Wednesday, January 22, 2014

गाँधीवादी भ्रस्टाचार उन्मूलन आंदोलन

आम आदमी पार्टी की सरकार का ऐतिहासिक दो दिवसीय धरना

न्ना हजारे जी के 'जनलोकपाल कानून ' की मांग को लेकर चला गाँधीवादी भ्रस्टाचार उन्मूलन का आंदोलन अब आमआदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार बन कर व्यवस्था परिवर्तन के नाम से चल रहा है जिसमे अन्ना हजारे जी का कोई सहयोग नहीं है पर वे इसके विरोधी भी नहीं हैं. उनका कहना है अच्छे लोग सत्ता में रहकर ईमानदारी से काम कर 'सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता ' जेसी भ्रस्ट व्यवस्था को बदल सकते हैं.

इसी आशय से केजरीवालजी ने 'आप ' को बनाया है यह दो दिवसीय धरना दिल्ली सरकार के आधीन पुलिस के नहीं रहने की गलत नीति के खिलाफ उठाया गया था किन्तु मुख्य आशय बरसों से दिल्ली सरकार की स्व्तंत्रता को लेकर उठ रहे सवाल भी सम्म्लित थे. दूसरा आमआदमी पार्टी की सरकार यह भी प्रयास कर रही है कि सरकार बंद कमरों से उठ कर आमआदमी का सेवक बन कर काम करे.
तीनो चाहे वह पुलिस की बात हो चाहे वह दिल्ली को सम्पूर्ण राज्य दिलाने का मामला हो चाहे वह सच्चे लोकतंत्र का मामला हो जीत हुई है भले वह २६ जनवरी के कारण आंशिक ही क्यों ना रही हो.
 पर मेरे व्यक्तिगत विचारों में यह गाँधीवादी सोच की विजय है. किन्तु  सच्चाई और अहिंसा बोल चाल और व्यवहार से भी प्रगट होना चाहिए। असली हिंसा की शुरुवाद जवान से शुरू होती है.

Saturday, January 18, 2014

भ्रस्ट सरकारी खेती के कारण भूख से मरने लगे हैं लोग

मशीनी जुताई और जहरीले रसायनो का दोष

"हरित क्रांति " के लिए ये कहते नहीं थकतीं नहीं हैं सरकारें कि पहले देश में लोग भूख से मर रहे थे अब हम इतना पैदा करने लगे हैं कि दूसरे  देशों को भी भेजने लगे हैं.
ये सही है कि देश में चावल और गेंहूं इतना पैदा होने लगा है कि इसको रखने की जगह नहीं है. वह सड़ने लगा है. इस लिए सरकार इसे सस्ते दाम पर बटवा रही है.
किन्तु स्थिती इसके विपरीत है जो अनाज सरकारें किसानो से भारी अनुदान और सस्ते कर्ज को देकर पैदा करवा रही है इसमें  भारी गुणवत्ता की कमी है और यह रासायनिक प्रदूषण के कारण खाने लायक नहीं रहा है. बेस्वाद है ,इसको खाने से एक और जहाँ पेट नहीं भरता है वहीं मज़दूर वर्ग  यह कहता है कि पहले हम दो रोटी खाकर दिन भर बिना थके काम  कर लेते थे अब आठ रोटी खाकर भी नहीं कर सकते हैं. महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का भी यही कारण है. मधुमेह और ब्लडप्रेशर आम होने लगा हैं. ये बीमारी अब महनतकश लोगों और कम उम्र के लोगों में दिखाई दे रही है. सच पूँछें तो आम लोग इस अनाज को खाकर भूख से मर रहे हैं.

