Sunday, August 6, 2017

लुप्त प्राय: सोयाबीन को पुनर्जीवित करे

लुप्त प्राय: सोयाबीन को पुनर्जीवित करे

ऋषि -खेती तकनीक अपनाये 

70 % कृषि खर्च और 50 % सिंचाई खर्च कम , फसल कीमत आठ गुना अधिक 
म होशंगाबाद के तवा कमांड के छेत्र में रहते हैं। यहां पर जब सोयाबीन की फसल की शुरुवाद हुई थी किसान तन  कर रहने लगा था। उसकी जेब में भरपूर पैसा रहता था।  सोयाबीन एक द्विदल की तिलहनी फसल है  इसमें प्रोटीन के साथ साथ पर्यात मात्रा में तेल भी रहता है। जब इसका तेल निकल लिया जाता है बचे खलचूरे में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है जो उत्तम पशुआहार के रूप में काम में आता है। तेल कम कोलेस्ट्रॉल युक्त लभप्रद होता है। सोयाबीन के खलचूरे को अनेक प्रकार के प्रोटीन युक्त व्यंजनों के लिए इस्तमाल किया जाता है। यह बच्चों और महिलाओं में कुपोषण को कम करने में बहुत उपयोगी है।
बिना जुताई की सोयाबीन (चित्र नेट से लिए है )

किन्तु दुर्भाग्य की बात है की सोयाबीन की फसल खेतों में होने वाले जुताई और यूरिया के इस्तमाल के कारण अब लुप्त प्राय : हो गई है इसके तेल के कारखाने बंद हो गए हैं। जिसके कारण अब किसान झुक कर चलने लगा है उसकी जेब खाली है ऊपर से वह  भारी कर्जे में फंस गया है। इसलिए  सोयाबीन की खेती को पुनर्जीवित करने का समय आ गया है। जिस से किसान फिर से अपना खोया सम्मान प्राप्त कर सके।

बिना जुताई गेंहूं की फसल (टाइटस फार्म )
हम पिछले तीस सालो से अधिक समय से बिना जुताई ,बिना खाद और रसायनो की खेती के अनुसंधान में लगे हैं  जिसे हम ऋषि कहते हैं।   हमने पाया है की जब खेत में बरसात में सोयाबीन को बिना जुताई करे बोया जाता है इसका बंपर उत्पादन मिलता है दूसरा यह इतना कुदरती यूरिया बना देती है जिस से अगली गेंहूं की फसल में यूरिया की कोई मांग नहीं रहती है। जुताई नहीं करने से और  कृषि के तमाम अवशेषों को जहां का तहाँ डाल  देने से  सिंचाई की मांग में 50 % की कमी आती है जुताई और खाद के बिना खेती करने से 70 % अतिरिक्त खर्च कम हो जाता है। तीसरा उत्पादन जुताई और मानव निर्मित खाद के बिना होने के कारण आसानी से कैंसर और कुपोषण जैसी बीमारियों को ठीक काने की छमता वाले बन जाते हैं जो बाजार बहुत ऊंची कीमतों पर मांगे जाते हैं। जिसे किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं रहती है।

गाजर घास का भूमि ढकाव (चित्र राजेश जैन जी ) 
बिना जुताई की सोयाबीन /गेंहूं के फसल चक्र में गाजर घास जैसे कुदरती भूमि ढकाव का बहुत बड़ा योगदान है हम पहले गाजर घास को बरसात में बढ़ने देते हैं जब यह घास करीब एक डेड़ फीट का हो जाता है इसमें सोयाबीन के बीजों को सीधा या सीड बाल बना कर खेतों में एक वर्ग मीटर में 10 बीजों के हिसाब से फेंक दिया जाता है जो गाजर घास के भूमि ढकाव में जम जाते हैं। सोयाबीन आराम से गाजरघास के ढकाव में बढ़ती जाती है तो दूसरी और गाजर घास सूखने लगती है एक समय जहां गाजर घास दिख रही थी वहां  सोयाबीन दिखने लगती है। गाजर घास को कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ती है। वैसे तो अब हर खेत में गाजर घास होने लगी है जिस से अनावश्यक किसान डर रहे हैं किन्तु जहां नहीं होती है वहां उसके बीज छिड़के जा सकते हैं।  गाजर घास की खासियत यह की यह खेत को नीचे से बिलकुल साफ़ कर देती है जहां सोया बीन आसानी से जम जाती है। फसल में कीट नाशकों और नींदा  नाशको की भी जरूरत नहीं पड़ती है।

सोयाबीन की फसल काटने से करीब दो सप्ताह पहले गेंहूं के बीजों को सोयाबीन की खड़ी फसल में छिड़क दिया जाता है जब गेंहू जम जाता है सोयाबीन की फसल को काट लिया जाता है। सोयाबीन की गहाई  के उपरान्त सोयाबीन के भूसे को भी वापस खेतों पर जहां का तहाँ फेंक दिया जाता है। इसी प्रकार गेंहूं की नरवाई भी खेतो में  ही रहने दिया जाता है। कृषि अवशेषों को लगातार वापस डालते रहने से उत्पादन भी लगातार बढ़ते जाता है। खेत ताकतवर होते जाते हैं।








6 comments:

  1. बिल्कुल सही कहा जी आपने अब किसानों को इस और लौटना ही होगा एक तो किसान आज भारी कर्जे में फंसा है और दूसरा रासायनिक खेती ने उसे बीमारियों की भी सौगात दी है ।आपका ये काम बहुत ही सराहनीय है कृपया मार्गदर्शन करते रहें जी।

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  2. जहाँ तक किसानो के फायदे वाली बात है वह आंशिक तौर पर ठीक लगती है पर सोयाबीन हमारे यहाँ की फसल तो ही नहीं मेरे दादा जी पीछे इसके कोई नहीं जानता था,तो इसकी स्वास्थय के बारे में लाभ पर की जो बात है उसमे संशय है| परन्तु निश्चय ही इसकी बड़ी की सब्जी बड़ी अच्छी लगती है|

    इसके दुष्प्रभाव भी है जो आम नीचे के लिंक में देख सकते हैं |
    https://www.youtube.com/watch?v=fVVltfoTWYk
    कृपया बताएं की इसे लगाने के बाद आपकी खेत में क्या परिवर्तन आया है? इसक तेल भी खाने में कितना उपयोगी है संचित जानकारी नहीं है!

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  3. मैं 50 सालो से सोयाबीन से परिचित हूं इसका विरोध नाजायज है।

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  4. श्री अंकेश ने जो कहा है वह गलत नहीं है. संभवतः जो सोयाबीन पश्चिमी देशों में उगाया जाता है और जिसके बीज हमारे देश में भेजे गए वह GM यानी genetically modified हैं. वे रासायनिक खाद के बिना नहीं उगते. यह सोयाबीन शरीर के लिए बेहद नुक्सान दायक है.
    पर संभवतः जापान और चीन जैसे देशों एं सोया हमेशा से ही खाया जाता था- वोह GMनहीं था.
    आप कृपया इस पर खुलासा करना चाहेंगे महोदय

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  5. सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु

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