सूखे की समस्या से निजात पाने के लिए बकरी पालन
यह लेख सूखे से परेशान महाराष्ट्र के मित्र सुभाष बड़े जी से बातचीत से प्रेरित होकर लिखा गया है।
सामान्यत: बकरी को पर्यावरण नुक्सान पहुँचाने वाला पशु माना जाता है। यह भ्रान्ति है। हमारे पर्यावरण को सबसे अधिक नुक्सान जमीन की जुताई से हो रहा है। इस कारण सूखा पड़ रहा है। खेती करना ना मुमकिन होते जा रहा है।ऐसे में किसान जमीन की जुताई बंद कर यदि उसमे बकरी पालन करते हैं तो उस से दो फायदे हैं पहला किसान की आमदनी बरकार रहती है तथा जमीन हरियाली से भर जाती है जिस से सूखे की समस्या का निदान हो जाता है।
सूखे की समस्या का मूल कारण जमीन की जुताई है इसके कारण बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है इसलिए हरियाली की भारी कमी हो जाती है। किन्तु जब हम जमीन की जुताई बंद कर देते हैं तो जमीन असंख्य हरी वनस्पतयों से ढँक जाती है जिसके कारण बरसात होने लगती है और जुताई के नहीं करने के कारण बरसात का पूरा पानी जमीन के अंदर सोख लिए जाता है।
वैसे तो आज कल अनेक प्रकार की खेती बिना जुताई के होने लगी है किन्तु हम पिछले तीन दशकों से अपने खेतों में बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे हैं जिसे हम ऋषि खेती कहते हैं। इसमें हम गेंहूँ ,चावल दालों ,सब्जियों ,फल आदि की की खेती के आलावा बड़े पैमाने पर सुबबूल लगते हैं जिस से हमे बकरियों का हरा चारा साल भर उपलब्ध रहता है साथ में बड़े पैमाने पर जलाऊ लकड़ी मिलती है।
हमने बकरी पालन को बहुत महत्व दिया है। बकरी का हरियाली से सीधा सम्बन्ध है। वह हरभरी अनेक किस्मों की पत्तियां खाती जाती है तथा उनके के बीजों की बुआई भी करती जाती है उसकी मेंगनी बहुत बढ़िया जैविक खाद है जो अपने आप खेतों में फैलती जाती है।
बकरी की देख रेख अन्य बड़े पशुओं की अपेक्षा बहुत आसान है। बकरियां आसानी से देशी किस्म के घर में रह जाती हैं उन्हें पीने के लिए साफ़ पानी की जरूरत रहती है। बकरी का दूध एक कुदरती दवाई है जिस के सेवन से कैंसर जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है। मधुमेह ,उच्य रक्तचाप, महिलाओं में खून की कमी आदि में यह रामबाण है,कुपोषण में इसके बहुत अच्छे प्रभाव देखे गए हैं।
बकरी को किसान का एटीएम माना जाता है जब चाहे तब बकरियों को बेच कर आमदनी प्राप्त की जा सकती है। जबकि बड़े पशुओं को बेचना बहुत बड़ी समस्या है। बकरी बहुत साफ़ सफाई पसंद जानवर है। उसके पालने से मक्खियों और मछरों की कोई समस्या नहीं रहती है। जबकि गोबर के कारण मक्खियों और मछरों की गंभीर समस्या रहती है।
बकरी पालन से खेतों में असंख्य प्रकार की वनस्पतयां उत्पन्न हो जाती हैं जो जमीन को बहुत गहराई तक उपजाऊ और पानीदार बना देती है। एक बकरी साल में दो बार बच्चे देती है सामन्यत: वह में दो बच्चे देती है कभी कभी वह तीन बच्चे भी दे देती हैं।
बकरियां प्रति दिन घूमना चाहती हैं उन्हें लगातार बाँध कर पालना महंगा पड़ता है। घूमने से चरवाहा और बकरियां दोनों स्वस्थ रहते हैं। बकरियों को अपनी जमीन में ही चराना चाहये इस से वे बीमारियों से बच जाती है। अनेक ऐसे फलदार पेड़ हैं जैसे सीताफल,निम्बू आदि वे बकरियों की चरोखरों में तेजी से पनपते हैं।
मात्र ५ साल में बकरी पालन से सूखी रेगिस्तानी जमीन हरियाली से भर जाती है कुओं का जल स्तर बढ़ जाता है। बरसात भी अधिक होने लगती है।
भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है जिसमे झूम खेती ,उतेरा खेती तथा देशी परंपरागत खेती में बिना जुताई का विशेष महत्व है। ये खेती की विधियां आज भी हजारों साल से टिकाऊ हैं। किन्तु मात्र हरितक्रांति की व्यपारिक खेती ने कुछ वर्षों में किसानो को और उपजाऊ जमीनो को मारने काम किया है।
भारत में आज तक ऐसा कोई भी वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं हुआ जिसने देश के टिकाऊ के विकास में कोई योगदान दिया है। वरन उसने देश की हजारों साल से विकसित की गयी देशी खेती किसानी को नस्ट कर दिया है। इसलिए देश आज पर्यावरण प्रदूषण के गंभीर संकट में फंस गया है जिसमे सूखे की समस्या सबसे गंभीर समस्या है इसके निदान में अब सबको मिलकर काम करने की जरूरत है। जिसमे बकरी पालन की एक महत्व पूर्ण भूमिका है।
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