इसका कारण सरकार द्वारा गेरकुदरती भ्रस्ट खेती को बढ़ावा देना है.
जिसमे जमीन की जुताई , जहरीले रसायनो का उपयोग ,गेरकुदरती बीजों का उपयोग आदि मुख्य हैं. खेती करने के लिए जब जमीन की जुताई की जाती है तब खेतों की हरियाली और जैविकता नस्ट हो जाती है बरसात के पानी से खेत में कीचड बन जाती है जो बरसात के पानी को जमीन के भीतर नहीं जाने देती है जिस के कारण पानी तेजी से बहता है अपने साथ खेत की जैविक खाद को भी बहाकर ले जाता है. इस से हर साल खेत कमजोर होते जाते हैं कमजोर खेतों में कमजोर फसलें पैदा होती हैं जिसे खाने से पेट नहीं भरता है लोग भूख से मरने लगे हैं।
ये हर आमआदमी जानता है पर उसके पास विकल्प नहीं है सरकारें किसानो के नाम से जुताई की मशीनो और जहरीले रसायनो को बनाने वाली कम्पनियों को लाभ पहुँचाने के लिए भारी अनुदान दे रही हैं यह सबसे बड़ा भ्रस्टाचार है.
हम पिछले २७ सालो से जुताई और जहरीले रसायनो के बिना निर्विवाद खेती कर रहे है इस से हमे बिना सरकारी अनुदान कुदरती आहार मिल रहा है जो स्वादिस्ट है ,गुणकारी है जो केंसर जैसी बीमारी को भी ठीक कर देता है. -ऋषि- खेती

बिजली बचाओ देश बचाओ

24 घंटे बिजली का गोरख धंदा 

मोदीजी गुजरात का चुनाव ये कहते जीत गए कि देखिये गुजरात में हर गांव और शहर में हम २४ घंटे बिजली दे रहे हैं. शीला जी दिल्ली में २४ घंटे बिजली देने के बाद हार गयीं वेसे ही शिवराजजी ने M.P. के चुनाव से पहले अनेक शहरों को २४ घंटे बिजली देने के लिए बहुत ताकत लगाई जिसका फायदा उन्हें मिल भी गया है.
किन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि ये बिजली निजी कम्पनियों के द्वारा दी जा रही है जो ७०% विदेशी निवेश और विदेशी कोयले से बन रही है. इस में सरकार का बस इतना सहयोग है कि सरकार ने इन्हे बिजली बनाने और बेचने का अधिकार दे दिया है जिसके बदले ये कम्पनियों चुनाव में फायदा पहुंचातीं है.
ये कम्पनियां भारी मात्रा में पर्यावरण को नुक्सान पहुंचा रही है और खूब पैसा  कमा रही हैं. यदि भारत में बने पर्यावरण संरक्षण और अन्य कानूनो के तहत सही जाँच हो तो ना जाने कितने लोग सींखचों के अंदर दिखाई देंगे।
आमआदमी पार्टी की सरकार ने पहली मर्तवा बिजली  कम्पनियों के खिलाफ जाँच बैठायी है. भाजपा और कांग्रेस जिसका खुलकर विरोध कर रही हैं. यदि इतनी ही ये ईमानदार हैं तो क्यों ? ये कम्पनियों की जाँच नहीं करवा रहीं हैं.क्योंकि इन्हे जेल जाने का डर है.

ऋषि खेती

Friday, January 17, 2014

रिटेल में विदेशी निवेश और निजी कम्पनियों का आडिट

भ्रस्टाचार मुक्त शाशन का ट्रेलर
'आप 'कि सरकार ने अल्पमत में होते हुए मात्र दो हफ़्तों में अनेक बड़े काम किए हैं जिनमे पानी बिजली के आलावा, रिलाइंस और टाटा जेसी कम्पनियों का आडिट का आदेश, रिटेल में विदेशी विनिमय पर रोक.
भारत में आज तक किसी सरकार ने ऐसा करने की हिम्मत नही दिखाई है. FDI और आडिट का काम वही मुख्यमंत्री कर सकता है जो ईमानदार है जिसे  भ्रस्टाचार मुक्त प्रशाषन करने की जिद हो. असल में सरकारे निजी कम्पनियों से रिश्वत खाकर उन्हें रियायत देती हैं. जिसका सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली और गुजरात रहे हैं. शीलाजी कहतीं थीं विकास देखना हो तो दिल्ली का विकास देखो अनेक फ्लाई ओवर ,मेट्रो आदि पर उनका क्या हर्ष हुआ ऐसा ही मोदीजी कहते हैं विकास देखना है तो गुजरात का विकास देखो ऐसा. निजी कम्पनियों से रिश्वत  खाकर किये गये विकास को जनता को दिखाकर देश में राज नहीं किया जा सकता है. हाँ यदि गुजरात सरकार लोकायक्त या लोकपाल लाकर चुनाव से पहले निजी कंपनियों का आडिट करवाले तो जरुर मोदीजी को इस का लाभ मिल सकता है अन्यथा केजरीवाल उनका रथ रोकने में कामयाब हो जायेंगे।

