Sunday, July 10, 2016

बाढ़ में सूखा

बाढ़ में सूखा 

पानी गिरा  नहीं की बाढ़ आ गयी और कुओं में पानी नहीं 


जंगल काट कर खेत बना दिए अब बरसात का पानी जमीन के अंदर नहीं जा रहा है इसलिए सूखा और बाढ़ दोनों कहर ढा रहे हैं। 

बिना-जुताई  बिना जल- भराई  की खेती है समाधान। 

जलभराव के कारण भूमिगत जल  आ रही है। 
ध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालो से कृषि कर्मण्य पुरूस्कार मिल रहा है। इसका मतलब यह है। हम खाद्यानो में आत्म निर्भर हो गए हैं। 

कल मेरे एक मित्र न कहा  की हमने एक गढ्डे को पूरने के लिए अनेक गढ्डे बना दिए हैं। 

जंगल काट कर खेत बनाना  अब हमको बहुत महंगा पड़ने वाला है। पिछले हजारों सालो से हम हरियाली के कारण पर्यावरण में आत्म निर्भर थे ,हवा ,पानी और हमारी फसलों में कोई कमी नहीं थी।  फिर भी हमने "हरित क्रांति " नामक औद्योगिक खेती को अपना कर हमे पर्यावरणीय भिखारी  बना लिया है। 

एक तो यह समस्या है कि  बादल आ रहे हैं पर बरस नहीं रहे थे और जब बरसे तो दो दिन में इतना बरसे कि बाढ़ ने कहर ढा दिया।  असल मे यह बरसात कोई काम की नहीं है पानी  सब बह कर समुद्र में चला जाता है। इसका मूल सम्बन्ध खेती करने की गैर कुदरती तकनीकी है जो पेड़ों की कटाई ,जमीन की जुताई ,जल-भराई जहरीले रसायनों और भारी मशीनों से की जा रही है।
उथले कुओं का पानी स्वास्थ  वर्धक रहता है। 

परंपरागत भारतीय खेती किसानी में पहले हर किसान अपने खेतों में पेड़ रखता था जिस भूमिगत  जल और बादलों के बीच सम्बन्ध स्थापित रहता था। जिस कुदरती जल चक्र बना रहता था। समय पर बरसात आती थी जो कम से कम  चार माह तक रहती थी। किन्तु हरित क्रांति मात्र कुछ सालों में स्थिति इतनी गम्भीर हो जयेगी इसका अनुमान किसी ने नहीं लगाया था। 

अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं हम अपने इलाके को लातूर और बुंदेलखंड बंनने से बचा सकते हैं हमे केवल बिना जुताई  की खेती पर जोर देने की जरूरत है। बिना जुताई  की खेती से खेत  हरियाली से भर जाते  और कृषि  उत्पादन भी बढ़ता जाता है। इस से बरसात का पानी खेतों के द्वारा सोख लिया जाता है।  भूमिगत जल का स्तर हर साल बढ़ता जाता है ,जिस से उथले कुएं लबालब हो जाते हैं। 


2 comments:

  1. GYAN VARDHAK JANKARI KE LIYE SHUKRIYA.

    RAJENDRA SINGH
    AJMER
    RAJASTHAN

    ReplyDelete
  2. आपने इतने दिन से क्यों कुछ नहीं लिखा है?

    ReplyDelete