मूंग की अन्तर फसल
जलवायू परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग
मूंग वातावरण से नत्रजन खींच कर जमीन में छोड़ देती है जिस से अगली फसल को यूरिया की जरूरत नहीं रहती है।
हमारा पर्यावरण दिनो दिन खराब होता जा रहा है। गम्राति धरति बदलते मौसम की समस्या आज कल एक प्रमुख समस्या के रुप मे हमारे सामने है जिसका सीधा सम्बन्ध हमारी खेती किसानी से है जो हमारा मुख्य आधार है। एक ओर गहरी जुताई और घातक कृषि रासायनो के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है वहीं इस घाटे वाली खेती के कारण अनेक किसान आत्म हत्या कर रहे हैं।
विगत दिनों संसद मे गर्माति धरति पर बहस हुई किन्तु समाधान हेतु कोई भी कारगर कदम इस समस्या को कम करने के लिये नहीं उठाया गया इसका हमे खेद है।
मूंग की फसल |
हम दैनिक भास्कर के आभारी हैं जिसने बहुत पहले से हमारे पर्यावरण को बचाने के लिये बिना जुताई की खेती के महत्व को समझ कर उसे अखबार मे स्थान देना शुरु कर दिया था। आज यही एक मात्र ऐसा उपाय है जिस पर अमेरिका जैसे सम्पन्न देश ने सबसे अधिक घ्यान दिया है और जिसके उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त हुए हैं ।
वे इसे नो - कन्जरवेटिव फार्मिंग कहते हैं।
जैसा कि विदित है हम पिछले तीस बरसो से इस खेती को अमल मे लाते हुए इसके प्रचार मे संलग्न हैं। अखबार मे पढ़ कर अनेक किसान और सामाजिक संगठन इस खेती की जानकारी हेतु हमारे फार्म पर आते हैं।
मूंग की जड़ें जिनमे ryzobium रहते है जो कुदरती यूरिया बनाते हैं। |
मूंग के बीज |
जुताई, खाद और विषैली दवाओ का उपयोग नही करने से एक ओर जहां कार्बन का उत्सर्जन रुकता है वहीं कुदरति मूंग की फसल मिलती है जिसकी बाजार मे रासायनिक मूंग की तुलना मे आठ गुना कीमत है। इसे कहते हैं “हर्रा लगे न फिटकरी और रंगचोखा होय!"
sir
ReplyDeletekya is tarike ki moong ki kheti chane ki fasal k sath bhi sambhav hain.
Kya is moong ki fasal ko bechne ka koi visesh sthan he....?
ReplyDeleteKya is moong ki fasal ko bechne ka koi visesh sthan he....?
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