Wednesday, January 15, 2014

पटेलजी के सवाल मेरे जवाब (ऋषि खेती )



 पटेलजी के सवाल मेरे जवाब (ऋषि खेती )
आपके सवाल 
१.       सुबबूलके बीज कितने गहेरे छिडकने चाहिए ? मेरा मतलब है के उगने के बाद दो सुबबूलके बीचमें कितना अंतर होना चाहिए ? आप मुझे नाप  भी बता सकते है जैसे कि एक चौथाई एकड़ में इतने ग्राम बिज छिडके चाहिए |                               
 
२.      सुबबूलके बीजको गरम पानीमें डालनेके बाद छिडकने चाहिए कि बिना ट्रीटमेंटसे चलेगा |
 
३.      छिडकनेके बाद ऊपर मिटटी कितनी होनी चाहिए | या झाड़ू फिरानेसे चलेगा |
 
४.     सुबबूलके बिज उगनेका कितना रेट होता हैं ? यानीकी सौ बिजमें से कितने बिज अंकुरित होते है ? (क्यूंकि बिजपर बड़ा सख्त पड़ होता है )
 
५.     कई जगह पढ़ा है कि नेचरल फार्मिंगमें एले  फार्मिंग (Alley Farming) की जा सकतीहै | दस, बीस या तिस फिट की दूरीमें सुबबूलकी एक, दो या तिन लाइन (पूरब- पच्छिम दिशामें)  उगानेके बाद बीचमें अनाज, दलहन या शब्जिकी खेती की जा सकतीहै | ए एले फर्मिन्ग के बारेमें आपकी क्या राय है ? यदि हाँ है तो सुबबुल्की लाइन कितनी दूरीपर आइडिअल है ? और एक एलेमें सुबबुलकी कितनी लाइन (एक,दो या तिन) होनी चाहिए ?
 
६.      मैं ए सब इसलिए पूछ रहाहूँ कि में सब बातोंमें डिटेइल में जानेके बाद ही काम  करता हूँ के बादमें दिक्कत कम आएं |
 
७.    आपने बताया था कि बरसात के बाद सुबबूल जब जमीन को करीब २ फीट का होकर ढँकले तब आप उस ढकाव में अनाज,सब्जी आदि कि खेती कर सकते है कैसे करना है में विस्तार से बाद में बताऊंगा। हो सके तो आप मुझे अभी बताएँ ताकि मेरा दिमाग सोचना बंध करदे | मैं आपका बड़ा आभारी रहूँगा | आपकी कोई बुक हो तो मैं खरीदनेके लिए तैयार हूँ |
मेरा पर्सनल मत है कि आपको बुक लिखनी चाहिए ताकि सब नेचरल फार्मिंग करने वालोंको बड़ी सहायता हो | आपका नेचरल फार्मिंगमें इंडियामें बड़ा नाम है.|  फुकुओकाजीकी बुकोंसे दुनियाके कितने लोंगोका भला होता है |
 जवाब 
1- एक चौथाई एकड़ में कम से कम १० पेड़ जरूरी हैं अन्य फसलों के साथ. किन्तु यदी जमीन को जल्दी सुधारना है तो इसे घना भी छिटका जा सकता है. ये बीज की उपलब्धता और जमीन के छेत्रफल पर निर्भर है.
२- कोई ट्रीटमेंट की जरुरत नहीं है सीधा छिड़काव किया जा सकता है शुरू में सुरक्षा की जरुरत है.
३- सीधे बीजों का छिड़काव जमीन के ऊपर करना है जेसे बीज पेड़ से कुदरती गिरते हैं.
४ - १० बीजों को उगाकर प्रयोग करने से पता चल जायेगा। बीजों की गुणवत्ता पर भी निर्भर रहता है.
५- ये विधि बिना जुताई की नहीं है इसमें किसान पेड़ों के बीच जुताई कर खेती करते हैं मै इसे गलत मानता हूँ. 
६ - सोच सही है मेरी सलाह है थोड़े में पहले प्रयोग करके देख लें अपने घर के पास क्यारियों में प्रयोग किआ जा सकता है.
७ - इस को देखिये https://picasaweb.google.com/104446847230945407735/GROWINGRICEWITHOUTDOINGANYTHINGAUGUST2011?authuser=0&feat=directlink
ये गाजर घास के कवर में है ऐसा ही हम सुबबूल के कवर में कर सकते हैं. गेंहूं और चावल के लिए विधि एक ही है गेंहूं में सिचाई करनी पड़ती है. चावल में कुछ करने की जरुरत नहीं है.
किताब लिखना है जरुर लिखूंगा।
धन्यवाद 

