पवार के कवर में गेंहू की जंगली खेती
घने पेड़ों का जंगल एक ग्राउंड कवर है .यह धरती का पोषण करता है जिस से उस में रहने वाली तमाम जेव्-विविधताएँ मानव सहित का पोषण होता है .किन्तु पिछले अनेक सालों से हमने इन कुदरती भूमि ढकाव के साधनों को नस्ट कर उन्हें अनाज के खेतों में बदल दिया है जिस से सभी जैव -विविधताओं के लिए कुदरती आहार ,जल और हवा का संकट खड़ा हो गया है .
जहाँ घने जंगल हुआ करते थे वहां अब मरुस्थल बन गये है .बरसात नही हो रही है ,खाने को आहार नही है ,पशुओं के लिए चारा नही है .तमाम वैज्ञानिक उपाय यहाँ फैल हैं .इसलिए अब जंगलों की और लोटने का सिल सिला चालू हो रहा है .
जंगली खेती जो विश्व में नेचरल फार्मिंग के नाम से जानी जाती है जिसकी खोज जापान के जग प्रसिद्ध क्रषि वैज्ञानिक स्व. मस्नोबू फुकुकाजी ने की है की जाने लगी है .
इस खेती में जुताई ,खाद और जहरों का उपयोग नही किया जाता है. जंगलों की तरह पेड़ों ,झाड़ियों .और भूमि ढकाव की वनस्पतियों को बचाया जाता है .जिस से हरियाली बनी रहती है बरसात होती रहती है और भूमि के अंदर तालाब बन जाते हैं . गहरी जड़ वाले पेड़ पौधे बरसात के जल को जमीन में ले जाते हैं और जब बरसात नही होती है तो नीचे से पानी खींच कर ऊपर कुदरती सिंचाई का काम करते हैं
जब हम जुताई वाली जमीन को जंगली खेती में बदलने का काम करते हैं तब हमारे खेत असंख्य घास ,क्लोवर ,अल्फ़ाअल्फ़ा ,पवार,ढेंचा ,सुबबूल जैसी कुदरती वन्सपतियों से धक जाते हैं .जिन्हें हम खरपतवार कहते हैं ये वनस्पतियाँ भी घने जंगलों की तरह बरसात को लाने ,जल प्रबंधन करने का काम करते हैं
.हम इन वनस्पतियों को बचाते हुए आपने काम की फसलें इनके सहारे उगा कर अपनी रोटी पैदा कर लेते हैं अनेक आदिवासी अंचलों में आदिवासी लोग इसी प्रकार हजारों सालों से अपनी आजीविका चला रहे हैं. वे एक और जंगलों को बचाते हैं और अपनी रोटी भी पैदा करते हैं .
अब मान लीजिए पहले साल से हमारे खेतों में पवार का
ने एक ग्राउंड कवर बना कर रखा है तो हम आसानी से इसके ढकाव में गेंहू की फसल ले सकते हैं.
यह कवर जमीन की गहरे तक जुताई कर देता है ,सभी अन्य वनस्पतियों जिन्हें हम खरपतवार कहते है का नियंत्रण कर देता है इसके नीचे असंख्य जमीन को पोषक तत्व प्रदान करने वाले जीवजन्तु ,सूख्श्म जीवाणु रहते हैं यह नमी को संरक्षित रखता है .इसके अवशेष जैविक खाद देते हैं .
इसके ढकाव में बरसात के बाद गेंहू के बीजों को सीधा नंगा ही छिडक देने से गेंहू की फसल पक जाती है एक एकड़ में 40 किलो बीज की जरूरत है .गेंहू के बीजों को पवार की फसल पकने के करीब 25 दिन पहले डालना चाहिए जब गेंहू को उगने के लिए पर्याप्त नमी रहती है .
इसके बाद पवार की जब फलियाँ पकने लगती है उन्हें काट लिया जाता है उसके बीज अलग कर लिए जाते हैं जो अनेक काम में आते हैं .कुछ बीजों को कवर क्रोप के लिए खेत में ही छोड़ दिया जाता है .
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