खेती किसानी में क्रांति
सुबबूल के पेड़ों के साथ गेंहूं की खेती
जल ,जैव-विवधताओं ,भूमि छरण और रासायनिक जहरों से मुक्ति
किसानो की आत्महत्या को रोकने और कईगुना अधिक आमदनी का फार्मूला
राजू टाइटस
होशंगाबाद के ऋषि खेती फार्म में पिछले 30 सालों से बिना जुताई ,बिना खाद बिना रसायनों से खेती की जा रही है। इसी कड़ी में इस फार्म में पशु पालन के लिए चारे के सुबबूल के पेड़ लगाए हैं। सुबबूल की पत्तियां एक ओर जहां हाई प्रोटीन चारे के लिए होती हैं वही पेड़ अपनी छाया के छेत्र में लगातार नत्रजन सप्लाय करने का काम करता है। बरसात को आकर्षित करता है और पानी को खेत में सोखने में सहायता करता है। जलाऊ लकड़ी देता है। फसलों की बीमारियों से रोकता है। खरपतवारों का नियंत्रण करता है। इसके नीचे अनाजों की बंपर फसल होती है।
जुताई नहीं करने ,खाद उर्वरकों ,कीट और खरपतनाशकों के उपयोग नहीं करने के कारण गेंहूं की उत्पादकता और गुणवत्ता सबसे अधिक रहती है। इन खेतों में पैदा होने वाला गेंहू जंगली बन जाता है।
एक और जहाँ जुताई आधारित खेती से पैदा होने वाला गेंहू मधु मेह ,कुपोषण ,कैंसर अदि का कारण बन रहा है वहीँ यह कुदरती जंगली गेंहू इन बीमारियों के इलाज के लिए मुंह मांगी कीमत पर माँगा जा रहा है।
इसके आलावा बिना जुताई पेड़ों और खरपतवारों के संग की जाने वाली खेती से खाद और जल का छरण पूर्णत: रुक जाता है। जिस से फार्म के कुए साल भर लबालब रहते हैं। भूमिगत जल के कारण खेत के भीतर नीचे तालाब बन जाते हैं जो नर्मदा नदी को जल सप्लाय करते रहते हैं।
बिना जुताई की खेती में मशीनों का उपयोग नहीं होता है इसलिए यह अन्य खेती की तरह आयातित तेल ,कर्ज ,मुआवजे और अनुदान से पूरीतरह मुक्त है।
खेती किसानी में चल रहे संकट जैसे आत्महत्या ,पलायन ,बेरोजगारी को थामने में यह खेती बहुत उपयोगी है.
पेड़ों के साथ की जाने वाली बिना जुताई की खेती से जल वायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को कम करने में भी मदद मिलती है।
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