स्वराज लाओ देश बचाओ

No-Till Natural Farming (ऋषि-खेती )
स्वराज लाओ देश  बचाओ
     हमारे इन कुदरती खेतों को देखिये लहलहाते हरे भरे फलदार ,अर्ध जंगली वृक्षों के  साथ लहलहाती गेंहूं की और सब्जिओं की फसल उनके साथ में घूमती मुर्गियां और बकरियां, इन खेतों को २७ सालों से खोदा जोता बखरा नहीं गया है ना ही इसमें किसी भी प्रकार का मानव निर्मित खाद और रसायन डाला गया है .यह है बिना-जुताई की कुदरती खेती जो हमे कुदरती रोटी ,पानी और ईंधन के साथ साथ जीने के लिए भरपूर आमदनी भी देती है. इसकी उत्पादकता और गुणवत्ता का कोई मुकाबला नहीं है. ये खेती सरकारी अनुदान और सहायता के बगैर होती है. इन खेतों में लगातार कुदरती उर्वरकता का संचार हो रहा है. यह स्वराजी योजना है.

दूसरी ओर   हमारे पड़ोसियों के खेत हैं जहां सरकारी खेती हो रही है जहाँ एक भी पेड़ नहीं है. मशीनी जुताई और जहरीले रसायनो के बिना यहाँ फसल पैदा नहीं होती हैं. यह है आधुनिक वैज्ञानिक खेती जिसकी उत्पादकता और गुणवत्ता लगातार हर वर्ष कम होती जा रही है. इसमें ८०% सरकारी अनुदान है. जिसके बावजूद किसान घाटे में हैं. उन्हें खाने को कुदरती रोटी पीने को पानी और खाना पकाने को लकड़ियां उपलब्ध नहीं हैं. इन खेतों की उर्वरकता, जलधारण शक्ती लगातार कम हो रही है. ये खेत रेगिस्तान में तब्दील हो रहे हैं. ये गुलामी की निशानी है.
हम विदेशी पैसे और आयातित तेल की गुलामी में फंस गए हैं इसी लिए आर्थिक मंदी ,बेरोजगारी ,महामारियां ,
असुरक्षा और भ्रस्टाचार चरम सीमा पर है.इस  लिए हम स्वराज की मांग कर रहे हैं. ऋषि-खेती स्वराज का पहला कदम है.
स्वराज लाओ देश बचाओ
rajuktitus@gmail.com (09179738049)

गंदी राजनीती को झाड़ू मारता दिल्ली का गांधी




No-Till Natural Farming (ऋषि खेती )




