक और किसान को बहुत आर्थिक हानि होती है और खेत का पर्यावरण नस्ट हो जाता है। चावल जहरीला हो जाता है और वह अपनी कुदरती खुशबु भी खो देता है। जहरों  का उपयोग करने से खेत की समस्त जैवविवधताएँ मर जाती हैं। जहरीला चावल खाने से अनेक प्रकार की बीमारियां जन्म लेती है।

इसके विपरीत जंगली धान  की खेती है जिसमे यह कुछ नहीं करना होता है  केवल धान के बीजों को बीज गोलिया बना कर खेतों में बिखरा दिया जाता है साथ में हम तुअर के बीज भी गोलियाँ बना कर बिखरा देते जो अपने मौसम में अपने आप खरपतवारों की तरह ,खरपतवारों के साथ उग आती है। जो विपुल उत्पादन के साथ साथ हमारे पर्यावरण को भी भी संरक्षित करती है।