Wednesday, November 25, 2015

Do Nothing .(कुछ मत करो )

भारतीय संस्कृति कुदरती संस्कृति है !

ऋषि खेती अपनी संस्कृति की और लोटने  का जरिया है.

जल वायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से मिलेगी सीख 

सीमेंट कंक्रीट ,पेट्रोलियम ,बिजली पर आधारित विकास नहीं वरन विनाश है।
आने वाले कुम्भ 2016 उज्जैन से लिए गया चित्र 
हमारी संस्कृति को पश्चिमी संस्कृति ने बहुत नुक्सान पहुँचाया है। इस संस्कृति को खेती किसानी ने हजारों साल बचा कर रखा किन्तु मात्र कुछ वर्षों की पश्चिमी विज्ञान पर आधारित खेती "हरित क्रांति " से यह मरणासन्न अवस्था में पहुँच गयी है। जिसे हमे  जीवित करना है। ऋषि खेती ,ऋषि मुनियों की संस्कृति "कुछ मत करो " (Do nothing ) के सिद्धांत पर आधारित है। जुताई करना ,रासायनिक उर्वरकों ,कीट और खरपतवार नाशकों का उपयोग ,कम्पोस्ट बनाना ,बायो और GM बीजों का उपयोग इसमें वर्जित है।इस से हरियाली नस्ट हो रही है।

ये खेती ,कुदरती वनो आधारित है। वनो में जिस प्रकार जैव-विविधतायें पनपती हैं उसी प्रकार यह खेती होती है। इसमें नहीं के बराबर मशीनो से काम होता है।  इसका मूल मन्त्र यह है की हर कोई अपनी पसंद से अपना खाना पैदा करे।  यह नहीं कि सब  गेंहूँ और चावल पैदा करें और केवल वही खाएं।  इसके कारण कुदरत का और किसानो का बहुत शोषण होता है।
गैर कुदरती खेती के कारण हमारे खेत रेगिस्तान में तब्दील हो रहे हैं और हम लोग बीमार हो रहे है किसान आत्म  हत्या कर रहे हैं. हम भारत वासी बात अपनी संस्कृति की करते हैं किन्तु अपनाते विदेशी संस्कृति है।
ऋषि मुनियों ने जो हमे ज्ञान दिया है उस से हम आज तक बचे हैं।  किन्तु अब जलवायु परिवर्तन और बढ़ती
गर्मी ने हमे  अपनी संस्कृति की और लोटने  पर बाध्य कर दिया है।
दुनिया में किसी के पास इस से बचने का कोई रास्ता नहीं है किन्तु हमारे पास अभी भी अपनी संस्कृति है जिस से हम बच सकते हैं।  गीताजी में लिखा है "अकर्म " (Do Nothing ) कुदरत के साथ जीने का तरीका है।


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