गंदी राजनीती को झाड़ू मारता दिल्ली का गांधी 
मोदीजी की गिरती साख  और 'आप ' की बढ़ती साख से पता चल रहा है  कि लोकसभा चुनाव दिल्ली की तरह त्रिकोणी नहीं रहने वाले हैं. दिल्ली में कांग्रेस की हार के कारण अब कांग्रेस मैदान से गायब हो गयी है. इसी प्रकार  अनेक पार्टियां जो दिल्ली में अपनी जगह नहीं बना पायी हैं उनका भी लोकसभा में सूपड़ा साफ़ होने की सम्भावना प्रबल हो गयी है. भाजपा का ग्राफ 'आप ' की सीटें डिकलर होने के बाद तेजी से गिरेगा. 
इस का सबसे बड़ा कारण अप्रकृतिक राजा का समय पूर्व डिक्लेरेशन जिसका आदरणीय अडवाणीजी ने विरोध किया था ,दूसरा अडवाणीजी ने आगाह किया था कि पार्टी को ईमानदारी से लोकसभा का चुनाव भ्रस्टाचार के मुद्दे पर ही लड़ना चाहिए जो नहीं हुआ जिसे 'आप ' ने भुना लिया है.
   किन्तु इन सब बांतों से हटकर एक महत्व पूर्ण बात ये भी है कि 'आप ' क्यों ? लोगों के दिल में जगह बना रही है उसका कारण स्वम केजरीवाल जी हैं जो पिछले तीन साल से भिन्न २ आंदोलनो के मार्फ़त से अपनी जान को जोखिम में डालकर कार्य करते रहे है इस लिए मीडिया उनको लगातार प्रचारित कर रहा है. इसके विपरीत मोदीजी अपने को विज्ञापित कर के वाहवाही लूटने की कोशिश कर रहे हैं जैसा बाबा रामदेव करते है. कल उनका सलमान खान के साथ पतंग उड़ाना भी विज्ञापन ही था.
इस समय देश में निचले और ऊपरी स्तर पर फेले भ्रस्टाचार से आमआदमी त्रस्त है उसे महात्मा गांधीजी
जैसी छवी वाला नेता चाहिए जिसमे केजरीवालजी टॉप में हैं.  09179738049 rajuktitus@gmail.com.

रोटी में जहर

रोटी में जहर
हमारे आस पास का वातावरण बहुत गन्दा  हो रहा है.
 रोटी,पानी,हवा सब में जहर घुल रहा है. इस कारण केंसर ,नवजात बच्चों की मौत ,खून में कमी आदि अनेक रोग महामारियों की तरह पनप रहे हैं. बे रोजगारी ,ईंधन की समस्या हर घर में है.
 ऐसा गेर कुदरती विकास के कारण है.चमचमाती सड़कें , हवाई जहाज,फ्ल्याई ओवर ,बड़ी बड़ी कारें ही विकास कहलाने लगें हैं. २४ घंटे बिजली ,पानी ,पेट्रोल ,सस्ता अनाज ही केवल विकास के माप दंड रह गए हैं. जिनके कारण ये गंदगी फेल रही है.
दिल्ली देश की राजधानी है. जिसमे इस विकास और उससे फेल रही गंदगी और अव्यवस्था का नजारा आज जनता के सामने है. ये हालत देश के सभी महानगरों और नगरों की है.
आम आदमी को२४ घंटे बिजली भले न मिले उसे दो वक्त की जहर मुक्त रोटी जरुर चाहिए जो मौजूदा सरकारें देने में असमर्थ रहीं हैं. हमारी रोटी में जहर खेतों से आ रहा है. आज कल खेतों में फसलों को पैदा करने के लिए अंधाधुन्द जहर डाले जा रहे हैं. ऐसा गेर कुदरती खेती करने के कारण है. जिसके लिए मौजूदा सरकारें दोषी हैं.
ये सरकारें गंदी हो गयीं है. इस लिए गंदगी फेल रही है. हमे इन्हे बदलने की जरुरत है.
 हमे ईमानदार साफ़ सुथरी सरकार की जरुरत है. जिस से दो वक्त की रोटी मिल सके.

पानी रे पानी


पानी रे पानी

दिल्ली देश का दिल है ये देश की राजधानी है. आज़ादी के बाद से यहाँ अनेक सरकारे आयीं और गयीं पर पानी की समस्या का हल नहीं हो सका है.ये बड़ा प्रश्न है ? पानी तो कुदरत की देन  है. फिर क्या कारण है लोगों को आज दिल्ली में पीने का पानी नहीं मिल रहा है.

इसका कारण है" गेरकुदरती" विकास है. जिसका बखान सरकारें हमेशा करती आयी हैं. लोगों का कहना है की जब बरसात होती है तो हमारे यहाँ घुटने घुटने पानी भर जाता है किन्तु बरसात के जाते ही हम पीने के पानी को तरस जाते हैं. ये विकास नहीं विनाश है. जिससे  सबसे अधिक विकसित कहे जाने वाले महानगर परेशान हैं.

ये समस्या केवल नगरों या महानगरों में नहीं है पूरा देश इस समस्या से पीड़ित है. सूखा और बाढ़ इसका जीता जागता उदाहरण है. असल में ऐसा इस लिए है क्यों कि बरसात तो हो रही है पर हम बरसात के पानी को धरती में समाने से रोक रहे हैं. पानी धरती में नहीं समाता है वह रुक जाता है बाढ़ आ जाती है घरती में पानी नहीं इकठा रहने के कारण सूखा पड़ जाता है.

इस समस्या का सबसे बड़ा कारण गेरकुदरती खेती है. जमीन की जुताई सबसे बड़ा खेती में गेरकुदरती काम है. जुताई के कारण बरसात के पानी को जमीन के भीतर ले जाने वाले रास्ते जैसे केंचुओं ,चीटियों ,दीमक आदि के घर बंद हो जाते है.पानी अंदर नहीं जाता है. वह तेजी से बहता है अपने साथ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है.

भूमिगत जल की कमी के कारण पानी की समस्या बढ़ती जाती है इस के कारण जहाँ खेती किसानी प्रभावित होती है वहीं हरियाली भी कम हो जाती है और बरसात भी कम हो जाती है. पहले हर गांव मोहल्ले में कुए और तालाब होते थे. किसान कुदरती खेती करते थे भरपूर बरसात रहती थी पानी की कोई कमी नहीं रहती थी.

हमारे घर के कुए में भी पानी ख़तम हो गया था किन्तु बिना जुताई की कुदरती खेती करने से पानी लगातार बढ़ रहा है. इस खेती को हम ऋषि-खेती कहते हैं. यह कुदरती विकास की पहली सीढ़ी है.जिसे करने के लिए कुछ नहीं करने की जरुरत है. अधिक जानकारी के लिए 09179738049 पर संपर्क कर सकते है.

Saturday, January 11, 2014

ऋषि -खेती

ऋषि -खेती
No-Till Natural Farming
क्या है आमआदमी पार्टी की कृषी नीति ?
आमआदमी पार्टी का आदर्श"सत्य और अहिंसा " है.
भारतीय अहिंसात्मक स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई भी 'सत्य और अहिंसा ' के मार्ग पर लड़ी गयी थी और स्वराज की स्थापना हुई थी. जिसके नायक महात्मा गांधीजी थे. गांधीजी की निधन के बाद जब 'सत्य और अहिंसा ' के मूल्यों पर आधारित टिकाऊ विकास की बात आयी तो आचार्य विनोबा भावे ने गांधीजी के शिष्य के रूप में इस का बीड़ा उठाया था.
उन्होंने पाया कि असली भारत गांव में रहता है इसलिए गांव के टिकाऊ विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता और गांव की अर्थ व्यवस्था खेती पर टिकी है इस लिए  जब तक खेती आत्म निर्भर  नहीं होती जब तक किसान का जीवन स्तर का विकास  नहीं हो सकता है और तब तक ना गांव का विकास होगा नाही  देश का विकास हो सकता है.
  इस लिए उन्होंने ऐसी खेती की खोज के लिए अनुसन्धान करना शुरू कर दिया था.
उन्होंने मशीनो से होने वाली खेती को 'एंजिन ' खेती नाम दिया ,दूसरी खेती जो पशु बल से होती है उसका नाम उन्होंने  'ऋषभ ' खेती रखा तीसरी खेती जिसमे किसान मशीन और पशुबल दोनों के बिना केवल अपने हाथों से खेती करते हैं को उन्होंने 'ऋषि-खेती ' नाम दिया था.
  उन्होंने तीनो किस्म की पारम्परिक खेती की विधियों में तुलनात्मक अध्यन कर 'ऋषि-खेती' को "सत्य और अहिंसा " के मूल्यों पर आधारित खेती मान कर सरकार से सही मायने में स्वराज कायम करने के लिए आग्रह किया था.
   ऋषि-खेती योजना को लागू करने के पीछे विनोबाजी का सोच था कि देश में जमीनो की कमी नहीं है हम सब अपना खाना स्वम पैदा कर सकते हैं इस से पर्यावरण सुरक्षित रहेगा और किसान का शोषण नहीं होगा, रोजगार की कोई समस्या नहीं रहेगी ,आयातित तेल की कोई जरुरत नहीं रहेगी।
उन्होंने खेती से गांव का विकास ,गांव से देश के विकास के मार्ग का नाम 'सर्वोदय ' रखा था. जो असली स्वराज की भावना से ओत प्रोत था.

इस योजना को भारत सरकार ने ठुकरा दिया और सरकार ने 'असत्य और हिंसा ' पर आधारित "एंजिन खेती " को अपना लिया जो पूरी तरह आयातित तेल की गुलाम है ,जिस से हमारे पर्यावरण का बहुत विनाश हो रहा है ,खेत और किसान मरते जा रहे हैं ,थाली में जहर मिल रहा  है .
   आज देश में जितनी सरकारे हैं सब हिंसात्मक खेती को ही विकास की कुंजी मान रही हैं.
हम अपने खेतों में पिछले २७ सालो से ऋषि-खेती कर रहे हैं और उसके प्रचार प्रसार में सलग्न हैं. अनेक किसान भारत में और भारत के बाहर इस खेती को करने लगे हैं. इस खेती में' जुताई ' (Plowing ) करने को सबसे बड़ा हिसात्मक काम माना जाता है.
ऋषि-खेती गेंहूं


   जुताई करने से जमीन की तमाम जैव-विविधताएं मर जाती है ,बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है वह बह जाता है, जिस से एक ओर  जमीन के अंदर का जल स्तर गिरता जाता है. सूखा और बाढ़ दोनों इस के कारण है.
आज  भी ये खेती दूरदराज आदिवासी इलाकों में देखने को मिलती है. अनेक किसान भिन्न भिन्न प्रांतों में इसे करने लगे हैं. इस खेती को करने से किसान को घाटा नहीं होता है उसको इतना मुनाफा होता है कि उसे सरकार के किसी भी प्रकार के अनुदान की जरुरत नहीं रहती है. `
अमेरिका ,कनाडा ,ब्राज़ील ,आस्ट्रेलया आदि अनेक देशो में No-Till Farming के नाम से ये खेती की जाने लगी है. ये किसान इतने सक्षम हैं कि वे यूनिअन बना कर नए किसानो  को अनुदान देते हैं. इन किसानो के बच्चे अब खेती किसानी को छोड़कर नहीं जा रहे हैं.
 अब अमेरिका की सरकार ने भी पर्यावरण संरक्षण के लिए इस खेती को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है.
ऋषि-खेती एक ईमानदार खेती है. इसका सरकारी स्तर पर प्रचार प्रसार होना चाहिए किन्तु भ्रस्टाचार के चलते ऐसा नहीं हो रहा है. सरकारे ट्रेकटर ,कृषि रसायनो की  कम्पनियों को बढ़ावा देने के खातिर इस खेती को बढ़ावा नहीं दे रही हैं.
   इस लिए हमारा निवेदन है कि ऐसी सरकार चुनी जाये जो "सत्य और अहिंसा " के आदर्श को मानती हैं. जो ऋषि-खेती को बढ़ावा देतीं हैं. जिनकी आर्थिक नीति पर्यावरण के संवर्धन पर आधारित हैं. जो प्रदूषणकारी हिंसात्मक उधोगधंदों के खिलाफ है. rajuktitus@gmail.com.